हम तो नहीं चाहते हैं कि खराब समय आवे लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनती चली जा रही हैं कि खराब समय आना ही आना है : सन्त उमाकान्त जी महाराज

  • होली पर सतसंग व प्रभु प्राप्ति, मुक्ति मोक्ष का रास्ता नाम दान की बरसात, सन्त उमाकान्त जी द्वारा
  • सतसंग लाभ लेने आये अमेरिका, लंदन, दुबई, सिंगापुर, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका आदि से भक्तगण

उज्जैन (मध्य प्रदेश)। लोगों के गलत कर्मों से नाराज होकर सजा देने को तैयार कुदरत के कहर से सबको समय रहते आगाह करने वाले, उससे बचने का रास्ता बताने वाले, जीते जी मुक्ति-मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग- नामदान बताने वाले उज्जैन के सन्त उमाकान्त जी महाराज ने 17 मार्च 2022 प्रातः कालीन बेला में उज्जैन में होली के अवसर पर दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित संदेश में बताया कि जीवात्मा को सजा न मिले, नर्क और चौरासी में इसको चक्कर न काटना पड़े इसके लिए इस शरीर के रहते-रहते अपना असली काम करो, इस जीवात्मा को परमात्मा तक पहुंचा दो। अपना घर-वतन जिसको कहा गया, वहां पहुंचा दो। जो सबका पिता, सबका सिरजनहार है, ये आत्मा जब वहां पहुंच जाए तब इसकी संभाल हो जाएगी।

आपके पिता परमात्मा परोक्ष रूप में तो आपके साथ हैं लेकिन अंतर में देख लोगे तो निश्चिंत हो जाओगे

बच्चा देखो बाहर रहता है, बच्चे को उसके पिता जब मिल जाते हैं तब निश्चित हो जाता है की कोई हमको मार, सता नहीं सकता। कोई भी जानवर आएगा तो हमारी रक्षा हमारे पिता करेंगे। पिता आपके तो साथ हैं लेकिन परोक्ष रूप में है। प्रत्यक्ष यानी जिनको इन आंखों से देख सको। सामने इन आंखों से जिनको न देख पाओ, वह भी साथ हैं वह परोक्ष होते हैं। परोक्ष रूप में वो पिता आपके साथ हैं लेकिन जब उनको अंदर में देख लोगे तब आप निश्चिन्त हो जाओगे। जब नहीं देख पाते हो तब आप भटकते, भूल-भ्रम में पड़ जाते हो और उन्हीं को भूल जाते हो। किसको? पिता को ही भूल जाते हो जो सब कुछ बनाने, करने वाले जल, आकाश, चांद, सितारे सब आपके लिए बनाए गए। उन्होंने ही बनवाया तो उन्हीं को आप भूल जाते हो। उनको भूल गए तो कैसे आप सुखी, स्वस्थ रह पाओगे? इसलिए उनको याद रखना जरूरी है। उनका दर्शन अंतर में करना इस शरीर के रहते-रहते जरूरी है।

अभी तो थोड़ी निश्चिंता है, मौका है ध्यान, भजन, सुमिरन करने का

इनको प्रैक्टिकल कराना, इनको पक्का करना है। पहले जो कार्यक्रम होते थे सत्संगों में आप ले आते थे, बनाते, खाते, सतसंग सुनकर चले जाते थे। अब अमल करने की जरूरत है। नहीं तो इनका समय निकल जाएगा। एक समय ऐसा आएगा, परेशानियां जब आएंगी तब एक-दूसरे का मिलना-जुलना भी मुश्किल हो जाएगा। परेशानियां जब आएंगी तो मन परेशानियों से बचने में लग जाएगा तब ध्यान, भजन में कैसे लगेगा? अभी तो थोड़ी निश्चिंता है।

हम तो नहीं चाहते हैं कि खराब समय आवे लेकिन  परिस्थितियां ऐसी बनती चली जा रही हैं कि खराब समय आना ही आना है। कहा गया है-

होनी तो होकर रहे, मेट सके न कोय।

जो होनी है, कुदरत को सजा देनी है, वह तो देगा ही देगा। बात को मानते नहीं लोग, कुदरत के बर खिलाफ काम करते ही चले जा रहे हैं तो कुदरत तो सजा देगी ही देगी।

सजा तो आप लोगों को भी मिल सकती है इसलिए कहा जाता है अच्छे का ही साथ करो

आप लोगों को भी सजा मिल सकती है क्योंकि साथ उन्हीं के रहना है। संग जैसा रहता है उसी हिसाब से उसको भी सजा मिल जाती है। इसीलिए कहा जाता है कि अच्छे का साथ करोगे, अच्छाई आएगी, सम्मान मिलेगा और बुरों का साथ करोगे तो बुराई आएगी, अपमान होगा, सजा मिलेगी। इसीलिए समझाया जाता है कि अच्छे का साथ करो, अच्छे विचार रखो, अच्छे लोगों के साथ उठो-बैठो।

सन्त उमाकान्त जी के वचन

पाप से बचो, पाप समुद्र में भी नहीं समाता है। तीसरे तिल में आत्मा का साक्षात्कार होता है। जीवन का मूल सिद्धांत तो सेवा और सत शब्द को पाने का है। मन मुखता से ही गुरु में दोष दिखाई देता है और अभाव आता है। जीवन खत्म होते ही सब खत्म, फिर दुनिया का कोई ज्ञान काम नहीं आयेगा।

  • पाप से बचो, पाप समुद्र में भी नहीं समाता है।
  • तीसरे तिल में आत्मा का साक्षात्कार होता है। 
  • जीवन का मूल सिद्धांत तो सेवा और सत शब्द को पाने का है।
  • मन मुखता से ही गुरु में दोष दिखाई देता है और अभाव आता है।
  • जीवन खत्म होते ही सब खत्म, फिर दुनिया का कोई ज्ञान काम नहीं आयेगा।

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