धान की पौध तैयार हो तो रोपाई का कार्य पूर्ण कर लें : कुलपति

  • जनपद में अब तक हुई 454 मिमी वर्षा

बांदा। वर्तमान में बुन्देलखण्ड क्षेत्र में मानसूनी बारिस से खेती किसानी का कार्य प्रगति पर है। ऐसे में किसान भाई दलहनी, तिलहनी फसलों के साथ-साथ धान की रोपाई भी कर रहे हैं। बुन्देलखण्ड के कई जिलों में धान की खेती भी मुख्य फसल के साथ अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाये हुए है। बांदा जिले के अतर्रा, नरैनी, कमासिन, बिसण्डा, बबेरू, तथा महुआ ब्लाक में धान की खेती वृहद क्षेत्र में की जाती है। यहां की धान जिसमें मुख्य रूप से परसन बासमती, तथा महाचिन्नावर के बाजार भाव अन्य प्रजातियों की तुलना में ज्यादा है, एवं उपभोक्ताओं को उसकी स्वाद एवं खुबू आकर्शित करती है। कृशि विश्वविद्यालय बांदा के कुलपति डा0 यू0एस0 गौतम ने कृव्क माईयों से अपील की है कि वर्तमान समय में जबकि वर्शा पर्याप्त हो रही है, धान के तैयार पौध को मुख्य खेत में रोपाई का कार्य समय पर पूर्ण कर लें, जिससे अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकें।

कृशि विश्वविद्यालय बांदा के भास्य वैज्ञानिक तथा कृशि महाविद्यालय के अधिश्ठाता प्रोफेसर जी0एस0 पंवार ने बताया कि विश्वविद्यालय मौसम वेधशाला से प्राप्त आकड़ों के अनुसार जनपद में अभी तक कुल वर्शा 454 मिमी तक हो चुकी है। जुलाई माह में अभी तक लगभग 324 मिमी वर्शा हो चकी है जो कि गतवर्श की तलना में (262 मिमी) से अधिक है। इस वर्शा का लाभ धान उत्पादक किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। वर्शा जल के कारण कृकों को धान की रोपाई के लिए खेतों में पानी लगाने से निजात मिल रही है। धान की फसल पर अन्तर्राश्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के वाराणसी केन्द्र के सहयोग से विश्वविद्यालय में भाध कार्य चल रहा है।

भाध कार्य देख रहे भास्य वैज्ञानिक प्रोफेसर जी०एस० पंवार ने किसानों को सुझाव दिया कि, जिन किसान भाइयों की धान की पौध तैयार हो गयी है वह अतिशीघ्र रोपाई कार्य पूर्ण कर लें। प्रोफेसर पंवार ने बताया कि कम आयु की पौध उत्तम रहती है अतः इस मौसम में कम आयु की पौध भी लगा सकते है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में मुख्यतः पन्तधान-24, भारबती, सोनम, परसन बासमती, महाचिन्नावर, बासमती 1121, पूसा 1718, तथा संकर धान काफी क्षेत्र में लगाया जा रहा है, जोकि यहां के भौगोलिक परिस्थिति के लिए उपयुक्त है। 

प्रो० पंवार ने बताया कि अधिकतर किसान उर्वरक की संस्तुति मात्रा का प्रयोग नहीं करते हैं, जिससे कुल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उन्होंने सुझाव दिया कि अधिक उपज देने वाली प्रजातियों में 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस एवं 60 किग्रा पोटाश तथा सुगन्धित प्रजातियों के लिए 80-100 नाइट्रोजन 40-60 किग्रा फास्फोरस एवं 40 किग्रा पोटास देना आवश्यक है। रोपाई के समय फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा का प्रयोग करना चाहिए। यदि खेतों में मूंग की फसल अथवा हरी खाद का प्रयोग हुआ है, तो वहां पर उर्वरक की मात्रा एक चौथाई कम कर देनी चाहिए।

नाइट्रोजन की मात्रा डी.ए.पी./एन.पी.के. द्वारा फास्फोरस एवं पोटाश की पूर्ति के साथ रोपाई के समय प्रयोग हो जाती है। शेश नाइट्रोजन का प्रयोग रोपाई के 10-12 दिन बाद कल्ले निकलते समय एवं बाली निकलने की पूर्व की अवस्था में खड़ी फसल में छिड़काव विधि द्वारा प्रयोग करना चाहिए। कृपक भाई यह जरूर ध्यान दें कि बाली में दाना बनने के बाद उर्वरक का प्रयोग नहीं करें, जिन खेतों में जिंक की कमी है वहां जिंक सल्फेट का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। प्रो० पंवार ने बताया कियदि पौध की आयु 25 से 30 दिन के मध्य है। तो सिंगल पौध की रोपाई करें। यदि पौध की आयु 30 से 40 दिन के ऊपर है, तो दो पौधों की रोपाई एक साथ करें, साथ ही लवणीय/क्षारीय भूमि में अधिक आयु की पौध प्रयोग करें। इसका उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है। 


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