सुनो-सुनो ऐ मेरे भाई अपना स्वार्थ नही है कोई, शाकाहारी बना रहे हैं नर्को से बचा रहे हैं - सन्त उमाकान्त जी

  • भजन करने से शरीर में ताकत और बुद्धि तेज प्रखर होती है फिर कोई भी काम हो सफलता मिलती है
  • नामदान लेने के बाद मिला कर्ज से छुटकारा

उज्जैन (म.प्र.) । निजधामवासी परम सन्त बाबा जयगुरुदेव जी के एकमात्र आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, आदि काल से चले आ रहे पांच नामों का नामदान देने में सक्षम, इस समय के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 28 सितम्बर 2022 प्रातः सोनीपत (हरियाणा) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि अकाल मृत्यु किसे कहते हैं। चाहे ओला पत्थर गिरने से दब के मर जाए, चाहे जमीन फट जाए धंस जाए, चाहे आग लग जाए जलकर मर जाए, पेड़ से गिरकर मर जाए, ट्रेन बस से कुचल कर के मर जाए उसको अकाल मृत्यु कहते हैं। 

अकाल मृत्यु ज्यादातर उसकी होती है जिसका कोई रखवाला, सभांल करने वाला, सहारा नहीं होता। तो संभाल करने वाले को जब हम पकड़ लेते हैं तो जैसे बहुत से लोग जयगुरुदेव नाम जो प्रभु भगवान का बताया गया, गुरु महाराज ने जगाया था और जिस नाम में अब भी ताकत है और जयगुरुदेव नाम की रट लगा लिया और (संकट में) जयगुरुदेव मुंह से निकला तो आदमी ने बताया जैसे किसी ने ऐसे (पीछे) ढकेल दिया हो और ऐसे गाड़ी आगे से निकल गई। नहीं तो अगर आगे बढ़ जाते एकदम से भी आगे बढ़ जाते तो समझो गाड़ी के नीचे आ जाते। मतलब संभाल रक्षा हुई।

सन्तों की परंपरा रही है अपना उत्तराधिकारी बनाने की

महाराज जी ने 18 सितंबर 2022 प्रातः जम्मू में दिए सतसंग में बताया कि सन्तों की परंपरा रही है कि जब उनको जाने का  होता है तब वह दूसरे को चार्ज दे देते हैं और बता करके जाते हैं कि यह इस काम को देखेंगे, हमारा काम करेंगे। शिष्य तो बहुत रहते हैं उनके लेकिन किसी एक का नाम खोल करके जाते हैं, जितने भी गये। अब उस नाम को वही (उत्तराधिकारी ही) बताते हैं और जब वह बताते हैं तो उससे लोगों को फायदा लाभ होता है। अगर कोई और शिष्य नामदान देने लग जाए तो इतिहास उठा कर के देख लो, वह शाखा बढ़ती नहीं है, बस एक-आध पुश्त के बाद खत्म हो जाती है। लेकिन जिसके लिए कहते चले जाते हैं वह शाखाएँ बढती चली जाती है क्योंकि उसमें ताकत आ जाती है। तो यह परंपरा कोई नई नहीं है, बहुत दिनों से चली आ रही है। गुरु महाराज जाने से पहले मुझ नाचीज के लिए हुकुम दे करके गए थे, सतसंग में बता कर के गए थे कि नए लोगों को नाम दान देंगे और पुरानों की सभांल करेंगे तो बराबर दोनों काम करता रहता हूं।

ध्यान भजन करने से बुद्धि तेज होती है

महाराज जी ने 19 दिसम्बर 2021 प्रातः हमीरपुर (उ. प्र.) में दिये संदेश में बताया कि जब भजन आदमी करने लगता है तो शरीर में ताकत आ जाती है, बुद्धि प्रखर, तेज हो जाती है। उस तेज, प्रखर बुद्धि से कोई भी काम करता है तो कामयाब हो जाता है। जैसे कहते हो अरे कोई व्यक्ति तो बुद्धिहीन है, यह क्या कर पाएगा? कुछ नहीं कर पाता। और बुद्धिमान आदमी दुकान खोल ले तो समझ लो कि दो ही साल के बाद दो दुकान खुल जाएगी। और मूर्ख आदमी को बैठा दो तो सब बेच कर खा जाएगा, कुछ नहीं बचेगा। लागत भी चली जाएगी। मोटी बात समझो। भजन में बैठने की आदत डालो और मन से लड़ाई लड़ो। मन से कहो रुको थोड़ी देर। जितनी देर में बैठा हूं इतनी देर रुको। धीरे-धीरे यह रुकने लगेगा।

नजदीक वाले धोखा खा जाते हैं

महाराज जी ने 31 मई 2020 सायं उज्जैन आश्रम में दिये संदेश में बताया कि आपको महात्माओं की बात को याद रखना चाहिए। उनके रक्त के, उनके खून के, उनके खानदान के समझ लो नजदीकी लोग उनको क्या समझेंगे? महात्मा की बात को क्या याद रखेंगे? गुरु महाराज ने अपने गुरु महाराज को समझा। इसीलिए कहा जाता है नजदीक वाले धोखा खा जाते हैं। क्योंकि नजदीक वालों को मान-सम्मान ज्यादा मिलता है और मान-सम्मान के चक्कर में फंस जाते हैं, अपने असली काम से दूर हो जाते हैं। छोटा बनना भूल जाते हैं और छोटा जो नहीं बनता है, लघुता जिसके अंदर नहीं आती है, प्रभुता उसके अंदर आ नहीं पाती है। प्रभु बहुत दूर रहता है तो धोखा खा जाते हैं।

नामदान लेने के बाद कर्ज से छुटकारा मिल गया

महाराज जी ने 29 मई 2020 सांय उज्जैन आश्रम मे दिये संदेश में बताया कि पहले मैं गया था। नेपाल जाता रहता था प्रचार में। तो वहां के लोगों ने बताया कि जब से नामदान लिया इन लोगों ने तब से खाने पहनने की कोई दिक्कत नहीं रही और कर्जा सबका अदा हो गया। नहीं तो यह कर्जदार ही रहते थे। हमने पूछा कैसे? मेहनत नहीं करते थे? बोले मेहनत तो खूब करते थे लेकिन शराब पीते थे। तब शराब पीने का पैसा अनाज के व्यापारी से उधार ले आते थे। और जैसे ही अन्न पैदा होता, खलियान में आता और निकलता, व्यापारी आते, बैलगाड़ी भरकर चले जाते थे तो इनके पास बचता ही नहीं था। फिर कर्जा लाते और उससे इनकी गृहस्थी चलती थी। खानपान गंदा था, भैंसा मुर्गा बकरा सांप कछुआ सब खा जाते थे। लेकिन अब यह सात्विक, शाकाहारी हो गए, शराब इन्होंने छोड़ दिया और भजन ध्यान सुमिरन करने लग गए। मालिक उनको बरकत दे रहा है। दूसरी बार की घटना है, एक बार गये नदी के किनारे ठहरे थे। हमने देखा छोटे-छोटे बच्चे नदी में नहा कर के आए और बैठ गए तुतला कर बोलने लगे जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयजय गुरुदेव तो ऐसे संस्कार बनता है, बदल गये।

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