राजेश शास्त्री, सिद्धार्थनगर
आज का दौर व्यस्तता का दौर है लेकिन अपने भगवान के प्रति ध्यान केंद्रित करने के लिए समय देना आवश्यक है। यदि आप सुबह-शाम अपने भगवान को याद करते है तो आपके जीवन में किसी भी प्रकार की मानसिक दिक्कत के साथ-साथ धन धान्य आदि की कमी नहीं होती है। लेकिन जिस तरह से लोगों की व्यस्तता है उसी तरह से इस कलयुग में लोगों को आसानी से फल की प्राप्ति हो जाती है।
लेकिन, आज हम उस देवी के बारे में बात करने जा रहें है जिसे हर कोई जानता है पर कुछ ही लोग उनका व्रत रख पाते/पाती है। पर स्त्रियों को माता सन्तोषी का व्रत यदि रखती है तो इस कलियुग में उन्हें तत्काल फल देनें वाली है। वशर्ते इस व्रत में कुछ विशेष सावधानियों के साथ इस व्रत का अनुष्ठान करनें से नाना प्रकार के फलों की प्राप्ति होती है। पं. राजेश शास्त्री के अनुसार, संतोषी माता को हिंदू धर्म में संतोष, सुख, शांति और वैभव की माता के रूप में पूजा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता संतोषी भगवान श्री गणेश की पुत्री हैं।
लेकिन यह संतोष हमारे जीवन में बहुत जरूरी है। संतोष न हो तो इंसान मानसिक और शारीरिक तौर पर बेहद कमजोर हो जाता है। संतोषी मां हमें संतोष दिला हमारे जीवन में खुशियों का प्रवाह करती हैं।माता संतोषी का व्रत पूजन करने से धन, विवाह संतानादि भौतिक सुखों में वृद्धि होती है।
यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जाता है। संतोषी माता का व्रत शुक्रवार को सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि करके, मंदिर में जाकर (या अपने घर पर संतोषी माता का चित्र या मूर्ति रखकर) संतोषी माता की पूजा करें।
इन बातों का रखे खास ध्यान
- सुख-सौभाग्य की कामना से माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत किए जाने का विधान है।
- सबसे पहले आप सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफ़ाई इत्यादि पूर्ण कर लें।
- स्नानादि के पश्चात घर में किसी सुन्दर व पवित्र जगह पर माता संतोषी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- माता संतोषी के संमुख एक कलश जल भर कर रखें. कलश के ऊपर एक कटोरा भर कर गुड़ व चना रखें।
- माता के समक्ष एक घी का दीपक जलाएं।
- माता को अक्षत, फ़ूल, सुगन्धित गंध, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें।
- माता संतोषी को गुड़ व चने का भोग लगाएँ।
- संतोषी माता की जय बोलकर माता की कथा आरम्भ करें।
संतोषी माता की व्रत कथा को सुनते अथवा दूसरों को सुनाते समय गुड़ और भूने हुए चने हाथ में रखें। व्रत्कथा समाप्त होने पर “संतोषी माता की जय” बोलकर उठें और हाथ में लिए हुए गुड़ और चने गाय को खिलाएँ। कलश पर रखे गए पात्र के गुड़ और चने को प्रसाद के रूप में उपस्थित सभी स्त्री-पुरुषों और बच्चों में बाँट दें। कलश के जल को घर के कोने-कोने में छिड़ककर घर को पवित्र करें। शेष बचे हुए जल को तुलसी के पौधे में डाल दें। व्रत करने वाले को श्रद्धा और प्रेम से प्रसन्न मन से व्रत करना चाहिए।
संतोषी माता व्रत का महत्व
सृष्टि के सभी प्राणियों का कल्याण करने वाले भगवान शंकर के पुत्र श्री गणेश महाराज और माता ऋद्धि-सिद्धि की पुत्री संतोषी माता विश्व के सभी उपासक स्त्री-पुरुषों का कल्याणकरती है। अपना व्रत करने तथा कथा सुननेवाले स्त्री-पुरुषों के धन-सम्पत्ति से भण्डार भरकर संतोषी माता उन्हें पृथ्वीलोक के सबसे बड़े सुख यानी “संतोष” धन से आनंदित करती हैं।
व्यवसाय में दिन दूना और रात चौगुना लाभ होता है। शोक-विपत्ति नष्ट होती है और मनुष्य चिंता मुक्त होकर जीवन-यापन करता है। संतोषी माता का विधिवत् व्रत करने, गुड़ और चने का प्रसाद ग्रहण करने से कन्याओं को सुयोग्य वर मिलता है। स्त्रियाँ सदा सुहागन रहती हैं। नि:संतानों को पुत्र की प्राप्ति होती है। जीवन में सभी मनोकामनाएँ संतोषी माता के व्रत से पूरी होती है।
संतोषी माता व्रत पूजा की सामग्री
घी का दिया, कलश पात्र, चना, गुड़, संतोषी माता की मूर्ति अथवा चित्र, धूप आदि।
संतोषी माता व्रत उद्यापन विधि
संतोषी माता की अनुकम्पा से जब व्रत करने वाले स्त्री और पुरुष की मनोकामना पूरी हो जाए तो इस व्रत का उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन में ढ़ाई सेई गेहूँ के आटे की पूड़ी, हलवा, खीर व चने का साग बनाएँ। किसी भी वस्तु में खटाई का प्रयोग ना करें। उद्यापन के दिन विधिवत् घी का दीपक जलाकर संतोषी माता की पूजा करें। फिर आरती के बाद सबको गुड़ और चने का प्रसाद बाँटे।
कलश में भरे जल को घर में छिड़ककर घर को पवित्र कर लें। उसके बाद घर-परिवार के लड़के न मिले तो आस-पास के लड़कों को बुलाकर भोजन कराएँ। ब्राह्मण के लड़कों को भी भोजन करा सकते हैं । भोजन के बाद दक्षिणा में लड़कों को रूपये-पैसे न देकर फल देना चाहिए। लेकिन फल खट्टा नहीं होना चाहिए। व्रत करने वाला स्त्री-पुरुष को दिन में एक बार ही भोजन करना चाहिए।
विशेष : इस दिन व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष को ना ही खट्टी चीजें हाथ लगानी चाहिए और ना ही खानी चाहिए।


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