पत्रकारिता लोकतंत्र की चौथी संपत्ति है, जो बेजुबान लोगों की आवाज़ के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। न्यूज़ मीडिया और पत्रकारिता से जुड़े संस्थान नागरिकों को सार्वजनिक सूचना देने, किसी मुद्दे पर लोगों की आम राय जानने और बहस के शक्तिशाली उपकरण के रूप में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
सार्वजनिक निगरानी/पब्लिक वाचडॉग,
एक जीवंत, स्वतंत्र और आलोचनात्मक समाचार मीडिया के बिना एक जीवंत लोकतंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती है।स्वतंत्र मीडिया न केवल सार्वजनिक महत्त्व के समाचार और विचारों को प्रसारित करता है, बल्कि एक प्रहरी के रूप में भी काम करता है। यह राज्य के प्रमुख अंगों और संस्थानों के कामकाज की निगरानी, जाँच और आलोचना करता है। सार्वजनिक कार्यालय के पदाधिकारियों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करते हुए उनकी जवाबदेहिता सुनिश्चित करता है।
लोकतंत्र की जीवंतता को बढ़ाता है
एक स्वतंत्र न्यूज़ मीडिया जिसमें समाचार पत्र, पत्रिका, टेलीविज़न, रेडियो, ऑनलाइन समाचार पोर्टल एवं डिजिटल समाचार प्लेटफॉर्म जैसे नए मीडिया शामिल हैं, लोकतंत्र की लंबी और कठिन यात्रा के अभिन्न अंग रहे हैं। खासकर 19वीं और 20वीं शताब्दी में लोकतंत्र के विकास के साथ ही मीडिया का विकास भी देखने को मिला है। लोकतंत्र की सफलता के लिये जीवंत मीडिया को एक महत्त्वपूर्ण पैरामीटर के रूप में माना जाता है और वास्तव में यह किसी देश में लोकतंत्र की स्थिति को मापने के महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक है।
जनता की धारणा को आकार देना
मीडिया जनता की धारणा को आकार देने, सार्वजनिक बहस के एजेंडे को स्थापित करने और समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था, संस्कृति एवं शासन पर इसके व्यापक प्रभाव को स्थापित करने में एक प्रभावशाली भूमिका निभाता है। न्यूज़ मीडिया और पत्रकारिता की लोकतांत्रिक समाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। नेपोलियन बोनापार्ट के अनुसार, "चार शत्रुतापूर्ण समाचार-पत्रों से एक हज़ार बयोनेट्स (बंदूक के आगे लगा चाकू जैसा हथियार) की तुलना में अधिक डरने की आवश्यकता है।"
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