- सावन के पहले दिन ही उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
बांदा। रविवार को ऋषि बामदेव की नगरी बांदा में सावन की शुरुआत भोलेनाथ के जयकारों के साथ हुई बता दें कि भगवान राम की बारात में जाने वाले व दक्ष प्रजापति के यज्ञ का बहिष्कार करने वाले ऋषि बामदेव ने बांदा के पर्वत पर शिवलिंग की स्थापना की थी। जिस शिवलिंग को आज भी श्रद्धा के साथ पूजा जाता है। ऋषि बामदेव के नाम पर ही जनपद का नाम बांदा रखा गया ऋषि बामदेव शैव परंपरा के अनुयाई थे। और शिव भक्तों में उनकी गिनती अग्रणी है। बांदा जनपद के पर्वत पर गुफा के अंदर उन्होंने शिवलिंग की स्थापना कर कई वर्षों तक तप किया था।
इसी वजह से इस पर्वत का नाम भी बॉम्बेश्वर पर्वत हो गया था। सावन में शिव की पूजा की विशेष महत्व है यही कारण है कि आज सुबह से ही शिव भक्तों का ताता मंदिर में उमड़ पड़ा। लोगों ने श्रद्धा पूर्वक भगवान शिव पर जलाभिषेक व बेलपत्र अर्पित कर सारी मनोकामनाएं पूर्ण हेतु पूजा पाठ किया। बांदा के सबसे प्राचीन शिव मंदिर में सुबह अंधियारी से ही भक्तों का जमावड़ा लग गया। और भोले बाबा के जयकारों के साथ भक्तगण सावन के पहले दिन की शुरुआत करते नजर आए। यहां के पुजारी बताते हैं कि जो भी यहां प्रतिदिन दिन शिव के दर्शन करता है। उस पर कोई संकट नहीं आता और उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
बहुत से ऐसे लोग हैं जो साल में प्रत्येक दिन यहां दर्शन के लिए आते हैं। लेकिन पूरे सावन भर यह मंदिर भक्तों से खचाखच भरा रहता है। बम भोले के नारों और शंख की ध्वनि के साथ गुंजायमान शिव मंदिर की छटा देखते ही बनती है। ऋषि बामदेव का नाम शिव पुराण में भी लिखा हुआ है। शिवपुराण की कथा के अनुसार जब दक्ष प्रजापति ने शिव को नहीं बुलाया तो बहुत से ऋषि जोकि शिव भक्त थे। उन्होंने इस बात का विरोध किया इस पर दक्ष ने कहा कि जो शिव का अनुयायी हो वह यज्ञ से चला जाए।
दक्ष के यह कहने पर अन्य कई ऋषि सहित बामदेव ऋषि भी उस यज्ञ से लौट आए थे। इसके अलावा रामचरितमानस में भी ऋषि बामदेव का उल्लेख मिलता है। ऋषि बामदेव भगवान श्री राम की बारात में सम्मिलित हुए थे। और जनकपुरी गए थे। बांदा स्थित शिव मंदिर अति प्राचीन है। और इसका पौराणिक महत्व भी है।
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