राजेश शास्त्री, संवाददाता
सिद्धार्थनगर, उत्तर प्रदेश
सोमवार व्रत की महिमा से लोगों के क्लेश मिटते हैं। नारद पुराण के अनुसार सोमवार व्रत में व्यक्ति को प्रातः स्नान कर शिव जी को जल चढ़ाना चाहिए तथा शिव-गौरी की पूजा करनी चाहिए। शिव पूजन के बाद सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए। इसके बाद केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए अथवा फलाहार या फलों के रस का सेवन भी कर सकते हैं।सोमवार का व्रत साधारणतया दिन के तीसरे पहर तक होता है। यानि शाम तक रखा जाता है।
सोमवार व्रत तीन प्रकार का होता है –
- प्रति सोमवार व्रत
- सौम्य प्रदोष व्रत
- सोलह सोमवार का व्रत
इन सभी व्रतों के लिए एक ही विधि होती है। सोमवार व्रत, सौम्य प्रदोष व्रत और सौलह सोमवार तीनों की कथा अलग-अलग है। अग्नि पुराण के अनुसार चित्रा नक्षत्रयुक्त सोमवार से लगातार सात व्रत करने पर व्यक्ति को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। इसके आलावा सोलह सोमवार का व्रत करने से मंवांचित वर प्राप्त होता है। सोलह सोमवार व्रत अविवाहित कन्याओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण और प्रभावशाली मन जाता है।
व्रत का महत्व-
सोमवार का व्रत चैत्र, श्रवण, मार्गशीर्ष तथा कार्तिक मास में आरम्भ किया जाता है। श्रावण मास में सोमवार का व्रत करने का अधिक महत्त्व है। भविष्य पूरण के अनुसार चैत्र शुक्ल अष्टमी को सोमवार और आर्द्रा नक्षत्र हो, तो उस दिन से सोमवार का व्रत आरम्भ करना अति शुभकारी होता है। ग्रहण में हवन, पूजा, अर्चना व दान करने से जो पुण्य फल प्राप्त होता है, वैसा ही फल सोमवार का व्रत करने वाले को भी प्राप्त होता है।
चैत्र मास में सोमवार का व्रत करने से गंगा-स्नान के समान, वैशाख मास के कन्यादान के समान, ज्येष्ठ मास में पुष्कर में स्नान करने के समान, आषाढ़ मास में यज्ञफल के समान, श्रवण में अश्वमेध यज्ञ के समान, भाद्रपद मास में गोदान के समान, आश्विन मास में सूर्य ग्रहण में कुरुक्षेत्र के सरोवर में स्नान करने के समान तथा कार्तिक में ज्ञानी ब्राह्मणों को दान करने के समान पुण्य प्राप्त होता है।
मार्गशीर्ष में व्रत करने से स्त्री-पुरुषों को चन्द्र-ग्रहण के समय काशी में गंगा-स्नान करने के समान, माघ मास में व्रत करने से दूध व गन्ने के रस से स्नान करके ब्रह्मा जी की पूजा करने के समान तथा फाल्गुन मास में गोदान के समान पुण्यफल प्राप्त होता है।
पूजन की सामग्री-
जैसे भांग, बेलपत्र, जल, धूप, दीप, गंगाजल, धतूरा, इत्र, चंदन, रोली, अष्टगंध, पंचामृत (दूध, दही, घी, शक्कर, शहद) इत्यादि पूजन सामग्री से भगवान शिव का पूजन अर्चन सदा ही कल्याणकारी होता है।


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