- कैलेंडर पर मत्था पटकने से मुक्ति मोक्ष नहीं मिल सकता
यमुना नगर (हरियाणा) । निजधामवासी परम सन्त बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 25 नवंबर 2018 प्रातः यमुनानगर (हरियाणा) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि दिखावे की भक्ति से भक्ति नहीं होती है। लोग कहते हैं कहीं इनका नाम लेवा कोई न रह जाए तो कोई मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा इनके नाम का बना दो और उसी में फंसे रह जाते हैं, समय निकल जाता है।
कैमरा जब चला तो लोग फोटो खींच करके लगाने लग गए, उन्हीं को भगवान मानने लग गए। चाहे कोई कबाबी, शराबी, जुआरी, कैसा भी भ्रष्ट आदमी हो और राम कृष्ण शंकर बन करके बैठ जाए, पार्वती सीता लक्ष्मी बन करके बैठ जाए तो उसी का फोटो खींच लेते हैं और उसी का बन जाता है कैलेंडर और वही कैलेंडर फोटो घर में लगा करके उन्हीं के पैर पर मत्था पटकते हैं।
कैलेंडर पर मत्था पटकने से मुक्ति मोक्ष नहीं मिल सकता
कहते कि यही हमारी मुक्ति मोक्ष कर देंगे। कोई पैमाना है किसी का? कोई भी कपड़ा पहन ले जैसे बहरूपिया आज राजा कल मुनीम परसों डकैत फिर शंकर विष्णु राम आदि बन जाएगा मांगता, घूमता, तमाशा दिखाता है। तो भिखमंगा बनके सेठ जी के पास गया, कहा दस रुपया दो तो सेठ जी ने एक रुपया निकाला। बहरुपिया बोला आरती धूप में तो आप हमारे 50 रुपैया धूपबत्ती मेवा भोग में खर्च कर देते हो। अभी केवल दस रुपया मांग रहा हूं, वो नहीं दे रहे हो। तब सेठ बोला कहां खर्च कर देता हूं? तो बोला देखो यह कैलेंडर में जो फोटो लगाए किसका फोटो है? शंकर बन करके हम बैठे और घूमे इसका फोटो खिंच गया और कैलेंडर में छपकर आ गया।
कैलेंडर को आप भोग लगाते हो, खिलाते हो। तो पैमाना कोई है नहीं। कोई कुछ भी बन जाए और लोग उन्हीं पर विश्वास कर लेते हैं। कोई कहे मूर्ति पत्थर पर हम फूल प्रसाद चढ़ा देंगे, फोटो के सामने हवन कर देंगे और हमको यह मुक्ति मोक्ष दे देंगे, मुक्ति मोक्ष तो ऐसे मिलने वाली नहीं है। इतना आसान नहीं है की चीनी का शरबत जो घोलो और पी जाओ या खिचड़ी नहीं है कि फट से मुंह में डालो अंदर चला जाए, दांत से भी न चबाना पड़े। उसके लिए तो आपको कुछ मेहनत करनी पड़ेगी। तो आपको एकदम सरल रास्ता नामदान का बताया जा रहा।
जयगुरुदेव नाम रटाया क्यों जा रहा है
कोटि-कोटि मुनि जतन कराही, अंत नाम मुख आवत नाही।। आखरी वक्त पर जब तकलीफ होती है और उस समय पर नाम अगर मुंह से निकल जाए तो नामी मदद कर दें। लेकिन रटा, याद नहीं रहता है इसीलिए भूल जाते हैं। रटी हुई चीज जल्दी नहीं भूलती है। रामलीला हो रही थी। हनुमान जी की हो गई तबीयत खराब। अब लोगों ने कहा हनुमान जी किसको बनाए? सोचा, बोला थोड़ा मोटा तगड़ा होना चाहिए। रावण भी बनता था मोटा तगड़ा। तो किसको बनाएं? किसी ने कहा दुकान वाले मोटे हलवाई को। उससे पूछा हनुमान बनोगे? तो अंतर में बहुत खुश हुआ कि हमारा फोटो खींच जायेगा, लोग हमारा पैर छुएंगे, हमारी कीमत बढ़ जाएगी। फिर सोच के बोला हम कैसे बोलेंगे?
लोगों ने कहा हम तुमको सिखा देंगे। कमरे में ले गए सिखाए, बुलवाये बोल भी ले गया। लोगों ने इसको पेश कर दिया। स्टेज पर गया जहाँ रावण बैठा हुआ था। एकदम से रावण देखते ही डरा, कांपा। और जब रावण ने डांटा, ऐ बंदर! कौन है तू? क्या है तेरा नाम? तो हलवाई सब भूल गया। बोला, सरकार की दुहाई हम रामदास हलवाई। अपना जो नाम रटा हुआ था वही बता दिया। ऐसे ही जब जयगुरुदेव नाम रटा दोगे तो संकट में मुंह से जयगुरुदेव नाम ही निकलेगा तो यह जगाया हुआ नाम है तो वह मालिक मदद कर देगा।
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