मरने के बाद भगवान का दर्शन न तो किसी को हुआ और न आपको होगा, तो जीते जी वाला उपाय करो

पूरे जीवन भर के अनुभव की बता रहा हूँ, दुनिया का सबसे कठिन काम नामदान देना है -सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज

बावल (हरियाणा)। निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, जीते जी प्रभु के दर्शन करवाने वाले, बदले में पाप कर्मों की गठरी लेने वाले, इस वक़्त के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज जी ने संदेश में बताया कि अलग-अलग लोकों में अलग-अलग आवाज हो जाती है, छंट जाती है। आपको नामदान में बताया गया। आवाज एक ही है लेकिन अलग-अलग लोकों में अलग-अलग सुनाई पड़ती है। वहां जाने के बाद सब क्लियर हो जाता है। फिर वह शब्द नाम सुनाई पड़ता है। नाम ही केवल रह जाता है। बाकी आवाजें जो नाम का रूप ले लेती है, वह अलग हो जाती है। जैसे गंगा जब हिमालय से गिरती है तो अलग आवाज रहती है। हरिद्वार में पहुंचने पर अलग, जमीन पर बहते समय अलग और जब समुद्र में चली जाती है तो फिर आवाज बदल जाती है। ऐसे ही शब्दों से ही यह सब टिके हुए हैं। शब्दों पर ही यह निर्भर है।

दुनिया का सबसे कठिन काम नामदान देना है

नामदान देना, कोई आसान काम नहीं है। बहुत कठिन काम है। हमने तो जब से अपना होश संभाला है और हमको जब तक का याद है तब तक का, जितना भी काम शरीर से, मन से, धन से किया, सबसे कठिन काम नामदान देना ही लगा। क्योंकि शरीर, कपड़ा, गाडी, घोड़ा गंदा हो जाए तो साबुन पानी से धो लोगे, साफ कर लोगे लेकिन कर्म कैसे धोओगे? कर्मों का धोना बहुत कठिन होता है। कितना भी होशियार धोबी हो लेकिन कपड़ा धोते समय कुछ न कुछ छींटे तो उस पर पडते ही हैं (तो उसे भी सहना पड़ता है)।

कोटिन सूरज चांद सितारे, रोम रोम में करे उजारे

मरने के बाद न तो भगवान का दर्शन किसी को हुआ और न आपको होगा। यह बिल्कुल पक्की बात है। और अगर भगवान किसी को मिला, दर्शन किसी को हुआ, आवाज उसकी सुनाई पड़ी तो जिंदा रहने पर ही सुनाई पड़ी। किससे दर्शन हुआ, किससे उनकी आवाज को सुना, इन बाहरी कानों से न सुना, न देखा। उसको इन बाहरी आंखों से देखा ही नहीं जा सकता है क्योंकि वह इतना प्रकाशमान, तेजवान है, उसके अंदर इतनी रोशनी है कि कोटिन सूरज चांद सितारे, रोम रोम में करे उजारे। उसके रोम-रोम में करोड़ों सूरज चंद्रमा की रोशनी हो रही है। तो आप एक सूरज को इन बाहरी चर्म आंखों से नहीं देख सकते हो तो जिनके रोम-रोम में अरबों सूरज हैं, उनको इन आंखों से कैसे देख पाओगे? तो उसको दिव्य दृष्टि, आत्म चक्षु से देखते हैं। जिससे इसी मृत्यु लोक से शिवलोक दिखाई पड़ता है। इसीलिए जब लोगों ने शिव को देखा तो इसे शिव नेत्र कहा। वह शिव नेत्र, थर्ड आई, रुहानी आंख उससे उसका दीदार दर्शन होता है और एक कान अंदर जीवात्मा में है। जीवात्मा इन्हीं दोनों आंखों के बीच में बैठी हुई है। मां के पेट में बच्चा जब 5 महीने 10 दिन का हो जाता है तब यह जीवात्मा उसमें डाल दी जाती है। तो एक कान, एक आंख उसमें है, उस आंख से उसका दर्शन होता है। और अंदर वाले जीवात्मा के कान से जिसको अनहद वेदवाणी, आकाशवाणी, देवीय आवाज कहा गया, वह सुनाई पड़ता है।

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