अच्युत सामंत ने पेश की मानवता की बड़ी मिसाल

  • दुनिया का का सबसे बड़ा आदिवासी आवासीय विद्यालय है ‘कीस’
  • दशकों से आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को साकार करता ‘कीस’
  • कीस में आदिवासी क्षेत्र वाले 23 जिलों के लगभग 30 हजार गरीब बच्चे हैं।
  • कोरोना काल में मारे गए व्यक्ति के बच्चों को मुफ्त में पढ़ाएगा ‘कीट’

कोरोना काल ने जब धीरे—धीरे पूरी दुनिया को अपनी गिरफ्त में लेना शुरु किया तो उससे ओडिशा भी उससे अछूता नहीं रहा। इस महामारी के चलते इस राज्य में भी आम जन-जीवन और लोगों की आजीविका बुरी तरह से बाधित हुई। अचानक से आई इस विपदा से लोगों को बचाने लिए कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी (के.आई.आइ.टी.), भुवनेश्वर और इसकी सहयोगी संस्था कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइन्स (के.आई.एस.एस) ने अपने संस्थापक प्रो. अच्युत सामंत के नेतृत्व में एक पहल की है। 

कुछ ऐसे लड़ रहे हैं कोरोना से जंग

कोविड महामारी के दौर में आम लोगों की सेहत संबंधी चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए कीस और कीट ने लोक कल्याण की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। जाने—माने समाजसेवी और कंधमाल से सांसद डॉ. अच्युत सामंत ने ओडिशा सरकार के सहयोग से आम लोगों के अत्याधुनिक कोविड अस्पताल की स्थापना की है। 1200 बिस्तरों की क्षमता वाले इन अस्पतालों में से एक भुवनेश्वर में और तीन आदिवासी बाहुल्य जिलों में स्थित है। ओडिसा की राजधानी भुवनेश्वर के के.आई.आई.एम.एस. कोविड अस्पताल में 50 अत्यधिक महत्त्वपूर्ण देखभाल बेड सहित 500 बेड वाला भारत का पहला अत्याधुनिक स्वचलित सुविधा केन्द्र है। डॉ. सामंत के प्रयासों से बहुत ही कम समय में तैयार हुए इस कोविड अस्पताल से अब तक हजारों लोगों की जान बचाई जा चुकी है। 

कुछ ऐसे बढ़ाया मदद का हाथ

कोविड-१९ महामारी न केवल एक वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल है, बल्कि लम्बे समय तक लॉकडाउन के चलते लाखों लोगों की आजीविका को लेकर एक गंभीर मानवीय संकट भी बना है। ऐसे में एक बड़े जनसमुदाय की सेवा करते हुए कीस और कीट ने मानवता की मिसाल कायम की है। संस्था ने उन विभिन्न समूहों तक अपनी तरफ से सभी संभव मदद पहुंचाई है जो बार-बार बढ़ाये गये लॉक डाउन के कारण मुश्किलों का सामना कर रहे थे। डॉ. सामंत के निर्देश पर तीन लाख से अधिक महामारी से प्रभावित विभिन्न झुग्गियों में रहने वाले वंचित लोगों, फंसे हए प्रवासी मजदूरों एवं कंटेनमेंट जोन में रहने वालों के लिए खाद्य सामग्री और अन्य आवश्यक वस्तुओं पहुंचाई गई। साथ ही साथ इन्हें अस्थायी आश्रय भी प्रदान किया गया। 

हर समुदाय का रख रहे हैं ख्याल

कीस और कीट ने कठिन दौर में विभिन्न समुदायों से जुड़े लोगों जैसे किन्नरों, लाड़ियों, विकलांगों, यौनकर्मियों, इत्यादि तक लगातार हर संभव मदद कर रहा है। संस्था ने  लंबे समय तक लॉकडाउन चलने के कारण होने वाली दिक्कतों से निपटने के लिए भुवनेश्वर, कटक, पुरी और आसपास के शहरों में कई आध्यात्मिक केंद्रों के पुजारियों और अन्य श्रमिकों को भत्ता प्रदान किया गया है। लाकडाउन पीरियड के तीन महीने के लिए तमाम खर्चों को पूरा करने के लिए खाद्य सामग्री और नकद राशि प्रदान की है। इन दोनों संस्थानों ने कंधमाल जिले के 40 से अधिक अनाथालयों, वृद्वाश्रमों और कुष्ठ केंद्रों में न सिर्फ खाने—पीने की सामग्री वितरित की बल्कि आर्थिक मदद के रूप में नकदी भी उपलब्ध कराई। 

शिक्षा संग पूरी कर रहे हैं तमाम जरूरतें

निश्चित रूप से कोरोना महामारी के दौर में छात्र समुदाय काफी प्रभावित हुआ है। कीस जो कि ओडिशा के सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले 30 हजार आदिवासी छात्र—छात्राओं का एक ऐसा आश्रय स्थल है, जहां पर उन्हें केजी से लेकर पीजी यानी कक्षा १ से स्नात्कोत्तर/पी.,च.डी. स्तर तक की शिक्षा मुफ्त में दी जाती है। एक ही आसमान के नीचे रहने वाले इतनी बड़ी संख्या वाले छात्र समूह को कोरोना बीमारी के संकट को देखते हुए समय रहते ही ओडिशा के विभिन्न जिलों में अपने घरों में भेज दिया गया था। इसके बाद संस्था की तरफ से उन सभी छात्रों तक अप्रैल महीने से अब तक प्रत्येक माह घर-घर जाकर अध्ययन सामग्री, कपड़े और सूखे खाद्य पदार्थों की बड़ी मात्रा भेजी जा रही है। इसमें सुदूर अंचलों में रहने वाली लड़कियों के लिए सैनिटरी नैपकिन जैसी सभी जरूरतों का भी ख्याल रखा गया है। आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों और उनके परिवार को दी जाने वाली मदद कीस संस्थान के दोबारा खुलने तक जारी रहेगी। 

ताकि पढ़ाई रहे हमेशा जारी

प्रो. सामंत ने हमेशा से इन आदिवासी छात्रों की शिक्षा को हर चीज से ऊपर रखा है। यही कारण है कि उन्होंने नए शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत में ही छात्रों के घर पर पाठ्य पुस्तकें, अध्ययन सामग्री और अन्य जरूरत की चीजों को बच्चों तक पहुंचवाया। सभी स्तरों पर ऑनलाइन कक्षा आरम्भ करने के लिए पूरी तरह से शैक्षणिक कार्यक्रम बनाए रखने में कीस अग्रिणी संस्थानों में से एक रहा है। इस दौरान कीस ने अपने छात्रों के स्वस्थ और सुरक्षित रखने के लिए लगातार प्रयासरत है। 

आत्मनिर्भर बनाने पर हमेशा रहा है जोर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संचालित ‘‘आत्मनिर्भर भारत’’ योजना से प्रेरित होकर के.आइ.एस.एस. ने कोविड-19 महामारी के दौरान अपने व्यावसायिक कौशल केंद्र की गति तीव्र कर दी है। मध्यम आकार का उद्योग बनाने के लिए केंद्र को विकसित किया गया है और अब यह 25 विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक उत्पाद बना रहा है। कीट और कीस में इन उत्पादों की आन्तरिक आवश्यकताओं को पूरा करने के अलावा इनका विपणन भी अच्छी तरह से विकसित वितरण चैनल के माध्यम से किया जाता है। संभावना जताई जा रही है कि आने वाले वर्षों में केंद्र से बिके उत्पादों की आय से कीस  को आत्मनिर्भर बनाया जा सकेगा। 

कोरोना पीड़ितों को डॉ. सामंत का उपहार 

सेवा और सादगी की मिसाल माने जाने वाले डॉ. सामंत कोरोना ने ओडिशा में कोविड से मरने वाले आश्रित बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देने का निर्णय लिया है। यह सुविधा दो शैक्षणिक वर्षों 2020-21 एवं 2021-22 के लिए उपलब्ध रहेगी। दुनिया में किसी व्यक्ति विशेष द्वारा शायद ही किसी कोने में ऐसी नेक पहल करने की खबर सुनने —देखने को मिली हो। कीस और कीट उन 100 अनाथ बच्चों को अपनाकर उनकी देखभाल के लिए परिवार की संख्या के आधार पर उन्हें 5000 से 10,000 रुपए तक तक मासिक भत्ता प्रदान कर रही है, जो अक्सर गरीबी के चलते बाल दुर्व्यवहार और मानव तस्करी के शिकार चपेट में आ जाया करते हैं। कोरोना महामारी के खत्म होते ही जब कभी भी शैक्षणिक संस्थान फिर से खुलेंगे, तब कीट और कीस उन्हें निःशुल्क शिक्षा और बाद में उच्च शिक्षा उपलब्ध कराएगा। 

 आखिर कौन हैं अच्युत सामंत 

उड़ीसा में मौन शैक्षिक क्रांति लाने वाले डॉ. सामंत विश्व विख्यात शैक्षिक संस्थान के आईआईटी (कीट) कलिंग इंस्टिट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलोजी और केआईएसएस (कीस) कलिंग इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के संस्थापक हैं। जिसे उन्होंने अपनी  1992-93 में अपनी कुल जमा पूंजी 5000 रुपए से शुरु किया था। महज चार साल की अवस्था में डॉ. सामंत के पिता का निधन हो गया था। जिसके बाद उनका बचपन भूख और गरीबी के बीच बीता। अपने उन्हीं कठिन दिनों को याद करते हुए डॉ. सामंत कहते हैं कि उनका आजीवन प्रयास रहेगा कि कोई भी बच्चा उनकी तरह माता-पिता की असामयिक मृत्यु अथवा गरीबी के कारण गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित न रह जाय।

इस तरह राजनीति में किया प्रवेश

डॉ. सामंत ने उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की स्वच्छ छवि और कार्यशैली को देखते हुए बीजद में शामिल होना स्वीकार किया। इसके बाद वे राज्यसभा सांसद बने और फिर उड़ीसा की कंधमाल सीट से लोकसभा का चुनाव लड़कर भारी बहुमत से जीत हासिल की। एक सांसद के रूप में उन्हें संसद में आम जनता से जुड़े मुद्दे उठाना ही भाता है। डॉ. सामंत के सामाजिक कार्यों को देखते हुए उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।

- मधुकर मिश्र

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