राजेश शास्त्री, संवाददाता
आकाश में स्थित तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणत: ये चन्द्रमा के पथ से जुडे हैं। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं। नक्षत्र से ज्योतिषीय गणना करना वेदांग ज्योतिष का अंग है। नक्षत्र हमारे आकाश मंडल के मील के पत्थरों की तरह हैं जिससे आकाश की व्यापकता का पता चलता है। वैसे नक्षत्र तो 88 हैं किंतु चन्द्रपथ पर 27 ही माने गए हैं।
जिस तरह सूर्य मेष से लेकर मीन राशि तक भ्रमण करता है, उसी तरह चन्द्रमा अश्विनी से लेकर रेवती तक के नक्षत्र में विचरण करता है तथा वह काल नक्षत्रमास कहलाता है। यह लगभग 27 दिनों का होता है इसीलिए 27 दिनों का एक नक्षत्र मास कहलाता है।
नक्षत्र मास के नाम
1. अश्विनी, 2. भरणी, 3. कृतिका, 4. रोहिणी, 5. मृगशिरा, 6. आर्द्रा 7. पुनर्वसु, 8. पुष्य, 9. अश्लेषा, 10. मघा, 11. पूर्वा फाल्गुनी, 12. उत्तरा फाल्गुनी, 13. हस्त, 14. चित्रा, 15. स्वाति, 16. विशाखा, 17. अनुराधा, 18. ज्येष्ठा, 19. मूल, 20. पूर्वाषाढ़ा, 21. उत्तराषाढ़ा, 22. श्रवण, 23. धनिष्ठा, 24. शतभिषा, 25. पूर्वा भाद्रपद, 26. उत्तरा भाद्रपद और 27. रेवती।
नक्षत्रों के गृह स्वामी
- केतु:- आश्विन, मघा, मूल।
- शुक्र:- भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा।
- रवि:- कार्तिक, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा।
- चन्द्र:- रोहिणी, हस्त, श्रवण।
- मंगल:- मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा।
- राहु:- आर्द्रा, स्वाति, शतभिषा।
- बृहस्पति:- पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वा भाद्रपद।
- शनि:- पुष्य, अनुराधा, उत्तरा भाद्रपद।
- बुध:- अश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती।
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