गुरु महाराज एक का दस गुना देते हैं, जरूरत पड़ने पर कई गुना करके भी देते है


  •  सेवा से कर्म कटते हैं, ऐतिहासिक निर्माणाधीन बाबा जयगुरुदेव मंदिर में सेवा करके इतिहास में नाम लिखा लो, है सुनहरा मौका
  • गुरु महाराज एक का दस गुना देते हैं, जरूरत पड़ने पर कई गुना करके भी देते है
  • जो आपके पास है वो दे दो और गुरु महाराज जिनके पास सब कुछ है, उनसे वो ले लो

रेवाड़ी (हरियाणा)। निजधाम वासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 8 दिसम्बर 2020 दोपहर बावल आश्रम, रेवाड़ी (हरियाणा) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि समय-समय पर जो आप काम (सेवा कार्य) करते हो उसमें भी आपको कर्म काटने का मौका रहता है। जैसे आप प्रेमियों लगभग सभी प्रमुख तीर्थ स्थानों टूरिस्ट स्पॉट पर, त्रयोदशी को, पूर्णिमा को या समय-समय पर लोगों को भोजन खिलाते, भंडारा चलाते, भोजन के पैकेट बांटते, गरम कम्बल बांटते रहते हो, इसमें भी तन मन धन की सेवा का मौका आपको मिलेगा। ये जो जिला रेवाड़ी में गुरु महाराज का चिन्ह बाबा जयगुरुदेव मंदिर, बावल में बनने जा रहा है, इसमें भी सेवा का मौका मिलेगा, तरह-तरह की सेवाएं रहेंगी, इसमें भी जिसके लायक जो भी सेवा हो, आप कर सकते हो। यह तो गुरु महाराज की दया से बन जाएगा। अगर आप गुरु महाराज से प्रार्थना ही कर ले गए कि गुरु महाराज आप अपना मंदिर प्रेमियों से बनवा लो तो मंदिर बन जाएगा। न भी सहयोग करोगे, अगर आप 24 घंटे में एक बार याद ही कर लोगे बाबा का मंदिर बन जाना चाहिए तो बन जाएगा।

संकल्प शक्ति काम करती है, श्रेय प्रेमी लिया करते हैं

तो आप श्रेय ले लो, इतिहास में नाम लिखा लो, आपके लिए मौका है। जो जिसके लायक सेवा है कर लो। हर तरह की सेवाएं रहती है। ऐसे कामों में तन मन धन की सेवा आपको करना चाहिए, समय निकालना चाहिए। दफ़्तर खुला हुआ है, आप अपना नाम लिखा सकते हो कि हम यह सेवा कर सकते हैं, इतना समय दे सकते हैं। तरह-तरह की सेवाए रहेंगी, पहरा लगाने की, भोजन भंडारा चलाने की, मिस्त्री, बिजली, लकड़ी, लोहे आदि का काम। निर्माण में तरह-तरह का काम रहता है।

सेवा रोज निकालो तो फिर किसी  चीज की कमी नहीं रहेगी

धन की सेवा के लिए अगर आप मन बना लो कि हमको गुरु के नाम का रोज निकालना है जैसे अपने बच्चे को जेब खर्च के लिए रोज देते हैं, रोज इंतजाम करते हैं पिता पति पत्नी को एक परिवार माने हैं, आप लोग यह सोच लो अब एक परिवार मंदिर को भी मान लो। बच्चियों! भोजन बनाती हो तो सबका हिस्से का रोटी बनाती हो। एक रोटी, दो रोटी मंदिर के नाम पर ही आटा निकाल के रख दिया करो कि हम रोटी बना कर नहीं खिला पायेंगे तो जो वहां सेवा करेंगे उसमें जो खर्चा आएगा वो करेंगे। रोज कमाते हो। इकट्ठा देने लगोगे तो मन नहीं कहेगा। और यदि कोई मन खराब करने वाला मन मुखी मिल जाएगा तो आपका मन निकाल नहीं पाएगा। रोज का रोज अगर निकालते रहो तो वही इकट्ठा हो जाएगा। इतने लोगों का इकट्ठा हो जाएगा तो फिर बहुत हो जाएगा। आप इस तरह से अगर महीने में जिसको मिलता है, वह महीने में निकालते रहोगे तो आता रहेगा तो मंदिर बनने में देर लगेगी? देर नहीं लगती है।

दो चीजों की वजह से काम लेट होता है

देखो, जब काम करने वाले नहीं मिलते और जब खर्चे में जब कमी आती है तो काम में रुकावट आती है। नहीं तो निश्चित होता है कि इतना समय इसमें लगेगा। जैसे लेंटर डालते हो तो 15 दिन तक वह खुलता नहीं है लेकिन अगर खोलने वाली नहीं मिले तो 20-30 दिन बाद खुलता है। अगर इन दो चीज की कमी नहीं रहती है तो समय से काम हो जाता है।

गुरु महाराज एक का दस गुना देते हैं, जरूरत पड़ने पर कई गुना करके भी देते है

इसमें (आई हुई भक्तों की भारी भीड़ में) बहुत से लोग ऐसे बैठे हो जिनके प्रारब्ध में नहीं था। उनको भी गुरु महाराज ने जरूरत पड़ने पर दे दिया। बहुतों को दिया। इतने अनुभव को बताने का (अभी के सतसंग में) वक्त नहीं है लेकिन समझो मालिक एक का दस गुना तो देता ही देता है और उससे भी ज्यादा की जरूरत पड़ी और भाव भक्ति है तो वह दे देता है, इज्जत बचाने, परिवार के पालन-पोषण के लिए जो जुड़े रहते हैं तो वह प्रभु गुरु दे देते हैं। देने में वो हार नहीं मानते, खूब देते हैं लेकिन लेने वाले पात्र होना चाहिए। कहते हैं- 

धरणी जालौ देखिए तहलो सभी भिखार। दाता केवल सतगुरु देत न माने हार।।

देना नहीं है लेना है 

अरे! देना नहीं है, लेना है। आप क्या दोगे? आप कुछ दिनों के लिए शरीर की सेवा दोगे, धन की सेवा दोगे, आपके पास जो है वही तो दोगे। और गुरु महाराज के पास तो सब कुछ है। तो वो आपको कोई कमी रहने देंगे? यही सोच लो कि जो आपके पास है आप दे दो और उनके पास है वह आप ले लो। यह बात तो हुई सेवा वाली। आपको बताया गया कि सेवा और भजन प्रमुख हैं। सेवा से कर्म कटते हैं, मन लगता है लेकिन भजन करना पड़ता है। तो प्रेमियों! सुमिरन ध्यान और भजन बराबर करते रहना, उसमें कोताही मत बरतना ये गुरु महाराज का आदेश है।

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