दीपों के त्योहार के रूप में दीपावली मनाया जाता है। यह त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। अमावस्या की अंधेरी रात जगमग असंख्य दीपों से जगमगाने लगती है। यह त्योहार लगभग सभी धर्म के लोग मनाते हैं। इस त्योहार के आने के कई दिन पहले से ही घरों की लिपाई-पुताई, सजावट प्रारंभ हो जाती है। इन दिन पहनने के लिए नए कपड़े बनवाए जाते हैं, मिठाइयां बनाई जाती हैं। इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है इसलिए उनके आगमन और स्वागत के लिए घरों को सजाया जाता है।
यह त्योहार पांच दिनों तक मनाया जाता है। धनतेरस से भाई दूज तक यह त्योहार चलता है। धनतेरस के दिन व्यापार अपने नए बहीखाते बनाते हैं। अगले दिन नरक चौदस के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करना अच्छाप माना जाता है। अमावस्या यानी कि दिवाली का मुख्य दिन, इस दिन लक्ष्मीजी की पूजा की जाती है। खील-बताशे का प्रसाद चढ़ाया जाता है। नए कपड़े पहने जाते हैं। फुलझड़ी, पटाखे छोड़े जाते हैं। दुकानों, बाजारों और घरों की सजावट दर्शनीय रहती है। अगला दिन परस्पर भेंट का दिन होता है। एक-दूसरे के गले लगकर दीपावली की शुभकामनाएं दी जाती हैं। लोग छोटे-बड़े, अमीर-गरीब का भेद भूलकर आपस में मिल-जुलकर यह त्योहार मनाते हैं।
आइए जाने दीपावली से जुड़े पांच तथ्य को-
1: श्री राम के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में -
यह कहानी सभी भारतीय को पता है कि हम दिवाली श्री राम जी के वनवास से लौटने की खुशी में मनाते हैं। मंथरा के गलत विचारों से पीड़ित हो कर भरत की माता कैकई श्रीराम को उनके पिता दशरथ से वनवास भेजने के लिए वचनबद्ध कर देती है। ऐसे में श्रीराम अपने पिता के आदेश को सम्मान मानते हुए माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के वनवास के लिए निकल पड़ते हैं। वहीं वन में रावण माता सीता का छल से अपहरण कर लेता है। तब श्री राम सुग्रीव के वानर सेना और प्रभु हनुमान के साथ मिल कर रावण का वध करके सीता माता को छुड़ा लाते हैं। उस दिन को दशहरे के रूप में मनाया जाता है और जब श्री राम अपने घर अयोध्या लौटते हैं तो पूरे राज्य के लोग उनके आने के खुशी में रात्री के समय दीप जलाते है और खुशियां मनाते हैं। तब से यह दिन दीपावली के नाम से जाना जाता है।
2: पांडवों का अपने राज्य में वापस लौटना-
आप सभी ने महाभारत की कहानी तो सुनी ही होगी। कौरवों ने, शकुनी मामा के चाल की मदद से शतरंज के खेल में पांडवों का सब कुछ छीन लिया था। यहां तक की उन्हें राज्य छोटू का 2 तरह के लिए वनवास भी जाना पड़ा। इसी कार्तिक अमावस्या को वो 5 पांडव 13 वर्ष के वनवास से अपने राज्य लटे थे। उ दशी में उनके राज्य के लोगों ने दीप जला खुशी मनाई थी।
3: सिक्खों के 6वें गुरु को मिली थी आजादी
मुगल बादशाह जहांगीर ने सिखों के 6वें गुरु गोविंद सिंह सहित 52 राजाओं को ग्वालियर के किले में बंदी बनाया था। गुरू को कैद करने के बाद जहांगीर मानसिक रूप से परेशान रहने लगा। जहांगीर को स्वप्न में किसी फकीर से गुरू जी को आजाद करने का हुक्म मिला था। जब गुरु को कैद से आजाद किया जाने लगा तो वे अपने साथ कैद हुए राजाओं को भी रिहा करने की मांग करने लगे गुरू हरगोविंद सिंह के कहने पर राजाओं को भी कैद से रिहाई मिली थी। इसलिए इस त्यौहार को सिख समुदाय के लोग भी मनाते हैं।
4: भगवान् श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का किया था संहार
इसी दिन प्रभु श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था। नरकासुर उस समय प्रागज्योतिषपुर (जो की आज दक्षिण नेपाल एक प्रान्त है) का राजा था। नरकासुर इतना क्रूर था की उसने देवमाता अदिति के शानदार बालियों तक को छीन लिया। देवमाता अदिति श्री कृष्ण की पत्नी सत्यभामा की सम्बन्धी थी। नरकासुर ने कुल 16 भगवान की कन्याओं को बंधित कर के रखा था। श्री कृष्ण की मदद से सत्यभामा ने नरकासुर का वध किया और सभी देवी कन्याओं को उसके चंगुल से छुड़ाया।
5: माता लक्ष्मी का सृष्टि में अवतार
हर बार दीपावली का त्यौहार हिन्दी कैलंडर के अनुसार कार्तिक महीने के "अमावस्या" के दिन मनाया जाता है। इसी दिन समुन्द्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी जी ने सृष्टि में अवतार लिया था। माता लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी माना जाता है। इसीलिए हर घर में दीप जलने के साथ-साथ हम माता लक्ष्मी जी की पूजा भी करते हैं। यह भी दीपावली मनाने का एक मुख्य कारण है।
6: राजा विक्रमादित्य का हुआ था राज्याभिषेक
राजा विक्रमादित्य प्राचीन भारत के एक महान सम्राट थे वे एक बहुत ही आदर्श राजा ये और उन्हें उनके उदारता, साहस तथा विद्वानों के संरक्षणों के कारण हमेशा जाना जाता है। इसी कार्तिक अमावस्या को उनका राज्याभिषेक हुआ था। राजा विक्रमादित्य मुगलों को धूल चटाने वाले भारत के अंतिम हिंदू सम्राट थे।
आइए जाने धनतेरस के दिन क्या होता है और क्यों मनाया जाता है, आइए जाने-
हिंदू धर्म के अनुसार हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। धनतेरस का त्योहार छोटे दिवाली से एक दिन पहले आता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि और धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है। धनतेरस के मौके पर सोना, चांदी और बर्तन की खरीदारी की जाती है। इस साल 13 नवंबर को धनतेरस है। धनतेरस का शुभ मुहूर्त है- 12 नवंबर को शाम 9 बजकर 18 मिनट से 13 नवंबर को शाम 6 बजे तक रहेगा। हिंदू मान्यताओं के अनुसार सूर्योदय के तिथि के साथ त्योहार मनाया जाएगा। धनतरेस के दिन मां लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि और धन के देवता कुबेर की पूजा होती है।
कई लोग घर में कुबेर यंत्र और लक्ष्मी गणेश कुबेर यंत्र रखते हैं। उन लोगों को पहले भगवान कुबेर की पूजा करनी चाहिए और उसके बाद कुबेर यंत्र को सिद्द करके रखना चाहिए। इससे धन के देवता खूब प्रसन्न होते हैं। घर के पूजा स्थल में उत्तर, पूर्व या पश्चिम मुखी बैठिए और भगवान धन्वंतरि की मूर्ति की स्थापना करें। इसके बाद भगवान धन्वतंरि को कुकम, चावल और इतर का स्नान जरूर करवाएं। चूंकि भगवान धन्वंतरि को सफेद रंग के पुष्प बहुत पसंद होते है। इसलिए इस दिन भगवान धन्वंतरि को सफेद रंग के पुष्प से श्रृगांर करें। भगवान धन्वंतरि खूब प्रसन्न होती है। घर में सुख- समृद्धि बनी रहती है।
धनतेरस के मौके पर लोगों सोने, चांदी और बर्तनों की खरीदारी करते है। लेकिन इस खास दिन चांदी की चीज खरीदना बहुत शुभ होता है। धनतेरस के दिन चांदी का सिक्का, चांदी का धातु, चांदी के अभूषण खरीदना चाहिए। चांदी की खरीदी हुई चीज को धनतेरस के पूजा और दिवाली के दिन मां लक्ष्मी और गणेश की पूजा में रखना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि चांदी का आगमन मतलब मां लक्ष्मी का आगमन होता है। धनतेरस के दिन सफेद चावल नहीं खाएं। ऐसा माना जाता है कि सफेद चावल खाने से कर्ज बढ़ता है। आप चावल खाते हैं तो उसके हल्का केसर डाल कर पकाएं। धनतेरस के दिन अपनी पत्नी को चांदी की पायल या अन्य आभूषण गिफ्ट करें।
नरक चतुर्दशी कब और क्यो मनाया जाता है?
रोशनी के त्योहार की शुरूआत धनतेरस से होती है। धनतेरस के अगले दिन नरक चतुर्दशी होती है। जिसे लोग छोटी दिवाली कहते हैं। इस दिन भी घर के बाहर दीपक जलाए जाते हैं। इस दिन यमराज की पूजा की जाती है। यमराज की पूजा करने से अकाल मृत्यु का खतरा टल जाता है। आइए आपको आज बताते हैं कि छोटी दिवाली मनाने के पीछे क्या कारण होता है। मान्यता है कि छोटी दिवाली के दिन यमराज का पूजन करने तथा व्रत रखने से नरक की प्राप्ति नहीं होती। इस दिन यमराज से प्रार्थना की जाती है कि उनकी कृपा से हमें नरक के भय से मुक्ति मिले। इसी दिन रामभक्त हनुमान का भी जन्म हुआ था और इसी दिन वामन अवतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगते हुए तीनों लोकों सहित बलि के शरीर को भी अपने तीन पगों में नाप लिया था।
छोटी दिवाली के दिन सुबह स्नान करके भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। माना जाता है इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था। जिसकी वजह से इसे नरक चतुर्दशी कहते हैं। नरकासुर का वध किसी स्त्री के हाथों ही लिखा था। इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथा बनाकर नरकासुर का वध किया था। नरकासुर का वध करके श्रीकृष्ण ने 16,000 कन्याओं को उसके बंधन से मुक्त कराया था।
नरकासुर से मुक्ति पाने की खुशी में देवगण व पृथ्वीवासी बहुत आनंदित हुए और उन्होंने यह पर्व मनाया गया। माना जाता है कि तभी से इस पर्व को मनाए जाने की परम्परा शुरू हुई। नरक चतुर्दशी का संबंध स्वच्छता से भी है। इस दिन लोग अपने घरों का कूड़ा-कचरा बाहर निकालते हैं। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि इस दिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व तेल एवं उबटन लगाकर स्नान करने से पुण्य मिलता है।
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