- 14 दिन में नवजात का वजन 1200 ग्राम से हुआ डेढ़ किलो
- इस साल अब तक 932 शिशुओं को मिला इलाज
अरबिंद श्रीवास्तव, ब्यूरो चीफ
बांदा। विशेष नवजात शिशु देखभाल इकाई (एसएनसीयू) बीमार नवजात शिशुओं को बेहतर इलाज देकर उनकी जिंदगी बचाने का काम कर रही है। कोरोना के दौर में इसकी महत्ता और भी बढ़ गई है द्य समय से पूर्व जन्म, कम वजन तथा बीमारियों से ग्रसित नवजात शिशुओं को यहां जीवनदान मिल रहा है। इस साल अब तक 932 नवताज शिशुओं को यहां इलाज दिया गया है। तिंदवारी ब्लाक के बछेउरा गांव के अखंड प्रताप बताते हैं कि वर्ष 2020 में उनका विवाह हुआ था। पिछले माह उनकी पत्नी पानो को प्रसव पीड़ा हुई। शहर के एक निजी अस्पताल में पत्नी को भर्ती कराया। वहां आपरेशन से बेटा पैदा हुआ। उनका परिवार बेहद खुश था लेकिन उनकी खुशी तब काफूर हो गई जब डाक्टर ने शिशु को बेहद कम वजन का बताते हुए एसएनसीयू में रखने की सलाह दी। जन्म के समय उनके बच्चे का वजन महज 1200 ग्राम था।
जिला महिला अस्पताल में डाक्टर की सलाह से नवजात को एसएनसीयू वार्ड में 14 दिन के लिए भर्ती कर दिया गया। डाक्टर की निगरानी और सही देखभाल से शिशु का वजन 1500 ग्राम हो गया और स्तनपान भी आराम से करने लगा। अखंड ने बताया कि घर पर आशा कार्यकर्ता द्वारा फालोअप हो रहा है। बाल रोग विशेषज्ञ डा. एचएन सिंह ने बताया कि एसएनसीयू वार्ड में 12 बेड हैं। शिशुओं को बेहतर इलाज के साथ देख रेख की जा रही है। डिस्चार्ज के बाद समय-समय पर शिशुओं को चेकअप के लिए लाने की सलाह भी दी जाती है।
42 दिनों तक होती है निगरानी
डा. सिंह बताते हैं कि एसएनसीयू से डिस्चार्ज होने वाले बच्चों की डेढ़ माह तक निगरानी की जाती है। क्षेत्र की आशा कार्यकर्ता की मदद से ऐसे बच्चों की निगरानी की जाती है। वहीं होम बेस्ड न्यू बार्न केयर (एचबीएनसी) कार्यक्रम के तहत शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के उद्देश्य से जन्म के 42 दिनों की अवधि में आशा छह से सात बार गृह भ्रमण कर रही हैं। ताकि खतरे के लक्षण वाले नवजात की पहचान कर समय से उनका उपचार कराया जा सके। एसएनसीयू से डिस्चार्ज बच्चे का 24 घंटे के अंदर पहला फालोअप किया जाता है। तीसरे, चौथे, पांचवें व छठवें भ्रमण के लिए 14वें, 21वें, 28वें और 42वें दिन फालोअप किया जाता है।
इन लक्षणों से होती है पहचान
- शिशु को सांस लेने में तकलीफ।
- शिशु स्तनपान करने में असमर्थ।
- शरीर अधिक गर्म या ठंडा हो जाए।
- बच्चा सुस्त दिखे, हलचल में अचानक कमी।
- नवजात के बेहतर स्वास्थ्य का ऐसे रखें ख्याल
- संस्थागत प्रसव ही कराएं।
- दाई व अप्रशिक्षित स्थानीय चिकित्सकों की राय पर प्रसव पूर्व गर्भवती को कोई इंजेक्शन या दवा न दें।
- जन्म के बाद शिशु के गर्भनाल पर तेल या किसी भी तरल पदार्थ का इस्तेमाल न करें।
- गर्भनाल को सूखा रखें।
- नवजात को गर्मी प्रदान करने के लिए केएमसी विधि द्वारा मां की छाती से चिपकाकर रखें।
- कमरे में शुद्ध हवा आने दें।
- जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान शुरू कराएं।
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