राजेश शास्त्री, संवाददाता
दुनिया में कितने महारथी आए और चले गए जिसका कोई गिनती ही नहीं है। वैसे ही हम आप सभी को ऐसे हालात की कहानी सुनाने जा रहें है जिसके जीवन में वह एक न एक दिन हर किसी के सामने आती है और इस हालात से कोई नहीं बच पाया है जिसे कहते है- गरीबी। बच्चों सुनों एक कहानी, एक निर्धन ब्रह्मणी जो भिक्षा माँग कर जीवन-यापन करती थी। एक समय ऐसा आया कि पांच दिन तक उसे भिच्छा नहीं मिली। वह प्रति दिन पानी पीकर केवल अपना कर्म करते हुए भगवान का नाम लेकर सो जाती थी।
यह सोंचकर
ब्राह्मणी ने उन चनों को एक कपडे़ में बाँधकर रख दिया और वासुदेव का नाम जपते-जपते
सो गयी। ज्यों ही बुढ़िया सोयी त्यों ही कालचक्र ने एक ऐसा खेल खेला, जिसे जानकर
आप दंग रह जाएंगे। ब्राह्मणी के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया
में आ गये। चोरों नें कुटिया के अन्दर घुस कर सामानों को इधर-उधर बहुत ढूँढा, कुछ सामान तो
मिला नही, लेकिन वह चने की बंधी हुई पुटकी मिल गयी। चोरों ने समझा इसमें सोने के
सिक्के हैं। इतने में ब्राह्मणी जाग गयी और शोर मचाने लगी।
उस समय गुरूमाता
जग रही थी। उन्हें लगा कि कोई आश्रम के अन्दर आया है। उन्होंने देखने के लिए आगे
बढीं तो चोर समझ गया कि कोई आ रहा है, और चोर डर कर आश्रम से भागे। भागते समय चोरों
से वह पुटकी वहीं छूट गयी और सारे चोर भाग गये।
इधर भूख से
व्याकुल ब्राह्मणी ने जब जाना कि उसकी चने की पुटकी चोर उठा ले गये तो ब्राह्मणी
ने श्राप दे दिया कि मुझ दीनहीन असहाय के जो भी चने खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा। उधर
प्रात:काल गुरु माता आश्रम मे झाडू़ लगाने लगीं तो झाडू लगाते समय गुरु माता को
वही चने की पुटकी मिली गुरु माता ने पुटकी खोल के देखी तो उसमे चने थे।
सुदामा और कृष्ण भगवान जंगल से लकड़ी लाने जा रहे थे। गुरु माता ने वह चने की पुटकी सुदामा को दे दी और कहा बेटा ! जब वन मे भूख लगे तो दोनों लोग यह चने खा लेना। सुदामा जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे। ज्यों ही चने की पुटकी सुदामा ने हाथ में लिया त्यों ही उन्हे सारा रहस्य मालुम हो गया।
अब सुदामा जी ने सोचा! गुरु माता ने कहा है कि यह चने दोनों लोग बराबर बाँट के खाना। लेकिन ये चने अगर मैंने त्रिभुवनपति श्री कृष्ण को खिला दिया तो सारी सृष्टि दरिद्र हो जायेगी। सुदामा ने कहा कि नहीं-नहीं मैं ऐसा नही करुँगा। मेरे जीवित रहते मेरे प्रभु दरिद्र हो जायें, मै ऐसा कदापि नही करुँगा।
मैं यह चना स्वयं खा जाऊँगा लेकिन कृष्ण को नहीं खाने दूँगा और सुदामा ने सारे चने खुद खा लिए। इस प्रकार दरिद्रता का श्राप सुदामा ने स्वयं ले लिया। चने खाकर। लेकिन अपने मित्र श्री कृष्ण को एक भी दाना चना नही दिया। ऐसे होते हैं मित्र। तो बच्चों आपसे निवेदन है कि अगर मित्रता करें तो सुदामा जी जैसी करें और कभी भी अपने मित्रों को धोखा ना दें। सदैव प्रसन्न रहिए कभी अपने लिए तो कभी अपनों के लिए।




0 टिप्पणियाँ
Please don't enter any spam link in the comment Box.