रंभा तृतीया व्रत आज, क्या है रम्भा तृतीया का अर्थ? इस व्रत से देवी लक्ष्मी होती हैं प्रसन्न, आइए जाने


राजेश शास्त्री, संवाददाता 

आज यानी 13 जून को सुहागिनें रम्भा तृतीया का व्रत करेंगी। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार रम्भा तृतीया व्रत ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन रखा जाता है। इस दिन अप्सरा रम्भा की पूजा की जाती है। इसे रम्भा तीज भी कहा जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं इसलिए व्रत रखती हैं ताकि उन्हें गणेश जी जैसी बुद्धिमान संतान (पुत्री/पुत्र) मिले और उन पर गौरी यानी माता पार्वती और शिवजी की कृपा बनी रहे। 

हिन्दू मान्यतानुसार सागर मंथन से उत्पन्न हुए 14 रत्नों में से एक रम्भा भी थीं। कहा जाता है कि रम्भा बहुत सुंदर थी। कई साधक रम्भा के नाम से साधना कर सम्मोहिनी सिद्धि प्राप्त करते हैं।

रम्भा तृतीया व्रत का विधान

सुबह स्नान आदि से निपट कर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें और पांच अग्नियों क्रमश: गार्हपत्य, दक्षिणाग्नि, सभ्य, आहवनीय और भास्कर को प्रज्वलित करें। उनके मध्य में माता पार्वती की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। इसके बाद विधि-विधान पूर्वक पूजन करें। 

पूजन में निम्न मंत्र का जप करें

ओम महाकाल्यै नम:, महालक्ष्म्यै नम:, महासरस्वत्यै नम:, इत्यादि नाम मंत्रों से पूजन करना चाहिए। रम्भा तृतीया के दिन विवाहित स्त्रियां गेहूं, अनाज और फूल से लक्ष्मी जी की पूजा करती हैं। इस दिन देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। इस दिन स्त्रियां चूडिय़ों के जोड़े की भी पूजा करती हैं जिसे अप्सरा रम्भा और देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। कई जगह इस दिन माता सती की भी पूजा की जाती है।

रम्भा तृतीया का अर्थ

रम्भा तृतीया को यह नाम इसलिए मिला, क्योंकि रम्भा ने इसे सौभाग्य के लिए किया था। रम्भा तृतीया का व्रत शिव-पार्वती जी की कृपा पाने, गणेशजी जैसी बुद्धिमान संतान तथा अपने सुहाग की रक्षा के लिए किया जाता है। इस दिन मंदिर और घर पर ही शिव, पार्वती और गणेश जी की आराधना करके सास-ससुर से आशीर्वाद लिया जाता हैं।
 
सास को पकवान व्यंजन और वस्त्र भेंट किए जाते हैं। पुराणों के अनुसार इस दिन माता पार्वती का जन्म हुआ था। इस दिन महिलाएं सौभाग्य के लिए व्रत रखती हैं तथा पार्वतीजी की पूजा करती हैं। 

रम्भा तृतीया व्रत का फल

हिन्दू पुराणों के अनुसार इस व्रत को रखने से स्त्रियों का सुहाग बना रहता है। अविवाहित स्त्रियां भी अच्छे वर की कामना से इस व्रत को रखती हैं। रम्भा तृतीया का व्रत शीघ्र ही फलदायी माना जाता है।

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