भक्ति, मुक्ति और आदेश का पालन करने का समय आ रहा है
जीवात्मा को मुक्ति कैसे मिलेगी, इस पर विचार करने की जरूरत है
उज्जैन (म.प्र.)। निजधामवासी वक्त के महापुरुष विश्व के मसीहा बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु मुर्शिद-ए-कामिल, स्पिरिचुअल मास्टर, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 20 मार्च 2023 प्रात: उज्जैन आश्रम (म.प्र.) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि 23 मार्च को मुक्ति दिवस मनाया जायेगा। सुबह 6 से 8 के बीच अपने-अपने घरों पर सफेद कपड़े पर लाल रंग से लिखा हुआ जयगुरुदेव नाम का झंड़ा फहरायेंगे फिर अपना ध्यान भजन सुमिरन सतसंग यह सब करेंगे, दोपहर में भोजन कर लेंगे।
मुक्ति दिवस क्यों मनाते हैं
जब से गुरु महाराज जेल से बाहर आए थे तब से यह नियम से मनाया जा रहा है। गुरु महाराज की दया रही और सतसंग की दया मौज हो गई, स्वास्थ्य सही रहा तो उज्जैन आश्रम (संपर्क 9575600700) 22 शाम 4:30 को सतसंग व नामदान और 23 प्रात: 5 बजे से ध्यान, भजन, झंड़ारोहण होगा। एक समय ऐसा आया की जब तानाशाह सरकार ने गुरु महाराज को जेल में बंद कर दिया था। गलती उनकी थी कि वह भविष्य की बातों को बताया करते थे। जो भी बात बता कर के गए, एक-एक बात सत्य हो गई। लेकिन उस समय उन लोगों की आंखों पर पर्दा पड़ा हुआ था। मनुष्य शरीर में रहने वाले वक्त के महापुरुष विश्व के मसीहा बाबा जयगुरुदेव जी महाराज यानी अपने गुरु महाराज को वो लोग समझ नहीं पाए। जैसे अन्य महात्माओं, भक्तों के साथ लोगों ने, राजाओं बादशाहों ने किया, उसी तरह से गुरु महाराज के साथ उन लोगों ने सुलूक किया और जेल में बंद कर दिया। 23 मार्च को गुरु महाराज जेल से बाहर निकले थे तो अपने लोग उसको मुक्ति दिवस के रुप में मनाते हैं, उसका नाम मुक्ति दिवस रख दिया गया।
जीवात्मा को मुक्ति कैसे मिलेगी, विचार करने की जरूरत है
लेकिन मुक्ति इस जीवात्मा को कैसे मिलेगी? यह भी विचार करने की जरूरत है। यह मुक्ति पा जाए, इस सारे झंझट से छुटकारा हो जाए, यह अपने वतन अपने घर अपने मालिक के पास पहुँच जाए, इस पर अपने गुरु भक्त लोगों को विचार करना है, इसकी योजना बनानी है कि मुक्ति जीवात्मा की हो जाए।
कर्म नहीं कटेंगे तो मुक्ति हो पाना मुश्किल
अपनी जीवात्मा की मुक्ति तो सब चाहेंगे लेकिन साथ ही दूसरे के भी हो जाए। तो जो यह कर्म आ जाते हैं, कुछ पिछले जन्मों के, कुछ इस जन्म में जान-अनजान में, माहौल खराब होने के कारण, कलयुग का असर होने के कारण, शरीर के अंगों से बन गए। तो इन कर्मों की भी मुक्ति हो जाए, कट जाएं। क्योंकि अगर कर्म नहीं कटेंगे तो मुक्ति हो पाना बड़ा मुश्किल हो जाता है। यही आड़े आ जाते हैं और गुरु से, गुरु के वचनों से, गुरु के सतसंग से मुख मुड़वा देते हैं। उधर से, गुरु भक्ति से आदमी का ध्यान हट जाता है। इसलिए जो बुरे कर्म है, फंसाने वाले कुछ अच्छे कर्म भी हैं, इनको नष्ट करना जरूरी है, इनकी भी मुक्ति दिलाना जरूरी है।
आगे चलकर के यह बहुत बड़ा त्यौहार का रूप ले लेगा
यह मुक्ति दिवस, भक्ति, मुक्ति पाने, लाने, परिपक्व करने का समय आ रहा है। साल में एक बार यह मुक्ति दिवस का त्यौहार अपने लोग मनाते हैं। इसको त्यौहार की संज्ञा दे दी गई है। आगे चलकर इसे एक त्यौहार के रूप में मनाया जाने लगेगा। इसका इतना बड़ा रूप शुरुआत में नहीं था। पहले थोड़े लोग थे, छोटे रूप में मनाते थे। धीरे-धीरे यह बढ़ता गया। मुक्ति दिवस के अवसर पर गुरु महाराज एक बार हमको भेजे थे। लोगों से कहा मेरी तबीयत ठीक नहीं है, यह (बाबा उमाकान्त जी) सुनाएंगे तो मैंने उस समय पर यह बात बताई थी। गुरु महाराज ने समझ लो बुलवाया था कि आगे चलकर के यह त्यौहार का रूप ले लेगा। समझो जैसे एक आदमी दस आदमीयों को भोजन कराता तो अब तो वह सौ आदमीयों को खिलाने की क्षमता वाला हो गया तो अब सौ आदमियों को भी खिला देता, बंटवा देता है। कहने का मतलब यह है कि यह एक तरह से एक त्यौहार का रूप ले लिया।
लोगों को मुक्ति-मोक्ष पाने के लायक बनाओ
चाहे दुनिया वाले अलग तरह से मनाते हो लेकिन कुछ त्योंहार अपने लोग भी मनाते हैं। दीपावली होली का मतलब समझाया जाता है। होली में आपको बताया गया था। अबकी बार इस शरीर से ऐसा कर्म करो कि जीवात्मा को इस शरीर में बंद न होना पड़े, सारी योनियों से, शरीरों से मुक्ति पा जाए, वापस न आना पड़े। इस त्यौहार में वही बात आ गई, मुक्ति दिवस के रूप में आ गई। अब कुछ ऐसा काम करना है कि मुक्ति मिल जाए और लोगों को भी मुक्ति दिलाई जाए। उसके लिए लोगों को मुक्ति-मोक्ष पाने के लायक बनाया जाए। ऐसा प्रचार-प्रसार हो एक पखवाड़ा तक कि लोग भक्ति मुक्ति को समझ जाएं कि भक्ति क्या होती है। गुरु के आदेश के पालन को गुरु भक्ति कहते हैं।
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