बांदा। उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म के पालने वाले को मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्ति अवश्य ही होती है। यह बात आचार्य अभिनंदन सागर महाराज ने जैन मंदिर छोटी बाजार में अपने प्रबचन में कही उन्होंने कहा कि उत्तम “ब्रह्मचर्य” का अर्थ है निजात्मा एवं चर्य का अर्थ है आचरण करना या लीन होना। अतः ब्रह्मचर्य से तात्पर्य निज आत्मा में लीन होना। साधारण बोलचाल में ब्रह्मचर्य से तात्पर्य स्त्री से संसर्ग के त्याग को ब्रह्मचर्य कह दिया जाता है। लेकिन बाहय में स्त्री, घर-बार छोड़ देना लेकिन अंतरंग से विषयों का त्याग न करे तो यह ब्रह्मचर्य नही कहलाता। निश्चय से ज्ञानानन्द सवभावी निज आत्मा को निज मानना, जानना एवं उसी में रम जाना, लीन हो जाना ही उत्तम ब्रह्मचर्य होता है अथार्त अपने “ब्रह्म” में चर्या करना ही वास्तव में ब्रह्मचर्य है, जो साक्षात् मोक्ष का कारण है।
महाराज श्री ने कहा कि एक बार तुलसी दास अपनी शादी के बाद, पत्नी के मायके जाने के बाद उसके बिछोह को सहन न कर सके और एक दिन रात के समय बह नदी पार करने के लिए गए, देखा कि एक तख्ता बहता हुआ आ रहा है वह उसी को पकड़कर नदी पार किये, इतने में विजली कड़की तो देखा वह तख्त नही मुर्दा, शव है जिसको पकड़कर वह नदी पार आए, रात काफी हो जाने पर वह पत्नी को सरप्राइज देने हेतु , उन्होंने देखा कि कमरे की खिड़की खुली है ओर एक रस्सी लटक रही है वह उसे पकड़कर ऊपर चढ़ जाते है जब पत्नी ने पूछा कि ऊपर कैसे आये तो उन्होंने कहा कि रस्सी से, पत्नी ने चौककर दीये की रोशनी में देखा तो पता चला कि वह रस्सी नही एक बड़ा सर्प था, तब पत्नी रत्नावती ने तुलसीदास जी को धिक्कारा ओर कहा कि अगर इतनी लगन और श्रद्धा राम से लगा ली होती तो जीवन सफल हो जाता।
इस काम बिषय के कारण तुम सर्प को भी रस्सी समझ बैठे, उस संबोधन को सुन तुलसीदास ने अपने काम को नियांत्रितकर ब्रम्हचर्य का पालन किया और तब वह तुलसी दास से महान संत तुलसी दास जी बन गए। महाराज जी ने कहा कि जिस चमड़े के सुख में उलझे, एक दिन यह जल जाएगा, नारी-नर बस भौतिक सुख है, अभी संभल, नही तो पछतायेगा। उत्तम ब्रम्हचर्य का पालन, पाप कुशील बचाता है, जो संसार भोग से बचता, मोक्ष श्चपलमनश् पाता है। मिडिया प्रभारी दिलीप जैन ने बताया कि तारण तरण चौत्यालय जी नए मंदिर जी मे मंत्रोंचारण, भजन कीर्तन के साथ धर्म ध्वजा फहराई गई। चौत्यालय जी मे धार्मिक प्रतियोगिताये आयोजित हुई।
दीपदान का कार्यक्रम हुआ जिसमें महिलाओं, बच्चों, पुरुषों सभी ने हाथों में दीये लेकर माँ जिनवाणी की परिक्रमा करते हुए भगवान महावीर के बताये मार्ग पर चलने का संकल्प किया, भजन कीर्तन के साथ आरती, चवँर किया और जयकारे लगाए। इस अवसर पर सुरेश जैन, महेंद्र जैन, मिश्रीलाल जैन, स्वरूप चंद जैन, प्रकाश जैन, मुकेश जैन, मीकू जैन, अंशुल जैन, तपिस जैन, संदीप जैन, प्रमोद जैन, मनोज जैन, श्रीमती विनोद जैन, सनत जैन, दिलीप जैन, आशीष जैन, दर्शित शास्त्री, दिनेश मोइया, श्रीमती मंजरी जैन, श्रीमती जुली, श्रीमती सीमा, श्रीमती गोल्डी, श्रीमती पिस्ता बाई, श्रीमती सरोज जैन, नीलम, नीरजा, रश्मि, मिंटी, साधना, कु. डाली, कु. प्रिया, कु. परी, अनुष्का कु. रिया जैन आदि रही।
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