सुमिरन ध्यान भजन में मन क्यों नहीं लगता, तरक्की क्यों नहीं होती

इस समय आटा दाल का मिलना कठिन है, भगवान का मिलना आसान है

उज्जैन (म.प्र.)। इस घोर कलयुग के समय जीते जी प्रभु प्राप्ति के मार्ग को आसान से आसान करने वाले, सहज साधना से मृत्यु के पहले मुक्ति मोक्ष निर्वाण दिलाने वाले, साधना में तरक्की देने वाले, कर्मों को काटने वाले, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 21 जनवरी 2023 प्रातः विकोटा (आंध्र प्रदेश) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि कहते हो ध्यान भजन सुमिरन में मन नहीं लगता है तो मन कहां जाता है? 

खाने, घूमने, ऐश आराम में तो समझ लो शरीर से बुरे कर्म उन्ही अंगों से बने हैं। इसलिए उन कर्मों को काटना जरूरी है नहीं तो सजा मिल जाएगी। आज तक कर्मों से कोई बच नहीं सका। धृतराष्ट्र ने कृष्ण से पूछा मैं अंधा क्यों हो गया? बोले तुम्हारे किये बुरे कर्म की यह सजा मिली है। कहा इस जन्म में तो मैंने कोई बुरा कर्म किया ही नहीं। बोले पिछले जन्मों में किया होगा। कहा सौ जन्मों का मुझे याद है, कोई बुरा कर्म नहीं किया। बोले और पीछे देखो, 106 जन्म पहले जो बुरा कर्म बन गया था उसकी सजा भोगनी पड़ी।

सुमिरन ध्यान भजन में तरक्की क्यों नहीं होती है

सुमिरन ध्यान भजन का झाड़ू अगर रोज लगता रहता है तो कर्मों की सफाई होती रहती है। तो वह भी कि रोज कौन कितना करता है। वह भी अगर पूछा जाए, हाथ उठवाया जाये कि ह्रदय पर हाथ रखकर कहो, आप कितनी देर करते हो जो गुरु महाराज ने कहा था एक घंटा सुबह, शाम करना, कोई करता है? बमुश्किल एक-आध आदमी हाथ उठाओगे। 

और वह भी करने वालों से पूछा जाए कि भाई साधना में कुछ दिखाई सुनाई पड़ता है? तो चुप हो जाओगे। कभी सुनाई दिखाई पड़ा? तो बोलोगे नहीं, सिर हिलाओगे। थोड़ा बहुत कहीं किसी को मिल गया तो विश्वास हो गया लेकिन आगे नहीं बढ़ पाते हो। उसका यही कारण है कर्म की सफाई नहीं होती है। कर्मों को काटने के लिए ही कहा है प्रचार करो। गुरु महाराज का मिशन सतयुग लाने का उसको पूरा करो।

इस समय आटा दाल का मिलना कठिन है भगवान का मिलना आसान है

22 जनवरी 2023 दोपहर मालूर (कर्नाटक) में बताया अब तो गुरु महाराज नहीं रहे लेकिन वो बराबर सतसंग में कहा करते थे कि भगवान मिलेगा तो तुमको मनुष्य शरीर में मिलेगा। ज़िंदा रहते-रहते भगवान मिलेगा। कभी भी मरने के बाद न भगवान मिला है और न मिलेगा। बच्चा! आटा दाल का मिलना इस समय पर कठिन है लेकिन भगवान का मिलना बहुत आसान है।

हर पूर्णिमा को आयु उम्र का हिसाब होता है

9 मार्च 2020 सांय उज्जैन आश्रम में बताया कि पूर्णिमा तिथि के दिन आयु का हिसाब होता है। हर आदमी को गिन करके साँसों की पूजी खर्च करने के लिए मिलती है लेकिन वह जैसा खर्चा करता है उसी हिसाब से उसकी उम्र होती है। कोई 100 साल कोई 90 साल जिंदा रहता है, कोई 18-20 साल में ही चला जाता है। तो बैठे रहने पर सांस कम खर्च होता है। चलने पर ज्यादा, सोने पर उससे ज्यादा और भोग में बिताने पर सबसे ज्यादा खर्च होता है। 

कहते हैं भोगी आदमी की आयु बहुत कम हो जाती है। जो योग करते थे, अपने जीवात्मा को निकाल कर ऊपरी लोकों में ले जाते थे, उनके श्वांस बचे रहते थे। तो ऋषि मुनि बहुत दिन जिंदा रहा करते थे। तो आदमी की आयु का हिसाब कब होता है? पूर्णिमा के दिन। जैसे मजदूरी नौकरी में गैर हाजरी लगने पर तनख्वाह में से कटता है ऐसे ही आयु का हिसाब होता है। गृहस्थ आश्रम में आदमी से जान-अनजान में कुछ पाप बन जाते हैं जिससे उम्र ज्यादा कट जाती है। तब लोग उसको बचाने, माफ कराने के लिए सन्तों के आश्रम पर जाते थे और जब उनकी दया हो जाती थी तो बहुत से कर्म ऐसे ही नष्ट हो जाते थे।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ