ट्रांसजेंडर क्योंकि यह भी इंसान है


अरबिंद श्रीवास्तव, ब्यूरो चीफ 

बांदा। वो लोगों की खुशियों में खुशी मनाने के लिए गाना बजाना करके पेट भरते हैं लेकिन लॉकडाउन के चलते उनको खाने कमाने के लाले पड़ गए। दरअसल हम बात कर रहे हैं ट्रांसजेंडरो की जो एक ऐसा वर्ग है जो अपनी पहचान इस तथाकथित सभ्य समाज में वर्षों से तलाश कर रहा है इनके जीवन यापन की ना तो कोई व्यवस्था की गई नहीं समाज ने इन्हें सामाजिक प्राणी के रूप में मान्यता दी पोडाबाग इलाके में ट्रांसजेंडर रोका एक समूह है जहां एक दर्जन से ज्यादा सदस्य रहते हैं इनकी गुरु कुदउवा है। 

जहां इनकी निजी जिंदगी में झांका जाए तो एक अन्य सार्थक पहलू भी सामने आता है वह यह की यह ट्रांसजेंडर भी परिवार की चाहत रखते हैं ट्रांसजेंडर यानी हिजड़े ढोलक की थाप घुंघरू की झनझनाहट के साथ थिरकने वाले इन लोगों को कोविड-19 संक्रमण काल ने रोज खाने कमाने के धंधे पर मानो डाका डाल दिया। ऐसे में इनकी मदद के लिए हाथ बढ़ाया बांदा कोविड-19 ग्रुप की ममता पांडे ने सूखा राशन किट देकर समाजसेवी अरुण निगम की पहल पर ट्रांसजेंडरो में किशोरी, बन्नो, चंचल, बब्बन, अंजना, आरती, पूजा, पूर्णिमा, काजल, पुत्तन, मुन्नी, रेखा को राशन किट से नवाजा गया। 

जिसके नवीन कुमार, राजेंद्र कुमार, देवेंद्र कुमार, साक्षी बने। हालांकि, सरकार अब इनकी मदद के लिए उच्च न्यायालय के निर्देशों पर दरकार कर चुकी है बावजूद इसके जागरूकता के अभाव में इस समुदाय को यह जानकारी ही नहीं है कि उन्हें सरकार से क्या सुविधाएं मिल सकती है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ