सुदामा चरित्र की कथा सुन भाव विभोर हुए श्रोता

बांदा। जारी गांव में चल रही श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा में आज सप्तम दिवस की कथा में व्यास आचार्य पंडित कमल नयन शरण महाराज ने बताया कि भगवान कृष्ण के 16108 विवाह में जो प्रथम विवाह माता रुक्मणी के साथ संपन्न हुआ भगवान के आठ विवाह अलग अलग हुए और 16100 कन्याएं जो असुर के जेल खाने में कैद थी उसने सोचा जब 20000 हो जाएंगी उनके साथ में विवाह करूंगा तब सभी कन्याओं ने मिलकर भगवान को पत्र लिखा तब भगवान जाकर उन सभी कन्याओं को उस राजा की कैद से मुक्त कराते हैं और अंत में कन्याएं कहने लगी प्रभु अब हम कहीं जा नहीं सकते मेरे पिता मुझे स्वीकार नहीं करेंगे कोई भी पुरुष हम से विवाह नहीं करेगा।

अंत में हम सभी गलत मार्ग अपना लें प्रभु कहते हैं जब कोई किसी का नहीं होता वह मेरी शरण में आता है और अंत में सभी कन्याओं ने भाव में आकर भगवान से प्रार्थना की मेरे सिर पर रख बनवारी अपने यह दोनों हाथ देना है तो दीजिए जन्म-जन्म का साथ तब भगवान ने 16100 मंडप बनवाएं सभी कन्याओं के साथ एक साथ विवाह किया इस तरह से भगवान के 16108 विवाह हुए आगे के क्रम मैं पंडित कमल नयन शरण महाराज ने बताया कि भगवान सुदामा पर किस तरह कृपा करते हैं उनकी पत्नी सुशीला जब भगवान का दर्शन के लिए कहती हैं तो सुदामा जी कहने लगे मैंने कौन सा पुण्य आज किया जो भगवान के दर्शन प्राप्त होंगे।

सुदामा जी ने इतनी भगवान कृष्ण की भक्ति की कि आज स्वयं त्रिलोकीनाथ उस ब्राह्मण के चरण दबाने लगे और लक्ष्मी स्वयं पंखा  झलने लगी और सुदामा जी महाराज को संकोच लगता है की जगत का ईश्वर आज मेरे चरण दबा रहा है तो भगवान कहने लगे जो मेरी शरण में आता है मैं उस भक्त के चरणों में क्या चरणों की धूल में लो टने को तैयार हूं भगवान भक्तवत्सल अपनी पूर्ण कृपा भक्तों पर करते हैं जिस तरह से सुदामा जी को निहाल किया उसी तरह सभी भक्तों पर भगवान कृपा करें और भगवान का नाम स्मरण कर हम सभी जीव मज धार से पार हो जाते।

भागवत पाठ व पूजन आचार्य श्याम शुक्ल व कथा में संगीतमंच पर मुख्य रूप से प्रदीप पाण्डेय गायन, रंजीत कुमार तबला वादन, प्रवीण कुमार पैड, कथा परिक्षित श्रीमती सुदामा देवी लखन लाल शुक्ला ईष्ट मित्रों परिवार सहित दिनेश शुक्ला रज्जू, कुलदीप त्रिपाठी पत्रकार, मनोज गोस्वामी विधायक प्रतिनिधि तिंदवारी, विष्णु शुक्ला अवर अभियंता विद्युत विभाग, इं अनंत कुमार आदि लोग उपस्थित रहे।



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