History of Babar : आइए जाने पूरे जीवन काल में बाबर ने क्या किया

History of Babar : आइए जाने पूरे जीवन काल में बाबर ने क्या किया

ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर (14 फ़रवरी 1483 - 26 दिसम्बर 1530) जो बाबर के नाम से विख्यात हुआ, वह "मुगल वंश" का शासक था। उसका जन्म मध्य एशिया के वर्तमान उज़्बेकिस्तान में हुआ था। इके बावजूद भी वह भारत में मुगल वंश का संस्थापक था। वो तैमूर लंग का वंशज थे, और विश्वास रखता था कि चंगेज़ ख़ान उसके वंश का पूर्वज था। उसके पिता उमर शेख मिर्जा, तैमूरशाह तथा माता कुतलुग निगार खानम मंगोलों की वंशज थी। बाबर की मातृभाषा चगताई भाषा थी लेकिन वहां पर फारसी भाषा अधिक बोली जाती थी। आपको बता दें कि मुगल साम्राज्य 1526 में शुरू हुआ था। अधिकतर मुगल शासक तुर्क और सुन्नी मुसलमान थे। मुगल शासन 17वीं शताब्दी के आखिर में और 18वीं शताब्दी की शुरुआत तक चला और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ।

Short Term (शार्ट टर्म) में जाने बाबर के बारे में-

  1. बाबर ने 1526 ई से 1530 ई तक शासन किया।
  2. 24 फरवरी, 1483 ई. को फ़रग़ना में 'ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर' का जन्म हुआ।
  3. बाबर अपने पिता की ओर से तैमूर का पांचवा एवं माता की ओर से चंगेज खान का चौदहवां वंशज था।
  4. बाबर के पिता उमरशेख मिर्जा फरगाना नाम के छोटे से राज्य के शासक थे।
  5. बाबर फरगाना की गद्दी पर 8 जून 1494 ई में बैठा।
  6. बाबर ने 1507 ई में बादशाह की उपाधि धारण की, जिसे अब तक किसी तैमूर शासक ने धारण नहीं की थी।
  7. बाबर की मातृभाषा चग़ताई भाषा थी लेकिन फारसी में बाबर को महारत हासिल थी। उसने चगताई में बाबरनामा के नाम से अपनी जीवनी लिखी थी।
  8. 1526 ई. में पानीपत के प्रथम युद्ध में दिल्ली सल्तनत के अंतिम वंश (लोदी वंश) के सुल्तान इब्राहीम लोदी की पराजय के साथ ही भारत में मुग़ल वंश की स्थापना हो गई।
  9. इस वंश का संस्थापक "ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर" था। केवल 22 साल में क़ाबुल पर अधिकार कर अफ़ग़ानिस्तान में राज्य कायम किया था।
  10. बाबर ने भारत पर पांच बार आक्रमण किया।
  11. बाबर को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण पंजाब के शासक दौलत खान लोदी और मेवाड़ के शासक राणा सांगा ने दिया था।

आइए जाने बाबर ने कौन-कौन से प्रमुख युद्ध लड़ था-

  1. पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल, 1526 ई. को इब्राहिम लोदी और बाबर के बीच हुआ, जिसमें बाबर की जीत हुई।
  2. खनवा का युद्ध 17 मार्च 1527 ई में राणा सांगा और बाबर के बीच हुआ, जिसमें बाबर की जीत हुई।
  3. चंदेरी का युद्ध 29 मार्च 1528 ई में मेदनी राय और बाबर के बीच हुआ, जिसमें बाबर की जीत हुई।
  4. घाघरा का युद्ध 6 मई 1529 ई में अफगानो और बाबर के बीच हुआ, जिसमें बाबर की जीत हुई।
  5. पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर ने पहली बार तुगल्लमा युद्ध नीति का इस्तेमाल किया।
  6. उस्ताद अली और मुस्तफा बाबर के दो निशानेबाज थे, जिसने पानीपत के प्रथम युद्ध में भाग लिया था।
  7. खानवा के युद्ध में जीत के बाद बाबर को गाजी की उपाधि दी गई।
  8. 48 साल में 27 सितंबर में 1530 ई को आगरा में बाबर की मृत्यु हो गई।
  9. बाबर के शव को पहले आगरा के आरामबाग में दफनाया गया, बाद में काबुल में उसके द्वारा चुने गए स्थान पर दफनाया गया। जहां उसका मकबरा बना हुआ है। उसके बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र हुमायूं मुग़ल बादशाह बना।
  10. बाबर ने अपनी आत्मकथा 'बाबरनामे' की रचना की थी, जिसका अनुवाद बाद में अब्दुल रहीम खानखाना ने किया।
  11. बाबर को मुबईयान नाम की पद्द शैली का जन्मदाता भी कहते हैं।
  12. बाबर का उत्तराधिकारी हुमायूं हुआ।

Note (नोट)

पानीपत के युद्ध में लूटे गए धन को बाबर ने अपने सैनिक अधिकारियों, नौकरों एवं सगे सम्बन्धियों में बांट दिया। इस बंटवारे में हुमायूं को वह कोहिनूर हीरा प्राप्त हुआ, जिसे ग्वालियर नरेश ‘राजा विक्रमजीत’ से छीना गया था। इस हीरे की क़ीमत के बारे में यह माना जाता है कि इसके मूल्य द्वारा पूरे संसार का आधे दिन का ख़र्च पूरा किया जा सकता था। भारत विजय के ही उपलक्ष्य में बाबर ने प्रत्येक क़ाबुल निवासी को एक-एक चांदी का सिक्का उपहार स्वरूप प्रदान किया था। अपनी इसी उदारता के कारण उसे ‘कलन्दर’ की उपाधि दी गई।

बाबर के अनोखे खिस्से को जाने और पढ़े-

बाबर ने अपने विजय पत्र में अपने को मूर्तियों की नींव का खण्डन करने वाला बताया। इस भयंकर संघर्ष से बाबर को गाजी की उपाधि प्राप्त की। गाजी उसे कहा जाता है जो काफिरों का कत्ल करे। बाबर ने अमानुषिक ढंग से तथा क्रूरतापूर्वक हिन्दुओं का नरसंहार ही नहीं किया, बल्कि अनेक हिन्दू मंदिरों को भी नष्ट किया।

इतिहासकारों के अनुसार 1528 में बाबर के सेनापति मीर बकी ने अयोध्या में राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनवाई थी। बाबर एक तुर्क था। उसने बर्बर तरीके से हिन्दुओं का कत्लेआम कर अपनी सत्ता कायम की थी। मंदिर तोड़ते वक्त 10 हजार से ज्यादा हिन्दू उसकी रक्षा में शहीद हो गए थे।

भारत के प्रथम मुगल सम्राट बाबर के आदेश पर मंदिर की जगह मस्जिद का निर्माण किया गया। मीर बाकी ने इसका नाम बाबरी मस्जिद रखा। 1940 के दशक से पहले, मस्जिद को मस्जिद-इ-जन्मस्थान कहा जाता था ध्वस्त मंदिर के स्थान पर मंदिर के ही टूटे स्तंभों और अन्य सामग्री से आक्रांताओं ने मस्जिद जैसा एक ढांचा जबरन वहां खड़ा किया, लेकिन वे अजान के लिए मीनारें और वजू के लिए स्थान कभी नहीं बना सके।

उस दौरान के इतिहास अनुसार राम मंदिर को बचाने के लिए 15 दिन तक संघर्ष चला था। अयोध्या में रक्त की नदियां बह गई थी। 10 हजार से अधिक हिन्दू शहीद हो गए और अंत में आक्रांताओं ने मंदिर को तोपों से उड़ा दिया। हालांकि बाद में जब हिन्दुओं का जोर चला तब फिर मंदिर को वहां स्थापित किया गया लेकिन उसे फिर से तोड़ दिया गया।

1528 से 1949 ईस्वी तक श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण हेतु 76 से अधिक संघर्ष और युद्ध हुए। इस पवित्र स्थल हेतु श्रीगुरु गोविंदसिंह जी महाराज, महारानी राज कुंवर तथा अन्य कई विभूतियों ने भी संघर्ष किया। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि राम मंदिर संघर्ष में अब तक 1,76,000 हिन्दुओं ने अपने जीवन की आहुति दे दी है।

आपको बता दें कि बाबर के पिता उमर शेख को शराब पीने का बड़ा शौक था। वह बाबर को भी चखने के लिए देता था।
बाबर की नसों में तुर्कों के साथ मंगोलों का भी रक्त था। बाबर ने काबुल पर अधिकार कर स्वयं को मुगल प्रसिद्ध किया था। बाद में यही नाम प्रचलित हो गया। हालांकि वह कभी भी अपने को मंगोल या मुगलों से नहीं जोड़ता था। बाबर ने छल कपट से काबूल पर कब्जा किया था।

बाबर ने अपनी आत्मकथा 'तुजुक ए बाबरी' में लिखा कि उसका पहला शिक्षक शेख मजीद बेग एक बड़ा अय्याश था इसलिए बहुत गुलाम रखता था। आगे उसने दूसरे शिक्षक कुलीबेग के बारे में लिखा कि वह न नमाज पढ़ता था, न रोजा रखता था, वह बहुत कठोर भी था। तीसरे शिक्षक पीर अली दोस्तगाई के बारे में उसने लिखा कि वह बेहद हंसोड़- ठिठोलिया और बदकारी में माहिर था। हालांकि इसको लेकर बाबर ने आशिकी पर शेर लिखे थे, परन्तु जब बाबर ने बाद में उसे एक बार आगरा की गली में देखा तो उसने स्वयं बाबरनामा में लिखा, वह लड़का मिल गया जो हमारी सोहब्बत में रह चुका था। हम उससे आंखें नहीं मिला पाए, क्योंकि अब हम बादशाह हो चुके थे।

बाबर की कट्टर और क्रूर था। उसने अपने पहले आक्रमण में ही बाजौर के सीधे-सादे 3000 से भी अधिक निर्दोष लोगों की हत्या कर दी थी। यहां तक कहा जाता है कि उसने इस युद्ध के दौरान एक पुश्ते पर आदमियों के सिरों को काटकर उसका स्तंभ बनवा दिया था। यह नरसंहार उसने 'भेरा' पर आक्रमण करके भी किए थे।

बाबर द्वारा किए गया तीसरा, चौथा व पांचवां आक्रमण- सैयदपुर, लाहौर तथा पानीपत पर किया था जिसमें उसने किसी के बारे में नहीं सोचा। उसके रास्ते में बूढ़े, बच्चे और औरतें, जो कोई भी आया वह उन्हें काटता रहा। वह किसी भी कीमत पर अपने साथ ज्यादा से ज्यादा धन लूट कर ले जाना चाहता था। कहते हैं कि गुरुनानक जी ने बाबर के इन वीभत्स अत्याचारों को अपनी आंखों से देखा था। उन्होंने इन आक्रमणों को पाप की बारात और बाबर को यमराज की संज्ञा दी थी।

बाबर का टकराव इब्राहिम लोदी सहित कई शासकों के साथ हुआ, लेकिन किसी ने उसे ज्यादा परेशान नहीं किया। कहा जाता है कि जब वह मेवाड़ के राणा सांगा के साथ दो-दो हाथ करने पहुंचा तो उन्होंने उसको उसका छठी का दूध याद दिला दिया था।

बाबर ने चगताई तुर्की भाषा में अपनी आत्मकथा 'तुजुक ए बाबरी' लिखी इसे इतिहास में बाबरनामा भी कहा जाता है। बाबर का टकराव दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी से हुआ। बाबर के जीवन का सबसे बड़ा टकराव मेवाड़ के राणा सांगा के साथ था। बाबरनामा में इसका विस्तृत वर्णन है। संघर्ष में 1927 ई. में खन्वाह के युद्ध में, अन्त में उसे सफलता मिली।

कहते हैं कि बाबर ने मुसलमानों की हमदर्दी पाने के लिए हिन्दुओं का नरसंहार ही नहीं किया, बल्कि अनेक हिन्दू मंदिरों को भी नष्ट किया। उसके एक अधिकारी ने संभल में एक मंदिर को गिराकर मस्जिद का निर्माण करवाया। उसके सदर शेख जैना ने चन्देरी के अनेक मंदिरों को नष्ट किया। यही नहीं ग्वालियर के निकट उरवा में अनेक जैन मंदिरों को भी नष्ट किया था। बाबर की आज्ञा से मीर बाकी ने अयोध्या में राम जन्मभूमि पर निर्मित प्रसिद्ध मंदिर को नष्ट कर मस्जिद बनवाई।

कारसेवकों पर गोली चलाने का दिया आदेश मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने

30 अक्तूबर 1990 को हजारों रामभक्तों ने मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा खड़ी की गईं अनेक बाधाओं को पार कर अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया। इस दौरान हजारों कारसेवकों पर लाठीचार्ज किया गया। 2 नवम्बर, 1990 को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें कोलकाता के राम कोठारी और शरद कोठारी (दोनों भाई) सहित अनेक रामभक्त शहीद हो गए। सरयू नदी को मुलायम सिंह यादव के आदेश से खून से रंग दिया गया। यही कारण है कि मुलायम सिंह यादव को आज तक कारसेवकों का हत्यारा माना जाता है। इसके विरोध में 4 अप्रैल, 1991 को दिल्ली के वोट क्लब पर अभूतपूर्व रैली हुई। इसी दिन कारसेवकों के हत्यारे, उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस्तीफा दे दिया।





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