अगर यही प्रवृत्ति बनी रह गई तो यह सब के सब आपस में ही लड़कर मर जाएंगे, खत्म हो जाएंगे
उज्जैन (म.प्र)। चटपटी कहानियों की बजाय इतिहास से ग्रहण करने योग्य मुख्य उपयोगी शिक्षा पर फोकस करने वाले, भविष्य की बात इशारों में बताने वाले, त्रिकालदर्शी, दुखहर्ता, उज्जैन वाले पूरे सन्त सतगुरु, बाबा उमाकान्त महाराज जी ने 12 नवम्बर 2023 दोपहर उज्जैन आश्रम में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित लाइव सतसंग में बताया कि संस्कृत का जानकार, तमिल बोलने वाला रावण प्रकांड विद्वान था। संगीतकार था, उसको नाच, गाना, शिव तांडव करना सब आता था। शिव को खुश करके बस में कर लिया था। शिव से लड़ाई करके पेश में पेश न आता लेकिन ज्यादा ताकतवर पहलवान, छोटे पहलवानों, छोटे लोगों से भी दोस्ती कर लेते हैं, कैसे भी उनको खुश करते हैं। और वो भी उनको अपने साथ मिला लेते हैं कि जरूरत पड़ने पर हमारे काम आ जाएगा ये, इसलिए शिव को खुश करके रखा था और शिव को लाना ही चाहता था। कैलाश पर्वत को उठा लेता था, इतना बलवान था। संयोग की बात यह थी कि उसका बेटा मेघनाथ और उसका भाई अहिरावण भी बलवान, बुद्धिमान थे। लेकिन रावण समान लक्षण उन्ही में थे। जैसे राम के अच्छाई के लक्षण लक्ष्मण में थे वैसे ही रावण के भाइयों के अंदर विनाशकारी लक्षण थे। वो भी ऐसे बकरा मुर्गा भैंसा गाय को उठाकर के निगल जाते थे।
रावण जैसी विनाशकारी प्रवृत्ति अब इस समय पर लोगों की हो रही है
लोग पहले लंबे, तगड़े होते थे। सतयुग में 21 हाथ के आदमी थे। इस समय तो आदमी अपने साढ़े तीन हाथ के शरीर का है। तभी तो लड़ाई लड़ने के लिए (दूर तक) चले जाते थे अरब वगैरा। इससे (अरब देशों से) भी काफी दूर तक भारत की सीमा थी। सब बँटवारा करते चले गए, यह देश बन गया, वह देश बन गया, देश के लिए तमाम लोगों को मार-काट दिया। जिस जमीन जायदाद के लिए मारे-काटे उसका कोई फायदा भी उनको नहीं हुआ, उस खानदान का भी नहीं हुआ। लेकिन दुष्टता की वही प्रवृत्ति, जिससे रावण ने अपनी सोने की लंका को खत्म कर दिया, एक लाख पूत सवा लाख नाती, जिससे ख़त्म कर दिया वही बुद्धि इस समय लोगों की हो रही है।
धनी मानी देशों के लोगों की बुद्धि हो रही ख़राब, सब एकदम से लड़ने को हो रहे तैयार
कहते हैं बहुत पैसे वाले हैं। इनके पास तेल में पैसा, इसमें पैसा, उसमें पैसा आ रहा है, बड़ा धनी मानी देश है। बहुत तनख्वाह देंगे। भारत के लोग नौकरी करने के लिए वहां भाग करके जाते हैं लेकिन अब उन्हीं लोगों की बुद्धि खराब हो रही है और वह सब एकदम से लड़ने के लिए तैयार हो रहे हैं।
सोचो जब सब आपस में लड़कर खत्म हो जाएंगे तो क्या होगा
आज के दिन उन लोगों से हम अपील करेंगे, अगर यही प्रवृत्ति बनी रह गई तो यह सब के सब आपस में ही लड़कर मर जाएंगे, खत्म हो जाएंगे। चाहे कौम की मदद करने में, कौम को बचाने में या कौम कौमियत के जज्बात में लड़ाई लड़े या ऐसे लड़ाई लड़े की हम आगे बढ़ जाएँ, कैसे भी इनकी भवाना होगी, यह सब आपस में लड़ करके कुछ दिन के बाद खत्म हो जाएंगे। लेकिन सोचो यह खत्म हो जाएंगे तब भी धरती तो वही रहेगी, पानी तो वहां भी बरसेगा, धूप वहां भी तो निकलेगी, यह जो जमीन के कब्जे के लिए है कि हमारे पास यह भी देश आ गया, हमारे पास वह भी देश आ गया, हमारे पास यह चीज हो गई, इनके कोई काम वो आएगा? धरती, कल-कारखाने कोई काम नहीं आएंगे जो एकदम से जर्जर हो जाएंगे, बिखर जाएंगे। उसको साफ करने में, बनाने में, वहां बसाने में बहुत समय लगेगा। लेकिन अब क्या किया जाए? विनाश काले विपरीत बुद्धि। जैसे रावण की बुद्धि हो गई थी, ऐसे कुछ लोगों की बुद्धि हो रही है।
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