भारतीय राजनीति के लिए निर्णायक बनेगा 30 मार्च

  • नागपुर में संघ और सरकार के प्रमुखों की ऐतिहासिक मुलाकात
  • संघ, समन्वय, संवाद, सरकार और भाजपा

आचार्य संजय तिवारी

नवसंवत्सर से बहुत कुछ नया होगा। खास तौर पर भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए। यह नवसंवत्सर कई मायनों में ऐतिहासिक ही होने जा रहा है। भारतीय राजनीति के लिए 30 मार्च, यानी नवसंवत्सर की तिथि एक निर्णायक पृष्ठ बनने जा रही है। स्वाधीन भारत का कोई प्रधानमंत्री पहली बार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुख्यालय में इस दिन होगा। वर्ष 2025 में शुरू हो रहे इस हिंदू नववर्ष यानी विक्रम संवत 2082 का नाम सिद्धार्थी संवत है। इस संवत में सूर्यदेव ही राजा और मंत्री दोनों पदों पर आसीन हैं। इस अप्रतिम शक्ति से संपन्न सम्राट स्वरूप का प्रभाव स्वाभाविक रूप से पड़ेगा ही। यह संवत् कितना शक्तिसंपन्न है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह सिंह लग्न में शुरू हो रहा है।

वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नागपुर में यह कार्यक्रम बहुत औपचारिक लगता है। अवसर बताया जा रहा है माधव नेत्रालय की आधारशिला रखने का। इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले अतिथियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और स्वयं संघ प्रमुख मोहन भागवत जी का नाम शामिल है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने और नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद की पूरी अवधि में यह दूसरा अवसर होगा जब मोदी जी और भागवत जी एक मंच पर होंगे। इससे पहले केवल अयोध्या में शिलान्यास और प्राणप्रतिष्ठा के अवसर पर ही ये दोनों लोग एक साथ दिखे थे। यह परिदृश्य स्वाभाविक रूप से किसी गंभीर राजनीतिक घटनाक्रम का ही संकेत दे रहा है।

राजनीतिक रूप से यह इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि पिछले लंबे समय से कई अवसरों पर केंद्र की सरकार को लेकर मोहन भागवत जी की तीखी टिप्पणियां आती रही हैं। इसी बीच लोकसभा चुनाव के दौरान ही भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा के एक बयान के बाद तो जैसे बहुत कुछ बदलता ही दिखने लगा। मोहन भागवत जी ने अनेक बार दंभ और अहंकार से मुक्त होने की नसीहतें भी दे दीं। सामान्य तौर पर यह संदेश निकला कि संघ और भाजपा में शायद सबकुछ ठीक नहीं चल रहा। मीडिया में भी इस विषय पर काफी कुछ लिखा और बोला गया। हालांकि लोकसभा चुनाव के बाद हुए राज्यों के चुनावों में बहुत कुछ बदलता दिखा। सभी चुनाव भाजपा ने बहुत ठीक से जीता लेकिन संघ और भाजपा के संबंधों को लेकर कयास के दौर नहीं रुके।

यहां एक बात स्पष्ट करना जरूरी लगता है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि संघ और सरकार में ठनी हो। अटल जी की सरकार के समय संघ प्रमुख से लेकर दत्तोपंत ठेंगड़ी जी और विश्व हिंदू परिषद तक ने बहुत गंभीर आरोप लगाए थे। उस दौर में यह तल्खी बहुत तेजी पर थी और स्थिति आज से ज्यादा भयावह थी। उस समय कैसे बीच बचाव कर के स्थिति को कैसे पटरी पर लाया गया, यह उन बैठकों में शामिल लोग ही बता सकते हैं जो अभी भी हैं।

बहरहाल , अभी चर्चा करते हैं आज के दौर की। केंद्र की सरकार या परोक्ष रूप से प्रधानमंत्री पर ही सही, संघ प्रमुख ने चाहे जितने आरोप मढ़े हों किंतु यह सत्य है कि सरकार या प्रधानमंत्री की तरफ से कभी भी संघ को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की गई। प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के लोग अनेक अवसरों पर संघ की तारीफ करते ही दिखे। प्रधानमंत्री ने हजारों बार स्वयं के स्वयंसेवक होने की बार को बड़े गर्व के साथ कहा है। अभी हाल के अपने पॉडकास्ट में ही मोदी ने संघ को विश्व का सर्वश्रेष्ठ संगठन बताया है। वह उसमे गर्व के कहते हैं कि आज मैं जो भी हूं, संघ की वजह से हूँ। प्रधानमंत्री की एक और विशेषता है कि देश के भीतर या बाहर हर जगह स्वयं को शुद्ध सनातनी हिंदू बताने और उसी अनुरूप करने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता। लगातार दस वर्षों तक सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास कहते हुए अब 2024 के लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद उन्होंने वैसा कहना भी अब काफी कम कर दिया है। 

अब यहां इस विषय पर सोचना चाहिए कि 30 मार्च को जब प्रधानमंत्री और संघ प्रमुख एक साथ होंगे और उनके पास विमर्श के लिए भी पर्याप्त अवसर होगा तो कुछ तो गंभीर बात होगी ही। यह गंभीर बात एक मुद्दे पर जरूर होगी। वह मुद्दा है भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का। समन्वय और संवाद का यह विषय वास्तव में गंभीर है। अध्यक्ष संगठन का शीर्ष है। प्रधानमंत्री सरकार के शीर्ष हैं। दोनों में समन्वय और सार्थक संवाद होगा तभी सरकार ठीक से काम कर सकेगी। विश्व के वर्तमान परिदृश्य में नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व बहुत बड़ा है। मोदी के सामने वैश्विक चुनौतियां हैं। संघ भी कभी नहीं चाहेगा कि मोदी कमजोर हों और भारत की वैश्विक शक्ति क्षीण हो। ऐसे में संगठन को एक ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है जो समन्वय और संवाद के आधार पर सभी को जोड़ कर चले। स्वाभाविक है कि ऐसे ही नाम की तलाश के बाद उसे सामने लाने के लिए संघ प्रमुख और सरकार के प्रमुख एक स्वर से संगठन को देंगे। यह इसलिए भी जरूरी होगा क्योंकि 18 अप्रैल से होने वाली बंगलुरू में भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में उसी नाम का अनुमोदन होना है। स्वाभाविक है कि यह नाम 30 को तय हो जाएगा और अप्रैल के प्रथम सप्ताह में घोषित भी हो जाएगा। यह भी तय है कि अध्यक्ष का नाम स्वाभाविक रूप से भाजपा ही सामने रखेगी , और जो अध्यक्ष होगा उसे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के समन्वय से ही चलना होगा, यह बात भी संघ को ठीक से पता है। इसलिए ये चर्चाएं बेमानी हैं कि फला नाम पर संघ को एतराज है और फलां नाम फलां की पसंद है। संघ को जो जानते हैं उन्हें पता है कि संघ हमेशा दीर्घकालिक रणनीति और योजनाओं पर कार्य करता है। व्यक्ति से ऊपर संगठन और राष्ट्र सर्वोपरि की भावना से ही मोदी जी भी कार्य कर रहे हैं और संघ का भी यही ध्येय है।


स्पष्ट है कि भाजपा के नए अध्यक्ष के नाम का कोई बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है। मुद्दे और भी हैं जिनपर इस मुलाकात में निहितार्थ तय होंगे। वे मुद्दे ही भविष्य की राजनीति के लिए संदेश होंगे। केंद्र सरकार के मुखिया और संघ के मुखिया की यह मुलाकात भाजपा और संघ दोनों की ही दूरगामी रणनीति के लिए संगठन और सरकारों को स्पष्ट संकेत देने वाली होगी। सम्भल से लेकर नागपुर तक के वर्तमान परिदृश्य पर भी दृष्टि होगी और रणनीति पर भी। नागपुर में अभी जो घटनाएं हुई हैं, यह सभी को पता है कि भीड़ तो संघ मुख्यालय तक भी जा सकती थी, ऐसे हालात तो देश के अलग अलग हिस्सों में दिखने ही लगे हैं, ऐसे में बड़ी बात यह है कि विश्व का सबसे सशक्त प्रधान मंत्री जब अपने मातृ संगठन के मुख्यालय में पहुंच कर वहां के मुखिया के साथ कोई विमर्श करता है तो कुछ तो बहुत गंभीर ही निकलेगा। अब तक की चुनावी स्थितियों से भाजपा और संघ दोनों यह जान चुके हैं कि हिंदू वोट ही उसकी असली शक्ति है। आने वाले दिन इसे सहेजने के मामले में बहुत महत्वपूर्ण हैं। कुंभ की सफलता के बाद यह आत्मविश्वास बढ़ा है कि सनातन हिंदू आस्था को महत्व दिया जाना चाहिए।

यहां इस तथ्य पर भी ध्यान देना होगा कि आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक आज से ही  बंगलूरू में होने जा रही है। इस बैठक में संघ के शताब्दी वर्ष के कार्यक्रमों पर चर्चा की जाएगी और पिछले वर्ष के कार्यों की समीक्षा की जाएगी। भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर्वोच्च निर्णय लेने वाले निकाय 'अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा' की तीन दिवसीय बैठक (21-23 मार्च) को बंगलूरू में होना निश्चित किया गया है। इस बैठक में संघ के सर्वोच्च पदाधिकारी मोहन भागवत, दत्तात्रेय होसबोले और सभी सहयोगी संस्थाओं के राष्ट्रीय अध्यक्ष और महामंत्री सहित 1480 कार्यकर्ता शामिल होंगे।

इस बैठक के सप्ताह भर के भीतर ही वर्ष प्रतिपदा यानी हिंदू नववर्ष के दिन 30 मार्च को प्रधानमंत्री संघ मुख्यालय में होंगे। उसके 18 दिन बाद ही बंगलुरू में ही भाजपा की परिषद की बैठक शुरू होगी जिसमें नए अध्यक्ष के नाम को स्वीकृत किया जाएगा।

सच यही है कि कहने के लिए कोई कुछ भी कहे लेकिन भाजपा को संघ की जितनी जरूरत है उतनी ही जरूरत संघ को भाजपा की भी है। यह समय अटल जी वाला नहीं है। आज की भाजपा ने भी अपना कुछ जनाधार बनाया है जो स्वाभाविक रूप से तैयार हुआ है। 2014 में जो बच्चा 8 वर्ष का था, आज वह भारत का वोटर बन चुका है। हां यह भी कड़वी सच्चाई है कि सत्ता में होने के कारण स्वाभाविक विकृतियां हर तरफ फैली हैं। ठीक तो उन्हें भी करना ही होगा।

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