वक़्त के गुरु से प्रेम होने पर बीमारियां, समस्याएं खत्म और अनजान में बनते कर्म भी न बनने से ये भविष्य में आएंगी ही नहीं

  • पनिहारिन, चकोर का घड़े और चंद्रमा से जितना है उतना प्रेम गुरु से होने पर आपकी सब तकलीफें दूर हो जाये
  • आज सतसंग में आप प्रेम सीख लो, किस तरह से करेंगे, प्रेम करोगे तो प्रकट हो जाएंगे

पूर्व में शरीर छोड़ चुके डॉक्टर, गुरु की बजाय जीवित डॉक्टर और गुरु ही मददगार हो सकते हैं, इस बात को समझाने वाले, दुःख-तकलीफों को दूर करने का उपाय बताने वाले, दक्षिणा में भक्तों से उनकी बुराइयों को लेने वाले, इस समय के जीते जागते मनुष्य शरीर में मौजूद, परम सन्त निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव द्वारा अधिकृत, लोगों को लकीर के फ़क़ीर न बन कर, खाली टेक में न रह कर इसी जन्म में मोक्ष-निर्वाण प्राप्त करने का मार्ग नामदान देने वाले, हर तरह से समर्थ, त्रिकालदर्शी, तारणहार, अंतर्यामी, धरती के सरताज बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 28 मई 2022 सायंकालीन बेला में उज्जैन आश्रम में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि गुरु महाराज ने कई यात्राएं साइकिल, मोटरसाइकिल व गाड़ियों की निकाली। 14-14 प्रांतों में 80-90 दिनों तक बाहर रहे। कठिन परिस्थितियां उस समय थी। 

आज तो उनका लगाया हुआ बगीचा फल-फूल रहा है। लेकिन बगीचा लगाने में कितनी मेहनत पड़ी, यह तो हमको मालूम है क्योंकि (हम) पीछे-पीछे लगे रहते थे। कर कुछ नहीं सकते थे, करने वाले तो वही थे लेकिन यह उम्मीद थी कि गोवर्धन कृष्ण ने उठाया था, हम अगर लकड़ी ही लगा देंगे तो हमारा भी जीवन धन्य हो जाएगा तो (हम) लगे रहते थे। हमने देखा बड़ी-बड़ी समस्याएं, विकट परिस्थितियां आई लेकिन गुरु महाराज हिम्मत नहीं हारे और आप कहते हो कि प्रचार में लोग सुनते, करते नहीं हैं। 

प्रेमियों! हिम्मत अगर बांधे रहोगे, कहते रहोगे, गुरु के दीवाने अगर हो जाओगे और गुरु के लिए प्रेम हृदय में लेकर जाओगे, उसी तरह गुरु को याद करते रहोगे जैसे पनिहारन घड़े को करती है तो आपका काम हो जाएगा। पनिहारन कुँए से पानी का घड़ा लेकर चलती है तो उसका ध्यान घड़े पर ही रहता है। रास्ता चलती है, सोचती भी है, जल्दी चलेंगे, घर जाएंगे, भोजन बनाएंगे, जल्दी से बच्चों को खिलाएंगे, बच्चे स्कूल से आ रहे होंगे, सब सोचती, चलती, काम करती रहती है लेकिन ध्यान उसी घड़े पर रहता है कि यह नीचे गिर कर टूट न जाए।

वक्त के गुरु से प्रेम ऐसे होना चाहिए जैसे चंद्रमा से चकोर करता है

स्वामी प्रीत यू करै जैसे चंद्र चकोर। चोंच लगी गर्दन झुकी चितवत वाही ओर।।

जैसे चकोर चंद्रमा से प्रेम करता है, निरंतर उसे देखता रहता है। पृथ्वी जब चलती है, चंद्रमा निकलता है, चलता जाता है तो चकोर भी गर्दन उसी दिशा में बढ़ाता हुआ सिर को ऊपर करता जाता है और जब चांद छुप जाता है तब तक गर्दन झुकते समय टेढ़ी हो जाती है।

आज आप प्रेम सीख लो, किस तरह से करेंगे

जितना प्रेम लड़के, परिवार वालों, पत्नी, पति से करते हो उसका आधा ही प्रेम अगर गुरु से करने की आदत बन जाए तो यह जो समस्याएं, बीमारियां, तकलीफें, अनजान में बनते कर्म, यह कर्म नहीं बनेंगे और तब तकलीफें अपने आप जुदा, खत्म, हट जाएंगी, भविष्य में आएंगी ही नहीं लेकिन जब प्रेम हो जाएगा तब। जैसे रोज बच्चों, पत्नी, पति, माता, पिता से प्रेम करते हो उसी तरह से प्रेम की जगह दिल में आज गुरु के लिए बनाओ। 

प्रेम न तो बाड़ी में उपजता है और न ही हॉट बाजार में बिकता है। प्रेम अंदर में उमड़ता है, याद अंदर में आती है। ये कहीं ऐसे नहीं मिलता है। कहां मिलता, उत्पन्न कहां होता है? सतसंगो में प्रेम उमड़ता है, सतसंग में प्रेम की जानकारी होती है। आज सतसंग में प्रेम को समझ लो। प्रेम से प्रकट होय मैं जाना। कहा उन्होंने प्रेम करोगे तो प्रकट हो जाएंगे। उन्हीं से प्रेम करना आपने छोड़ दिया। अब आज से सही लेकिन करो।

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