अच्छा लगा कि नेपाल में हिंदी प्रिय भाषा है - सत्येन्द्र दाहिया


  • भाषा का श्रृंगार है लिपि-सुजन पौडेल
  • व्यापक स्वीकार्यता के बावजूद नेपाल में हिंदी का कानूनी दर्जा न होना चिंता जनक-मंगल प्रसाद

सग़ीर ए ख़ाकसार

कृष्णा नगर, नेपाल। किसी भी भाषा में लिपि का बड़ा महत्व है और जब हम हिंदी की बात करें तो इसका महत्व बढ़ जाता है। लिपि भाषाओं का श्रृंगार है। जैसे हम किसी सुंदर पेंटिंग को देखकर मोहित हो जाते हैं वैसे ही लिपिबद्ध भाषा या लिखावट हमें अपनी ओर आकर्षित करती हैं। हिंदी, संस्कृति, भोजपुरी, मैथिली,मगही आदि भाषाएं या इस भाषा की लिखावट लिपिबद्ध हो तो उसकी पठनियता या उसके पढ़ने में रुचि अपेक्षा कृत बढ़ जाती है। इसलिए भाषाओं की लिखावट में लिपि का बड़ा महत्व है। लिपि के महत्व पर यह विचार संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रवक्ता सुजन पौडेल के हैं। श्री पौडेल शनिवार को नेपाल के कृष्णा नगर में आयोजित नागरी लिपि प्रशिक्षण व संगोष्ठी कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि अपना विचार व्यक्त कर रहे थे। यह कार्यक्रम नेपाल हिंदी मंच और नागरी लिपि परिषद भारत के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया था।

इस कार्यक्रम में भारतीय दूतावास काठमांडू से आए अफसर सत्येन्द्र दाहिया ने भाषाओं में लिपि के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि नेपाल में ज्यादातर लोग हिंदी का प्रयोग करते हैं। वे बोलते भी हैं। उन्हें नेपाल में भाषा को लेकर कोई दिक्कत नहीं हुई लेकिन नेपाल में भी लोकप्रिय हिंदी भाषा का यदि कानूनी मान्यता मिल जाए तो क्या कहने। उन्होंने कहा कि नेपाल और भारत के बीच रोटी बेटी का रिश्ता है। यह रिश्ता भाषाओं के स्तर पर भी होनी चाहिए जैसे भारत में है। भारत में केवल दो प्रदेशों सिक्किम और दार्जिलिंग में नेपाली भाषा बोली जाती है और यह भाषा भारत में आठवीं अनुसूची में शामिल है।

कार्यक्रम में अपना विचार रखते हुए संयोजक मंगल प्रसाद गुप्ता ने नेपाल में हिंदी की जरूरत पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि नेपाल में 95 प्रतिशत लोग हिंदी समझते हैं, हिंदी बोलते हैं और लिखने में भी हिंदी का प्रयोग करते हैं। इतना ही नहीं नेपाल के तमाम सारे लोग भारत के विश्वविद्यालयों में हिंदी में डाक्ट्रेट की डिग्री हासिल करते हैं। हमारे बहुत सारे राजनेता, मंत्री, यहां तक कि कई प्रधानमंत्री भी भारत में पढ़ें हैं और हिंदी अच्छी तरह जानते हैं,कुछ ने तो कविताएं और कहानियां भी लिखी हैं,फिर भी यहां हिंदी को जो मुकाम हासिल होना चाहिए वह नहीं है। उन्होंने कहा कि 104 साल के राणाओं के शासन काल में हिंदी यहां नेपाली भाषा की तरह ही मान्य था। अब जब नेपाल में हिंदी भाषा की जरूरत है तब इसे लेकर उदासीनता बरती जा रही है। उन्होंने कहा कि वे हिंदी मंच के बैनर तले नेपाल में हिंदी के कानूनी दर्जे की मांग निरंतर करते आ रहे हैं।

नागरी लिपि परिषद दिल्ली से आए महामंत्री डा.हरि सिंह पाल ने लिपि के महत्व पर प्रकाश डाला और बताया कि उनकी संस्था पूरे विश्व में भाषाओं में लिपि के महत्व का प्रचार प्रसार कर रही है। कहा कि भाषाएं यदि लिपिबद्ध हो तो उसकी सुंदरता बढ़ जाती है। दो सत्र के कार्यक्रम में आखिरी सत्र प्रशिक्षण का था जिसमें कृष्णानगर और आस पास के सैकड़ों शिक्षक शामिल हुए जिन्हें दिल्ली से आए भाषा विज्ञानियों ने लिपि का महत्व समझाया।

नागरी संगम पत्रिका का विमोचन किया गया। इससे पूर्व जंग बहादुर शाही ने अपने स्वागत भाषण में आये हुए अतिथियों का स्वागत किया।इस अवसर पर चवाकुल रामकृष्णन (तेलंगाना),आचार्य ओम प्रकाश, उमेश चंद्र त्यागी(दिल्ली),अखिलेश आर्येन्दू, राम करन पाल, गोपाल, अरुण कुमार गुप्ता, यशोदा श्रीवास्तव, सग़ीर ए ख़ाकसार, राहुल मोदनल वाल,बृजेश गुप्ता, ज्योति गुप्ता,रश्मी कसौधन,साम्या ,दानिया, मुक्ति पौडेल,आदि लोग उपस्थित रहे।

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