तारीख 20 जुलाई,1959 में रणछोड़दास जी महाराज ने कहा कि आज जीवन पर विचार करना है-सत्य क्या है ? सत्य वस्तु वही है- जिसको देखना चाहते हो और जिस को प्रत्यक्ष रुप में देखना चाहते हो। श्री गुरुदेव की पूजा तो हम नित्य करते हैं। फिर आषाढ़ी पूर्णिमा को ही क्यों ? और यह बाह्य उपचार क्यों? कल तो गुरु पूर्णिमा है। कल तो फुर्सत नहीं मिले। इसलिए आज ही इस पर विचार करें। सबसे पहले ‘गुरु’ शब्द पर विचार करें। ‘गुरु’ शब्द एक व्यापक शब्द है। कर्तव्यनिष्ठ अव्यक्त पुरुष को गुरु कहते हैं। हम सदैव कहते हैं-
गुरु: साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
श्री गुरुदेव को हमने ब्रह्मा की उपाधि दे दी और गुरुदेव को हमने विष्णु भी बनायें एवं महेश्वर की भी पदवी दे दी। आपको बता दें कि ‘गु’ नाम है अंधकार और ‘रु’ नाम है प्रकाश का, जो अंधकार का नाश करे और प्रकाश की तरफ ले जाए वह गुरु। जैसे सूर्य जगत् गुरु हैं।
ब्रह्मा का कार्य सृष्टि को उत्पन्न करना है, तो गुरु का कर्तव्य है शिष्य के ह्रदय में दैवी संपत्ति की उत्पत्ति करें।
देवाधिदेव गुरुदेव के लिए विष्णु की उपमा दी है, विष्णु का कर्तव्य है सृष्टि का पोषण करना। श्री गुरुदेव हमारे में दैवी संपत्ति का विकास करते हैं। उत्तम विचारों को पोषण देते हैं। दैवी संपत्ति की रक्षा करते हैं यह गुरु का काम है, इसलिए वे विष्णु कहलाते हैं।
महेश्वर यानी रुद्र, गुरुदेव रुद्र भी हैं, कारण कि वह शिष्य के ह्रदय में सर्वदुर्गुणों का सर्व अशुभों का नाश करते हैं, सो वे महेश्वर हैं।
ब्रह्म शब्द “बृहद्” धातु से बना है, इसका अर्थ है- इससे बड़ा कोई नहीं, गुरुदेव ही प्रत्यक्ष इष्टदेव हैं।
अब पूजन क्यों करते हैं ?
इस पर विचार करें। जिससे बड़ा कोई नहीं- ये परब्रह्म हैं, इसी कारण पूजा करनी चाहिये। श्रद्धा चित्त की अरूप, अवमान रहित श्रेष्ठ भावना है। उसे मूर्तिमान करने के लिए पूजन होता है। श्रद्धा को हम पूजन के माध्यम से दर्शाते हैं, हमारा कितना भाव है, कितना त्याग है-सो हम पूजन द्वारा मूर्त करते हैं। श्रद्धा को दर्शाने को आचार्यों ने पूजन रखा है।
इसके लिए अषाढी पूर्णिमा ही क्यों?
आज से चातुर्मास प्रारंभ होता है, चातुर्मास को साधन-अभ्यास का विशिष्ट समय कहा है। वेद पढ़ने का प्रारंभ किया जाता है और श्रावण मास में समाप्त होता है।
योगारम्भ में सर्वप्रथम हमें गुरुपूजन ही करना चाहिए। श्रद्धा के बिना हम कुछ नहीं कर सकते हैं। ‘वेद’ नाम है जानने का, ईश्वर को जाने बिना हम कुछ नहीं कर सकते हैं। अपने अंतःकरण में बैठे हुए ईश्वर को बगैर श्रद्धा और विश्वास के कोई नहीं देख सकता। अरूप प्रचण्ड शक्ति जो हमारे में है, उसे हम देख नहीं सकते, उस शक्ति को मूर्तिमान करने को यह विशिष्ट पूजन हम करते हैं।
रामनाम बर बरन जुग, सावन भादौ मास।।
इसलिए वर्षा में वेद पढ़ने की विधि है, वेद पाठन श्री गुरुपूजन के पश्चात् ही होता है। इसको व्यास पूर्णिमा भी कही जाती है, “व्यास” नाम है लंबा-चौड़ा करने का। वेदों का विस्तार व्यास भगवान ने किया है, वेदों को पुराणों के अंतर्गत बड़ा-चौड़ा बनाकर हमें प्रलोभन देकर, हमें सन्मार्ग पर चढ़ावे-उसका नाम व्यास है। व्यास उनका स्वत: नाम नहीं था। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं।
आज के जीवन में श्रद्धा काल के जीवन में आकाश-पाताल का अन्तर है। मैं बराबर बता देता हूं कि साधन मात्र अनुमान है और सब श्रद्धा पर अवलंबित है। जीवन में गुरु, साधना के लिए हम उस पर विश्वास करते हैं पूजा श्रद्धा का प्रतीक है।
श्रद्धा और विश्वास से एक वृत्ति उत्पन्न होती है-वह है निष्ठा। श्री गुरुदेव के पूजन से हम श्रद्धा को रूप देते हैं। श्रद्धा अटल होनी चाहिए, पार्वती जी की श्रद्धा देखिए- शिव जी को रिझाने के लिए भी कोटि जन्म तपस्या करने को तैयार हैं। सप्त ऋषि को पार्वती जी ने बता दिया कि मुझे नारद जी का वचन है, भले चाहे कुछ भी हो पर गुरु का वचन नहीं छोड़ सकता। श्रद्धा में अत्यंत निष्ठा हो तभी फल प्राप्त होता है, परमतत्व का चिंतन।
अनुमान प्रत्यक्ष का प्रतीक है, अनुमान प्रमाण बड़ा प्रबल है। अनुमान में प्रतीक की स्थिति है। हम सिर्फ अनुमान को लेकर ही आगे चलते हैं, आज से हमको अनुमान कराया और फिर प्रत्यक्ष हुआ-जिससे हम कृतकृत्य हो जाते हैं।
गोस्वामी जी ने कहा-
याभ्यां बिना न पश्यन्ति, सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम् ।।'
कहने का तात्पर्य कि कल हम गुरुपूजन बहुत ही भाव से करेंगे, सदगुरु का पूजन -यह श्रद्धा का प्रतीक है। सुबह नवका समय है, श्री गुरुदेव हॉल में विराजे हैं, इसी वक्त बाहर से रुपयों का मनी ऑर्डर आया।
श्री गुरुदेव ने कहा- यह तो मरघट की लकड़ी है, कभी वापस नहीं जाती। ये क्यों- तुम्हें बिना मांगे मिलता है? और जब नहीं मिलेगा तब सोच लेना, ये तुम्हारी नीति है, इसलिए मिलता है। जिस रोज तुम्हारी नीति डिग जाएगी तब नहीं मिलेगा।
(सिद्ध सदगुरु श्री रणछोड़दासजी महाराज पुस्तक के सष्ठम् भाग पृष्ठ-214 का अंश है)
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