शुरू में ध्यान दिया होता तो न आती फाइलेरिया की चपेट में

  • हाथी ‘पांव’ के साथ जिंदगी जी रहीं किरन का छलका दर्द  
  • जमालपुर गांव में 50 में से 29 महिला मरीज 

अरबिंद श्रीवास्तव, ब्यूरो चीफ 

बांदा। “20 साल पहले बुखार आता था। गांव के अप्रशिक्षित चिकित्सक  से इलाज करा लेती थी। कुछ व्यक्त के लिए आराम भी मिल जाता था। ज्यादा दिक्कत होने पर अस्पताल में जांच करवाई। रिपोर्ट में फाइलेरिया की पुष्टि हुई।” लापरवाही के चलते मर्ज बढ़ गया। दाहिना पैर हाथीपांव हो गया। 15 साल से इस परेशानी के साथ जी रही हूँ । उठने-बैठने व चलने- फिरने में बहुत दिक्कत आ रही है। दवा के साथ ही जिंदगी गुजारनी पड़ रही है। बड़ोखर ब्लाक  के जमालपुर गांव की रहने वाली 50 वर्षीया  किरन ने भावुक होकर यह बात कही। वह अब पड़ोसियों और रिश्तेदारों को फाइलेरिया की दवा खाने के लिए प्रेरित करती रहती हैं। 

इसी गांव की 62 वर्षीया  गिरजा बताती हैं कि 45 साल पहले शादी  कर वह इस गांव में आई थी। शादी के कुछ सालों बाद ही उन्हें बदन में दर्द रहने लगा। आए दिन बुखार भी आ जाता था। शुरूआती दिनों में उन्होने इसे तवज्जो नहीं दी। जब दर्द व बुखार बर्दाश्त से बाहर होने लगा तो उन्होने जिला मुख्यालय जाकर जिला अस्पताल में इलाज करवाया। जांच में उनके शरीर में फाइलेरिया के शुरूआती लक्षण मिले। कुछ समय तक दवा भी खाई। आराम मिला तो अपने आप को स्वस्थ  मानकर खुद से ही दवा बंद कर दी। 

कुछ सालों बाद फिर बुखार, दर्द के साथ उसके बाएं पैर में  सूजन आने लगी। गांव में स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा नाइट ब्लड सर्वे में फाइलेरिया बीमारी का पता चला। स्वास्थ्य विभाग की टीम ने उन्हें दवा देते हुए अब उम्र भर इसका सेवन करने की सलाह दी। मर्ज न बढ़े इसके लिए अब सिर्फ दवा ही एकमात्र उपाय  बचा है। अब वह गांवों में सभी उम्र  के लोगों से फाइलेरिया की दवा खाने की सलाह के साथ स्वास्थ्य विभाग की टीम का भी सहयोग करती है। 

जिला मलेरिया अधिकारी पूजा अहिरवार बताती हैं कि जनपद के लिम्फोडिमा(हाथी पांव) के 578 मरीज हैं। बड़ोखर ब्लाक में सबसे ज्यादा फाइलेरिया के मरीज जमालपुर गांव में हैं। यहां 50 फाइलेरिया मरीज हैं। इसमें सबसे ज्यादा 29 महिला मरीज हैं। एमडीए अभियान में भी यहां माइक्रो फाइलेरिया के सात  संभावित मरीज मिले हैं। इसमें भी सबसे ज्यादा पाँच  महिलाएं हैं। 22 नवबंर से जनपद में फाइलेरिया उन्मूलन अभियान चलाया जा रहा है । इसमें फाइलेरिया की दवा खाने के साथ ही लोगों को साफ सफाई के प्रति भी जागरूक किया जा रहा है।

क्या है फाइलेरिया?

फाइलेरिया वेक्टरजनित रोग है। यह मादा क्यूलेक्स मच्छर के काटने होता है। इसे लिम्फोडिमा (हाथी  पांव) भी कहा जाता है। यह न सिर्फ व्यक्ति को दिव्यांग  बना देती है बल्कि इससे मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। शरीर में फाइलेरिया के लक्षण मिलना माइक्रो फाइलेरिया कहलाता है। शुरूआती दिनों में डाक्टर की सलाह पर दवा का सेवन किया जाए तो इसका परजीवी नष्ट हो जाता है। प्रदेश सरकार के निर्देश पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा एमडीए अभियान चलाया जा रहा है। इसमें स्वास्थ्य विभाग की टीमें घर-घर फाइलेरिया की दवा खिला रही हैं। इसके साथ ही घर के आस-पास व अंदर साफ-सफाई रखने, पानी जमा न होने दें और समय-समय पर कीटनाशक का छिड़काव करने के प्रति भी जागरूक कर रही हैं।

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