संकल्प बनाओ कि किसी भी जीव का मांस नहीं खाएंगे, नहीं मानोगे तो कुदरत सख्त सजा देने को है तैयार
मांस मुर्दा खाकर पेट को कब्रिस्तान बनाकर अपवित्र शरीर से पूजा-पाठ करते हो इसलिए प्रभु आपसे खुश नहीं हो रहा और तकलीफ पा रहे हो
सांगारेड्डी (तेलंगाना)। निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, त्रिकालदर्शी, दयालु, दुःखहर्ता, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 15 जनवरी 2023 प्रात: जिला सांगारेड्डी (तेलंगाना) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित सन्देश में बताया कि कलयुग में लोग अपने धर्म-कर्म को भूल गए। धर्म को तो आप मानते हो, कहते हो मैं धार्मिक हूं, गीता रामायण वेद-पुराण का अध्ययन करता हूं लेकिन धर्म को मानते जानते नहीं हो कि क्या है। गोस्वामी जी ने कहा सबके अंदर मालिक की रूह, अंश है। तो उन पर दया करो। देखो यहाँ राम भगवान का मंदिर है, प्रवचन-अनुष्ठान होते रहते होंगे लेकिन गोस्वामी जी महाराज जो धर्म के बारे में लिखकर के गए उसको या तो जानते नहीं या तो मानते नहीं। उन्होंने लिखा- धर्म न दूजा सत्य समाना, आगम निगम पुराण बखाना। सत्य जैसा कोई धर्म ही नहीं होता। आप यह समझो- दया धर्म तन बसै शरीरा, ताकर रक्षा करें रघुवीरा। उस मालिक के बनाए जीवों पर दया करो, सबके अंदर जीवात्मा है।
बना नहीं सकते तो मारने काटने का अधिकार किसने दिया? सजा मिलेगी
मुर्गा बकरा भैंसा आदि को प्रकृति भगवान ने बनाया है। जो जीवात्मा आपके अंदर है वही उसके अंदर है। दया करो। लेकिन दया नहीं करते हो। मार-काट के पेट को कब्रिस्तान बना लेते हो। कब्रिस्तान पर कोई पूजा-पाठ करता है? नहीं करता। जैसे किसी का बच्चा मर जाए तो कहते हैं मुर्दा को मिट्टी को ले जाओ, जलाओ नहीं तो बदबू सड़न पैदा हो जाएगी। यही जीवात्मा जब निकल गयी मुर्गा बकरा के शरीर से तो वो मुर्दा हुआ कि नहीं? अब उस मुर्दे को जुबान के स्वाद के लिए तुम पेट में रखोगे, उसके मांस को खाओगे तो दया है तुम्हारे अंदर? नहीं रह गया। मार दिया, काट दिया। आप कहो हम बहुत बड़े धार्मिक है लेकिन कैसे माना जाए कि आप धार्मिक हो तो आप जीवों पर दया करो।
इतना पूजा-पाठ, अनुष्ठान होते हुए भी देवी-देवता क्यों नाराज होते जा रहे हैं
आजकल देखो कितना पूजा-पाठ, अनुष्ठान होता है, देवताओं को खुश किया जाता है लेकिन अगर देवता, पवन, मेघराज खुश होते तो जरुरत जितना पानी देते जैसे सतयुग में जब जिस खेत को जितनी जरूरत पड़ती थी तब उसको उतना पानी देकर जाते थे। फिर वह बाढ़ क्यों लाते, इतना ज्यादा बारिश, ओला पत्थर गिरा करके आदमियों को क्यों दु:खी करते? कारण है कि आपकी पूजा कबूल नहीं होती है। मांसाहार करके इस शरीर को श्मशान घाट बना दिया। जो भी खाते हो उसी का खून बनता है, उसी से हाथ-पैर चलता है। आप शरीर से ही तो पूजा-पाठ करते हो, हाथ से ही तो फूल-प्रसाद, हवन, अगरबत्ती जलाते हो, पैर से ही चलकर के घर से मंदिर में आते हो, मुंह से ही तो स्तुति-प्रार्थना बोलते हो तो आपने सब अंग तो गंदे कर दिए तो देवता खुश कैसे होंगे? नहीं होंगे।
जब तक अंतरात्मा साफ नहीं होगी तब तक पूजा-पाठ कबूल नहीं हो सकता
मंदिर में कोई गंदगी फेंक दे तो कोई पूजा-पाठ नहीं करेगा। कहोगे गंदी जगह पर कबूल नहीं करेंगे। ऐसे ही जब तक अंतरात्मा साफ नहीं होगी, कुछ नहीं कबूल होता है। धर्म को आज समझने की जरूरत है। अहिंसा परमो धर्म: जिसको कहा गया, वह अपनाओ। जीवों पर दया करो। कोई भी जीव को मत मारो।
कुछ लोग यह भी प्रश्न कर सकते हैं
कि मैं मारता काटता नहीं, मैं तो केवल मांस मछली को पैसा देकर, खरीद करके लाता हूं। अगर आप न खाओ तो जानवर काटे नहीं जायेंगे। सबको पाप लगता है, मारने, काटने, बेचने, खरीदने, लाने, खाने वाले सबको। यहीं राम भगवान की, देवी की मूर्ति है आज इतने ही लोग यहां (सतसंग स्थल) से संकल्प बना करके जाओ कि अब से हम मांस नहीं खाएंगे। आपके मांस खाने की वजह से ही जो बकरा काटे जाते हैं या काटे गए, तो पाप लगा। तो उससे, जीव हत्या से तो बच जाओगे। जीवों पर दया करना बहुत बड़ा पुण्य है। जीव हत्या करना बहुत बड़ा पाप है, इसकी सजा भोगनी पड़ती है। जो गल काटे और का अपना रहा कटाय, साहब के दरबार में बदला कहीं ना जाय। आज नहीं तो कल बदला देना पड़ेगा। आज मारोगे, काटोगे या आपकी वजह से काटे जाएंगे तो कल आप काटे जाओगे, सजा मिल जाएगी। पडोसी कहते हैं कि सजा मिल रही ये तो इसी के लायक था, काम ही ऐसे गलत करता था। तो आप दया करो, दया सबसे बड़ा धर्म है।
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