- इस समय के समर्थ सन्त को खोजो, उनसे रास्ता लेकर अपना मानव जीवन सफल बना लो
- महात्मा ऐसे वैद्य होते हैं जो आत्मा और शरीर दोनों की तकलीफ दूर करते हैं
उज्जैन, मध्य प्रदेश। जीते जी मरने और पुनः जिंदा होने की कला सिखाने वाले, कर्मों की सजा न भोगनी पड़े इसका तरीका बताने वाले, इस समय धरती पर मनुष्य शरीर में मौजूद पूरे समर्थ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले त्रिकालदर्शी सन्त उमाकान्त जी महाराज ने 23 मार्च 2022 को दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित मुक्ति दिवस विशेष संदेश में बताया कि श्मशान घाट पर शरीर को मुक्ति दिलाते हो। शरीर की मुक्ति तो हो जाती है लेकिन आत्मा की नहीं हो पाती। आत्मा की मुक्ति कब होगी? जब इस (शरीर) से ये निकलेगी। ऐसे कैसे निकल सकती है? बिना जानकार के नहीं निकल सकती। इसलिए जानकार की खोज करनी पड़ती है। जानकारी किसको होती है? जो उस लाइन का आदमी होता है। किसी भी चीज का हो, जो उसको पढता, समझता, करता है वह जानकार होता है।
वक्त के डॉक्टर मास्टर और गुरु के पास जाना ही पड़ता है
मोटी बात समझो। जैसे डॉक्टरी की पढ़ाई में शरीर के अंगों के बारे में डॉक्टर को पढ़ाया जाता है। उसके बाद प्रैक्टिकल करते हैं। किसी को मर्ज हो जाता है तो डॉक्टर के पास जाता है। हड्डी टूट गई तो उसको जोड़ देते हैं। जो उस वक्त का मौजूदा डॉक्टर होता है, उसके पास जाना पड़ता है। यदि कोई कहे कि जो डॉक्टर इस वक्त पर नहीं है, उससे हम अपनी हड्डी जुड़वा लेंगे तो नहीं हो सकता। कोई कहे कि हमारे पिताजी जिस मास्टर से पढ़कर अधिकारी अफसर बन गए, हम भी उन्हीं मास्टर से पढ़कर अफसर बन जाएं लेकिन मास्टर साहब तो दुनिया संसार से चले गए तो ये नहीं हो सकता। जो मौजूदा मास्टर होगा, उसके ही पास जाना पड़ेगा।
कोई कहे हम कबीर, दादू, पलटू, गोस्वामी जी से नाम दान लेकर आत्मा का कल्याण करा लेंगे तो ये नहीं हो सकता
इनसे नामदान ले लेंगे और अपना काम बनाएंगे तो कैसे हो सकता है? नहीं हो सकता। मौजूदा सन्त, जो ये काम करने वाले होते हैं, उनके पास जाना पड़ता है, उन्हीं से रास्ता लेना पड़ता है। जिनको समरथ गुरु, सतगुरु कहा गया, किसी ने स्पिरिचुअल लिविंग मास्टर कहा। जब सतगुरु वैद्य मिलते हैं तब इस जीवात्मा की पीर मिटती है, इसका दर्द दूर होता है।
सन्त जानते हैं कि जीवात्मा बहुत दु:खी है, जब वह रास्ता बताते हैं तब इसकी पीर मिटती है
जैसे किसी को रोग हो गया, उसको दर्द-तकलीफ होती है। डॉक्टर मिल जाता है तो तकलीफ दूर कर देता है, रोना-धोना खत्म हो जाता है। इसी तरह से जीवात्मा यह दु:खी है। सुरत तू दु:खी रहे, हम जानी सन्त कहते हैं कि सूरत! तू महा दु:खी है, हम जानते हैं। जब से तूने अपने पिया के घर को छोड़ा, पिता के घर को छोड़ा तब से तू वापिस वहां पहुंच नहीं पाई। याद तो तुझको आती है लेकिन तू वहां पहुंच नहीं सकती। तू रास्ता भूल गई। उधर जाने का रास्ता सन्तों को मालूम है। सन्तों के वर्णन में यह चीज आई है। कहा, जीवात्मा बहुत दु:खी है। जब इसका दु:ख दूर होगा तब यह सुखी होगी।
जब सतगुरु वैद्य मिलते हैं तब इस जीवात्मा की तकलीफ होती है दूर
अभी तो यह इतना दु:खी है कि यह आगे बढ़ना भी नहीं चाहेगी। जीवात्मा भी अपंग जैसी हो गई है। लेकिन जब जानकार मिल जाते हैं, जब सतगुरु वैद्य मिल जाते हैं तब वो रास्ता बता देते हैं। जीवात्मा की जो कमजोरी है वह दूर कर देते हैं। जो मन के साथ जीवात्मा लगी हुई है, मन के चक्कर में है, मन के अनुसार इतनी कमजोर हो गई, अपने निज घर, अपने पिता को भूल गई उस पीड़ा से सतगुरु छुटकारा दिलवा देते हैं। इंद्रियों के पास मन रस ले रहा है। जीवात्मा भी उसी में मशगूल है तो यह जीवात्मा उधर से हटकर के अपने देश घर की तरफ निकलने जाने लगती है।
साधना द्वारा रोज का मरना और जीना सीख लो तो आखिरी वक्त पर तकलीफ नहीं होगी
उस वक्त का इंतजार खत्म हो जाता है कि मरते समय ही जीवात्मा निकल पाएगी। फिर तो दिन में 10 बार आदमी मरे। जीवात्मा ऊपर निकल जाती है, शरीर हिलता-डुलता नहीं। कहते हैं न जान नहीं है, ऐसी स्थित हो जाती है तो उसको मरना कहते हैं। यह पहले ही आदमी जब सीख जाता है तब आखिरी वक्त पर जन्म लेने और मरने की पीड़ा सहनी नही पड़ती है।
सुमिरन ध्यान भजन जो झाड़ू है, इसको लगाते रहो
आप बहुत से लोगों को गुरु महाराज जैसे समरथ सन्त मिल गए, गुरु महाराज ने रास्ता दे दिया, उनके जाने के बाद मैंने भी आपको रास्ता बताया, आप लोग रोज का मरना, रोज का जीना सीखो। रोज आप कर्म करते हो। वह कर्म की सजा आपको न मिले, कर्म नष्ट हो जाए इसलिए सुमिरन, ध्यान, भजन यह जो झाड़ू है इसको बराबर लगाते रहो।
सन्त उमाकान्त जी के वचन
इंद्रियों का रस क्षणिक और दुःख का कारण है। रूह को निजात दिलाने से रूह को आराम मिलता है। प्रभू की ओर से सभी जातियों की एक ही जाति है – मानव जाति। दया इंसान का मूल धर्म है। लोगों में सुधार धार्मिकता से ही आएगा। पूरे फकीर, पूरे सन्त के बगैर मानव धर्म आ नहीं सकता।
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