नए वर्ष मे संकल्प बनाओ कि जहां कहीं भी नामदान होगा दस-पचास को न सही दो-चार को ही नाम दान दिलाएंगे



बराबर खूब प्रचार करके पहले से नामदान के बारे में बता समझा करके लोगों को लाओगे तो बाद में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी

इस कलयुग में जीवों के उद्धार का सबसे सीधा सरल रास्ता नामदान ही है

उज्जैन (मध्य प्रदेश)। निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उतराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, दुःखहर्ता, त्रिकालदर्शी, परम दयालु, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने  1 जनवरी 2023 प्रात: उज्जैन आश्रम में दिए सन्देश में बताया कि आप लोग पहले से नामदान के बारे में बता समझा करके फिर लोगों को सतसंग में लाओगे तो बाद में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। यदि कोई नया व्यक्ति सतसंग को धर्म-कर्म का संदेश या अन्य साधु महात्मा का जैसे लोग कथा भागवत प्रवचन सुनाते हैं वैसा समझ करके अगर कोई सुनने के लिए आया और नामदान मिल भी गया तो भी वो भजन, ध्यान, सुमिरन नहीं करेगा। वो कहीं न कहीं से तो जुड़ा रहता है, कोई न कोई देवी-देवता भगवान को मानता है, उन पर है उनका विश्वास है, फिर वही पकड़ लेता है तो यह नया रास्ता मिल नहीं पाएगा, उसको ये सहज योग मिल नहीं पाएगा, वह कर नहीं पाएगा, सीधे सरल मार्ग पगडंडी रास्ते पर चल नहीं पाएगा।

बलि चढ़ाने से देवता खुश नहीं बल्कि नाराज होकर सजा देने लगते हैं

वह तो कहता है पिता, दादा भी राम कृष्ण जपते रहें, विष्णु शिव को मानते रहे, पेड़ को भगवान मानते रहे, पत्थर को ही उन्होंने मान्यता दे दिया था, बकरा काटते रहे तो हम भी काटेंगे। उसको पता ही नहीं है कि बकरा मुर्गा काटने चढ़ाने से देवता कभी खुश नहीं होते बल्कि और नाराज होकर सजा दे देते हैं। उसने भगवान, देवी-देवताओं को देखा नहीं, किसी ने बता दिया उसी पर विश्वास कर लिया तो उसी में वह फंस जाता है, जयगुरुदेव नाम नहीं बोलता है। कहता है हमारा वही ठीक है, हम उसी में मस्त हैं, उन्होंने हमारी तकलीफ को दूर किया था, उन्होंने ही हमारे भूत को छुड़ाया था, उन पर से उसका विश्वास हटता नहीं है। एक म्यान में दो तलवार रह नहीं सकती हैं। जब उधर से ध्यान हटता है इधर लगाया जाता है तभी तो उधर (अंतर में) लगेगा।

टंट घंट किसको कहते है

अब यह जरूर है कि उधर ज्यादा टंट घंट करना पड़ता था। जैसे जमीन लीपो, गंगा जल से स्नान करो, गंगा जल से शरीर को पवित्र करो फूल पत्ती नयवेद लाओ हवन, जौ, तिल, मेवा, घी फूल पत्ती लाओ। फिर वेद मंत्र पढ़कर के आहुति दो तो देवता खुश होंगे तब कुछ देंगे। वहां तो ज्यादा करना पड़ता था, इसमें तो चुपचाप एकांत में बैठकर के कहीं भी याद कर लो, सुमिरन कर लो, ध्यान लगा लो। बैठे-बैठे लेटे-लेटे न मौका मिले तो लैट्रिंग में ध्यान लगा लो। इसको तो कर ही सकता है लेकिन मेन चीज यह है कि विश्वास हो जाये। विश्वास नहीं होगा तब तक कुछ नहीं होने वाला है। इसलिए विश्वास वहीं से दिला करके लाओ कि इतना दिन तुमको करते हुए हो गया, अभी तुमको क्या मिला। यह देखो तुमको अब लेकर के चल रहे हैं, नाम दान दिलाएंगे, नाम की कमाई करवाएंगे, सुमिरन, ध्यान, भजन करवाएंगे। जो वह (महाराज जी) बताएंगे तो करना तो देख लेना तुम को क्या मिलता है।

यह वही नाम है जिसको सुमिर करके हनुमान ने राम को अपने बस में कर लिया था

अब तक किताबों को पढ़ते रहें, खूब बजरंग बाण दुर्गा शक्ति, हनुमान चालीसा का पाठ करते रहे, खूब गीता का पाठ और रामायण की चौपाइयां रटते रहे, तुमको क्या मिला? यह देख लेना और अब उसी का फल तुमको मिलने जा रहा है।  उन नामो के द्वारा हनुमान ने राम को अपने बस में कर लिया था, वह नाम आपको मिलेगा, इतना समझा कर के जब लाओगे तो बड़े चाव से नाम नादान लेगा और करेगा भी इच्छा उसके अंदर जग जाएगी।

नए वर्ष में संकल्प बनाओ कि लोगो को रोजी-रोटी में बरकत और नामदान दिलाकर आत्मा को सुख पहुंचाएंगे

सभी लोग नए वर्ष में संकल्प बनाकर जाओ कि जहां कहीं भी नामदान होगा, दस-पांच जितने को भी आदमियों को आप समझा करके पहुंचा सकते हो, उतने को पहुंचा करके नामदान दिलाएंगे, भजन सुमिरन का आनंद दिलाएंगे, उनकी आत्मा, शरीर को सुख पहुंचने का यह जो संसाधन है, रोटी रोजी जिसमें बरकत नहीं होती है, इसकी हम व्यवस्था करा देंगे, इसमें बरकत दिला देंगे।

सबसे बड़ा परमार्थी काम लोगों के शरीर और आत्मा को सुख पहुंचाना होता है

आप संकल्प अगर बना करके जाओगे तो संकल्प पूरा होता ही होता है। लेकिन जो संकल्प नहीं बनाता नहीं पूरा होता। संकल्प एकदम से भी पूरा नहीं होता है। क्यों क्योंकि अहंकार आ जाएगा। फिर तो कहोगे हमारे कम मेहनत में ऐसा हो गया। इसीलिए गुरु अपने हाथ में कुछ रखते हैं की अहंकार न आ जाए। लेकिन जब आगे नहीं बढोगे तो मंजिल तक कैसे पहुंचोगे? दस-पचास को नहीं ला सकते तो दो-चार को, नए लोगों को समझा कर के, जहां जाओ वहीं लेते जाओ, उसका भी भला हो जाएगा। सबसे बड़ा परमार्थी काम यही है कि शरीर और आत्मा को सुख पहुंचाया जाए, इससे बड़ा और कोई परमार्थी काम नहीं है।

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