बुधवार का व्रत शुरू करने से पहले गणेश जी के साथ नवग्रहों की पूजा करनी चाहिए, आइए जाने


राजेश शास्त्री, संवाददाता 

बुध त्वं बुद्धिजनको बोधद: सर्वदा नृणाम्। 
तत्वावबोधं कुरुषे सोमपुत्र नमो नम:॥ 

अर्थात अग्नि पुराण के अनुसार बुध-संबंधी व्रत विशाखा नक्षत्रयुक्त बुधवार को आरंभ करना चाहिए और लगातार सात बुधवार तक व्रत करना चाहिए। मान्यतानुसार बुधवार का व्रत शुरू करने से पहले गणेश जी के साथ नवग्रहों की पूजा करनी चाहिए। व्रत के दौरान भागवत महापुराण का पाठ करना चाहिए। 
बुधवार व्रत शुक्ल पक्ष के पहले बुधवार से शुरू करना अच्छा माना जाता है। जिस व्यक्ति को बुधवार का व्रत करना हों, उस व्यक्ति को व्रत के दिन प्रात: काल सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए। उठने के बाद प्रात: काल में उठकर पूरे घर की सफाई करनी चाहिए। इसके बाद नित्यक्रिया से निवृ्त होकर, स्नानादि कर शुद्ध हो जाना चाहिए। स्नान करने के बाद संपूर्ण घर को गंगा जल छिडकर शुद्ध करना चाहिए। 
गंगा जल ने मिलें, तो किसी पवित्र नदी का जल भी छिडका जा सकता है. इसके पश्चात घर के ईशान कोण में किसी एकांत स्थान में भगवान बुध या शंकर की मूर्ति अथवा चित्र किसी कांस्य के बर्तन में स्थापित करना चाहिए। मूर्ति या चित्र स्थापित करने के बाद धूप, बेल-पत्र, अक्षत और घी का दीपक जलाकर पूजन करना चाहिए। इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए बुधदेव की आराधना करनी चाहिए - 

बुध त्वं बुद्धिजनको बोधद: सर्वदा नृणाम्। 
तत्वावबोधं कुरुषे सोमपुत्र नमो नम:॥

पूरे दिन व्रत करने के बाद सायंकाल में भगवान बुध की एक बार फिर से पूजा करते हुए, व्रत कथा सुननी चाहिए. और आरती करनी चाहिए। सूर्यास्त होने के बाद भगवान को धूप, दीप व गुड, भात, दही का भोग लगाकर प्रसाद बांटना चाहिए, और सबसे अंत में स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करना चाहिए. व्रत करने वाले जातक को हरे रंग की माला या वस्त्रों का अधिक प्रयोग करना चाहिए। 

भगवान बुध की मूर्ति ना होने पर शंकर जी की प्रतिमा के समीप भी पूजा की जा सकती है। पूरे दिन व्रत कर शाम के समय फिर से पूजा कर एक समय भोजन करना चाहिए। सायंकाल में व्रत का समापन करने के बाद यथा शक्ति ब्राह्माणों को भोजन कराकर उन्हें दान अवश्य देना चाहिए। और व्रत करने वाले व्यक्ति को एक ही समय भोजन करना चाहिए। 

व्रत को मध्य में कभी नहीं छोडना चाहिए तथा व्रत की कथा के मध्य में उठकर नहीं जाना चाहिये। साथ ही प्रसाद भी अवश्य ग्रहण करना चाहिए। बुधवार व्रत में हरे रंग के वस्त्रों, फूलों और सब्जियों का दान देना चाहिए। इस दिन एक समय दही, मूंग दाल का हलवा या हरी वस्तु से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए। 

बुधवार व्रत का महत्व

बुद्धि, जुबान एवं व्यापार मनुष्य के जीवन के तीन मुख्य आधार स्तंभ हैं, जो कि बुध देव कि कृपा पर निर्भर हैं। बुधवार का व्रत करने से व्यक्ति की बुद्धि में वृ्द्धि होती है। इसके साथ ही व्यापार में सफलता प्राप्त करने के लिये भी इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है। व्यापारिक क्षेत्र की बाधाओं को दूर करने में भी यह व्रत लाभकारी रहता है। 

इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की कुण्डली में बुध अपने फल देने में असमर्थ हो, उन व्यक्तियों को यह व्रत विशेष रुप से करना चाहिए। अथवा जिनके कुण्डली में बुध अशुभ भावों का स्वामी होकर अशुभ भावों में बैठा हो, उस अवस्था में भी इस व्रत को करना कल्याणकारी रहता है। 

ग्रह शांति तथा सर्व-सुखों की इच्छा रखने वालों को बुद्धवार का व्रत करना चाहिये। इस व्रत में दिन-रात में एक ही बार भोजन करना चाहिए। इस व्रत के समय हरी वस्तुओं का उपयोग करना श्रेष्ठतम है। 

इस व्रत के अंत में शंकर जी की पूजा, धूप, बेल-पत्र आदि से करनी चाहिए। साथ ही बुद्धवार की कथा सुनकर आरती के बाद प्रसाद लेकर जाना चाहिये। इस व्रत का प्रारंभ शुक्ल पक्ष के प्रथम बुद्धवार से करें। 21 व्रत रखें। बुद्धवार के व्रत से बुध ग्रह की शांति तथा धन, विद्या और व्यापार में वृद्धि होती है। 

बुधवार व्रत का फल

बुधवार का व्रत करने से व्यक्ति का जीवन में सुख-शांति और धन-धान्य से भरा रहता है। इसके अलावा लक्ष्मी जी उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।

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