सन्त उमाकान्त जी ने बताया कैसे कर्मों का विधान बना कर जीवात्माओं को यहां मृत्युलोक में फंसाया

  • पहले तो प्रभु का दर्शन करते थे अब फोटो मूर्ति पूजा में फंसकर असली प्रभु पिता को गए भूल
  • अच्छे भविष्य के लिए बराबर प्रभु को याद फरियाद करने की आदत डालो तो आपका खराब समय नहीं आएगा

महोबा (उत्तर प्रदेश)। विधि ने विधान बना कर पाप पुण्य के घेरे में जीवात्माओं को फंसा दिया अब इन दोनों में फंसकर बार-बार जन्मना और मरना पड़ता है तो जीवात्मा इस चौरासी के चक्कर से बाहर कैसे निकलेगी- इसका रास्ता (नामदान) बताने वाले, अनजान में धर्म समझ कर जो गलत कर्म किये उसकी माफी का तरीका बताने वाले इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु त्रिकालदर्शी उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने जन्माष्टमी कार्यक्रम में 18 अगस्त 2022 प्रातः महोबा (उ. प्र.) में दिये संदेश में बताया कि पहले लोग भजन भाव भक्ति में कुछ समय के लिए लग जाते थे। चौथेपन में बुढ़ापा में बहुत से लोग बच्चे भाई जो भी होते उनको गृहस्थी की जिम्मेदारी दे करके घर छोड़ कर जाते और जंगलों में नदियों के किनारे कुटिया बनाकर बराबर भगवान को ही याद करते रहते थे, ये नियम बनाये हुये थे। पहले सतयुग में बड़ी खुशहाली थी, कोई दिक्कत नहीं थी तो लोग प्रभु का बराबर ध्यान लगाते रहते थे।

पाप-पुण्य का विधान बनाकर काल भगवान ने अपने पुत्र ब्रह्मा से कहा ऋषि-मुनियों को बता दो वह धरती पर लोगों को बता दें

जो उस प्रभु को बराबर याद करने, ध्यान लगाने, साधना में लगे रहते थे उन्हीं को ऋषि मुनि योगी योगेश्वर कहा जाता था, उनको आवाज सुनाई पड़ गई। काल भगवान ने अपने पुत्र ब्रह्मा से कहा कि उनको सुना दो कि ये ऐलान कर दें, सबको बता दें कि अब यह नियम बन गया- अच्छा और बुरा। जैसे किसी को पानी पिला दो रोटी खिला दो किसी की मदद कर दो किसी का दुःख दूर कर दो तो कहते अच्छा काम किया। किसी का छीन लो मार दो गाली दे दो दिल दु:खा दो तो कहते हैं गलत पाप बुरा किया। ये पाप और पुण्य का नियम बना दिया।

कर्म कहां जमा होते है

पाप और पुण्य के (घेरे के) अंदर लोग आ गए तो कर्म जमा होने लग गए। दोनों आंखों के बीच में बैठी जीवात्मा जिस सुराख से डाली गई और ऊपर भी उसी से जाएगी, वहां पर कर्म जमा होने लग गए। जो प्रभु दिखाई पड़ते थे, ऊपरी लोक देवी-देवता दिखते थे तब दिखना बंद हो गया। युग बदलते गए, त्रेता फिर द्वापर फिर कलयुग आ गया। कलयुग बड़ा मलीन युग बताया गया। इसमें प्रभु को भूल ही गए लोग।

पहले प्रभु का दर्शन होता था अब बाहरी जड़ पूजा में फंस कर पिता को भूल गए

पहले तो प्रभु का दर्शन भी करते थे लेकिन इस (कलयुग) में तो भूल ही गए। और अगर किसी ने याद दिलाया कि भगवान है, भगवान का ही सब कुछ है तो भगवान किसको मान लिया? जो खुद नाशवान है, अविनाशी नहीं है, जिनको देखते भी नहीं लेकिन मूर्ति बना दिया, फोटो खींच कर लगा दिया, लोग उन्हीं की पूजा करने में लग गए असली प्रभु पिता को भूल गए।

कथा भागवत में वही महापुरुषों का इतिहास सुनाते हैं उससे लोगों को अच्छे बुरे की जानकारी नहीं हो पाती

मोटी बात समझो। जैसे खंभे, पत्थर से कहो कि हमारा दु:ख दूर कर दो, हमारी भूख प्यास मिटा दो घर में बरकत कर दो तो कर पाएगा? जो खुद नहीं सुनता देखता बोलता वह क्या देगा क्या करेगा? कुछ नहीं। जब इसमें लोग फंसे हैं, तो पाप-पुण्य का ज्ञान खत्म हो गया। कथा भागवत में महापुरुषों की बातें, किस्सा कहानी सुनाते हैं। यह काल के नीचे के लोकों के लोग हैं, उन्हीं का वर्णन किया जाता है। उससे अच्छे बुरे कर्मों की जानकारी नहीं हो पाती है। कर्म करना कैसे चाहिए? धर्म कर्म, आत्मा परमात्मा है क्या चीज? सन्त, सतसंग मिलता नहीं है। सन्तों का सतसंग मिलता है तब तो हर तरह की जानकारी हो पाती है। तो जीवात्मायें फंसने लग गई, कर्म खराब होने लग गए। जैसे अंधविश्वास स्वार्थ में लोग बलि चढ़ा, चढ़वा देते हैं। किया तो धर्म समझकर लेकिन वह अधर्म पाप हो गया तो उसकी सजा मिलने लग गई।

मानव व जीव हत्या जैसा पाप करने पर नरकों में सजा भोगना पड़ता है

नरकों में बड़ी सजा मार कुटाई जलाते झुलसाते कांटों पर लेटाते हैं। तब जीव चिल्लाए। जैसे आप बहुत से लोगों को बुखार दस्त सिर दर्द होता है तब कहते हो भगवान हमारी तकलीफ आप ही दूर कर पाओगे, बढ़िया से बढ़िया डॉक्टर को दिखाया, नहीं ठीक हो रहा, आप ही दया करो। तब आप याद करते हो जब तकलीफ आती है तो कहा गया-

 दु:ख में सुमिरन सब करै सुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करै तो दु:ख काहे को होय।।

अगर प्रभु को बराबर याद करने की आदत डाल लो, बराबर उसके पास फरियाद लगाने लग जाओ अपने अच्छे भविष्य के लिए तो फिर आपका खराब समय नहीं आएगा। वह तो दयालु है दीनबंधु उनका नाम है, वह तो दया करेंगे।

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