कार्यक्रम में आये नए लोग, पुरानों से पूछो क्यों भूख प्यास नींद की परवाह किये बिना सेवा में भूत की तरह से निरंतर लगे हुए हो



जैसे खुद काम नहीं करा पाते हो लेकिन आईएएस के एक फोन से सारे काम हो जाते हैं ऐसे ही अंतर की विद्या मिलने पर आपमें भी वैसी पॉवर आ जाएगी, सब काम बन जायेंगे 

उज्जैन (म.प्र.)। निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, अंतर की पराविद्या प्राप्ति का मार्ग नामदान देने वाले, उस रास्ते पर तरक्की करवाने वाले, जीते जी देवी-देवताओं का दर्शन कराने वाले, मुक्ति मोक्ष देने वाले, अपनी शरण में आये हुए को न तजने वाले, घर बैठे सारे काम बन जाए ऐसी शक्ति ताकत देने वाले, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बाबा जयगुरुदेव जी के 11वें वार्षिक 'मार्गदर्शक भंडारा' कार्यक्रम में देश-विदेश से आये अपार जनसमूह को 14 मई 2023 प्रातः उज्जैन (म.प्र.) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि आप लोग यहां गुरु महाराज के 11वें भंडारा कार्यक्रम की तैयारियों के लिए आए हो। अपनी इच्छा से आए हो, जिन पर विशेष दया हुई और कुछ बुलाने पर आए, कुछ आयेंगे। हर काम का एक समय होता है। तैयारीयां पूरी होने पर आओगे तो सेवा का मौक़ा निकल जायेगा। 

बड़े भी भाग्यशाली हैं जिन्हें गुरु याद करते हैं। जब गुरु की दया होती है, गुरु याद करते हैं और आवाज कान में पड़ती है, चाहे किसी के भी माध्यम से पड़े, तो उसमें दया हो जाती है। उस दया को ठुकराना नहीं चाहिए। दया हमेशा नहीं होती है, कभी-कभी होती है। दया का घाट होता है, जो घाट पर बैठते हैं, उनको दया मिल जाती है। सेवा भजन सतसंग, यही हैं घाट। इनको छोड़ना नहीं चाहिए। गुरु महाराज पूरे सन्त थे। गुरु की दया ही आपको लाई। गुरु की दया का आप लोगों ने बहुत अनुभव किया है। जब भी आपने गुरु महाराज को याद किया, किसी न किसी रूप में गुरु महाराज ने आपकी मदद किया। और ऐसे समय पर मदद किया जब आप जीवन में निराश हो गए। नए लोग जो आप आए हो, आप पुराने लोगों से चर्चा करना तो यह लोग बताएंगे कि किस तरह से कैसे गुरु की दया मिलती है। ऐसे (बड़े) कार्यक्रमों में जाने पर जानकारी होने से इन बातों को समझने से आगे भाव भक्ति में मदद मिलती है। इसलिए बराबर समझना पूछना चाहिए। 

देखो छाया में बैठे हैं। दुसरे को देकर के काम करने की, चाहे अच्छा काम हो या बुरा, करने की इच्छा होती है लेकिन इच्छा होने के बावजूद धूप की वजह से नहीं निकल रहे हैं तो सोचना पूछना चाहिए  कि अभी सेवा करने वाले को भूख क्यों नहीं महसूस हो रही? जो पसीना बहा रहा, मेहनत कर रहा, उसको यह थकावट क्यों नहीं महसूस हो रही? इसको सोचने, उससे पूछने की जरूरत होती है कि भाई तुम क्यों इस तरह से, जैसे मानो भूत की तरह से सेवा में लगे हुए हो कि काम को तुम छोड़ते ही नहीं हो, तुम्हें याद क्यों नहीं आ रहा कि हमको नींद लेना है, भोजन करना है।

एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाए

आप गलती क्या करते हो? इसे (सुमिरन ध्यान भजन) छोड़ देते हो।  बल्कि इसे तो और ज्यादा अपना काम समझना चाहिए।  यह काम अगर हो जाए, इसमें अगर तरक्की हो जाए तो समझो इसी से सब काम बन जाएगा। जैसे मेहनत से पढ़ाई करने से तरक्की होकर बड़े अधिकारी जज आईएएस पीसीएस बनते हैं ऐसे ही आध्यात्मिक पढ़ाई से भी दिमाग तेज हो जाता है। जैसे शक्ति ताकत पावर ज्ञान की वजह से कोई अधिकारी बना तो लोग उसकी बात को जल्दी मानेंगे, आपकी बात को नहीं। इसी तरह से अगर वह शक्ति, अंदर की वह विद्या आपमें आ जाए तो यह तो सारी दुनिया की चीजें बहुत आसान हो जाएंगी, बहुत आसान। जैसे सरकारी दफ्तर में आपको कोई काम कराना है, आप चाहते हो, दौड़ते हो फिर भी काम नहीं होता है और एक आईएएस ने फोन कर दिया तो तुरंत काम हो जाएगा। इसी तरह से आप भी यदि थोड़ी मेहनत कर ले जाओगे, थोड़ी भी वह परा विद्या, ज्ञान आपको मिल जाएगा, उस तरफ की तरक्की हो जाएगी तो यह सब आसान हो जाएगा। 

जैसे दिन भर 10 दफ्तरों में दौड़ते रहो, काम नहीं करवा पाते लेकिन एक आईएएस का फोन आ जाए तो तुरंत काम हो जाएगा। ऐसे ही जो इच्छा किन्ही मन माही, हरी प्रसाद कछु दुर्लभ नाही। जिले का आईएएस अधिकारी कहीं भी किसी भी विभाग से किसी को भी तलब कर सकता है, काम करा सकता है, उनसे अपना स्वार्थ भी सिद्ध कर सकता है। ऐसे ही जैसे उसके अंदर पावर आ जाती है, ऐसे ही आपके अंदर भी वह पावर आ सकती है। तो जब वह चीज सध जाएँगी तो यह काम जिसे आप अपना काम कहते हो, शरीर को चलाने का, गृहस्थी का बच्चों का पालन पोषण करने का, गृहस्थ धर्म पालन करने का, यह सब करने की ताकत शक्ति आ जाती है। मोटे तौर पर समझो जैसे आप 10 बार दौड़ कर जाते हो फिर भी अपना उधार दिया हुआ रुपया वापस नहीं ले पाते हो, वो नहीं देता है और कोई खुद ही आपको देने आ जाए तो कहोगे कि ये तो दैवीय कृपा हो गयी। तो समझो, मतलब की बात को पकड़ लो।

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