- कृषि विज्ञान केंद्र ने 20 किसानों को किया प्रशिक्षित
- उन्नतिशील प्रजाति का आरटी-351 तिल बीज सौंपा
अरबिंद श्रीवास्तव, ब्यूरो चीफ
बांदा। तिल की बेहतर पैदावार लेने के लिए किसान 15 जुलाई तक इसकी बुवाई करें। बुंदेलखंड के लिए तिल की आरटी-351 प्रजाति माकूल है। इससे किसान अच्छी उपज ले सकते हैं। यह बातें कृषि विज्ञान केंद्र अध्यक्ष डा. श्याम सिंह ने कहीं। कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में संचालित कृषि विज्ञान केंद्र में मंगलवार को किसानों को तिल की उन्नतिशील खेती के लिए प्रशिक्षित किया गया। इस दौरान प्रशिक्षण में परसौड़ा, बछेउरा, बिलगांव, जमालपुर व कैरी आदि के 20 किसान शामिल हुए।
इस दौरान कृषि विज्ञान केंद्र अध्यक्ष डॉ. श्याम सिंह ने प्रशिक्षण में कहा कि बुंदेलखंड में तिल की खेती में असीम संभावनाएं हैं। इससे किसान अच्छी उपज लेकर अपनी आय बढ़ा सकते हैं। उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड क्षेत्र में तिल की खेती बड़े पैमाने पर हो रही है, पर इसकी औसत पैदावार बहुत कम है। उन्होंने किसानों को तिल की उन्नतिशील प्रजाति आरटी-351 की उपज के बारे में बताया। इसकी तकनीक भी साझा की। कहा कि अच्छी पैदावार के लिए किसान हर हाल में इसकी बुआई 15 जुलाई तक कराएं। उपचारित कर तीन से चार किलो बीज प्रति हेक्टेयर बुआई करें। लाइन से लाइन की दूरी 30 सेंटीमीटर रखें।
बुआई करते समय ध्यान रखें कि बीज तीन से चार सेंटीमीटर गहराई में पड़े। तिल के लिए 30 किलो नत्रजन, 20 किलो फास्फोरस व 30 किलो पोटाश व 25 किलो सल्फर का प्रयोग बुआई के समय करें। डॉ.दीक्षा पटेल ने बताया कि तिल की आरटी-351 प्रजाति रोग व कीट रोधी है। साथ ही बुंदेलखंड के लिए उपयुक्त है। यह 80 से 85 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी प्रति हेक्टेयर 10 कुंतल उपज है। सफेद रंग की इस प्रजाति के दानों में 50 फीसद तक तेल पाया जाता है। वैज्ञानिक डॉ.प्रज्ञा ओझा ने बताया कि तिल की बुआई के बाद 20 से 25 दिन की अवस्था में इसकी निराई-गुड़ाई कर खरपतवार निकाल दें।
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