सन्त बाबा उमाकान्त जी ने बताई गुरु की असली पहचान

जिस आंख से शिव दिखाई पड़ते हैं वह शिव नेत्र कहलाता है

लखनऊ (उ.प्र.)। पेड़ पौधे मिट्टी पत्थर कागज़ कहानी से आगे बढ़कर शिव नेत्र खोलने का तरीका बताने वाले, कोरे ज्ञान और थ्योरी से अलग प्रैक्टिकल करवाने वाले, अनुभव करवा देने वाले, गुरु की असली पहचान बताने समझाने वाले वक़्त के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 10 मार्च 2021 दोपहर लखनऊ (उ.प्र.) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि शंकर जी का लोक नीचे है। दोनों आंखों के बीच में जो एक आंख बताई गई, जिधर से जीवात्मा उतारी गई, वह सुराख चार अंगुल पीछे हैं। लेकिन जैसे कोई सुरंग हो, उधर (दूसरी तरफ) की जो रोशनी lहोगी, (उसका स्रोत) दूर भी होगा, गहरा भी होगा तो इधर से देखोगे तो मालूम पड़ेगा रोशनी बहुत नजदीक है। सुरंग बहुत नजदीक दिखती है। ऐसे ही यहीं से सुराख दिख जाता है तो उसको तीसरी आंख, थर्ड आई कहते हैं। जान-अनजान में लगे कर्मों की वजह से नहीं दिखता है। उनके रगड़ मारोगे तो वह पर्दा हट जाएगा, (नामदान) बताऊंगा। जब नाम की जड़ी रगडोगे तो तब वह पर्दा हटेगा तो सीधे शिव दिखाई पड़ेंगे। जिस आंख से शिव दिखाई पड़ते हैं, वह शिव नेत्र कहलाता है।

सन्तों की दुनियावी इच्छाएं खत्म हो जाती है

सुपच छोटी जाति के थे। जंगल में रहते थे, बहुत साधारण। इसी (आई हुए भीड़) में तमाम साधक बैठे हुए हैं। पता नहीं चलेगा कि किस के अंदर क्या शक्ति है। दुनिया की इच्छा उनके अंदर खत्म हो जाती है। इंद्रियों का सुख, शरीर का सुख उनको नगण्य लगने लगता है। इसकी कोई इच्छा नहीं रखते हैं। अपना जहां रहते हैं, भजन भाव भक्ति करते हैं।

गुरु की असली पहचान क्या है?

कबीर सहाब ने कहा है कि- संध्या तर्पण न करूं, गंगा कभी न नहाऊ, हरि हीरा अंतर बसे, वही के नीचे छांव। प्रेमियों सन्तमत में ही नहीं, अन्य मतों में भी गुरु का स्थान ऊंचा बताया गया है। सबसे पहले गोस्वामी जी महाराज ने नर मनुष्य के रूप में हरि (गुरु) को देखा, गुरु की असली पहचान को भी बताया। श्री गुरु पद नख मणिगण ज्योति सुमिरत दिव्य दृष्टि हिय होती, पैर के अंगूठे के अगले हिस्से को याद करते ही दिव्य दृष्टि खुल जाए, अंधेरे से प्रकाश की ओर चले जाएं, रु है नाम प्रकाश का ताको करे विनाश, सोई गुरु करतार। सन्तमत में कहा गया- गुरु का ध्यान कर प्यारे, बिना इसके नहीं छूटना। गुरु के ध्यान के बगैर नहीं छूट सकते हो। गुरु ही सब कुछ होते हैं।

जिसको जैसा जितना आदेश होता है उतना काम करते हैं

कबीर साहब, नानक साहब ने बहुत प्रचार किया था सन्तमत का। बाकी जो गुरु आए, कम किए। जिसको जितना आदेश होता है, उतना ही वह काम करते हैं। उसके बाद विष्णु दयाल जी महाराज भी कम किए। दादा गुरु महाराज घूरेलाल जी महाराज ने भी कम किया। लेकिन गुरु महाराज ने ज्यादा किया। लगभग चार पुश्त तक (राधास्वामी नाम) चला। गुरु महाराज ने कहा चाहे मुझको 400 साल रहना पड़े लेकिन हम जीवों का काम करके, सतयुग ला करके ही जाएंगे। बहुत से लोग यह बात समझ नहीं पाए। अरे गुरु महाराज की शक्ति ताकत काम करेगी। गुरु महाराज का वर्णात्मक जगाया हुया जयगुरुदेव नाम है, यह काम करेगा। जयगुरुदेव नाम की शक्ति काम करेगी। इसलिए तो इस समय पर कोई नाम जगाने की जरूरत नहीं है। जयगुरुदेव नाम से ही लोगों का भला कल्याण हो रहा है।

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