आइए जानें कैसे कर्ज संबंधी परेशानी दूर करता है भौम प्रदोष व्रत


राजेश शास्त्री, संवाददाता 

प्रदोष व्रत जब मंगलवार के दिन होता है उसे भौम प्रदोष व्रत माना गया है। प्रदोष व्रत में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है। प्रदोष व्रत को त्रयोदशी के दिन रखा जाता है। प्रत्येक मास में दो प्रदोष व्रत होते हैं।

प्रदोष व्रत व्रतों में अत्यधिक शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता यह भी है इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है और भगवान शिव की कृपा से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।

उसी तरह प्रदोष व्रत रखने और साथ ही दो गाय दान करने से भी यही सिद्धी प्राप्त होती है। भौम प्रदोष व्रत को करने से मनुष्य में सुविचार और सकारात्मकता आती है।

जब मंगलवार के दिन प्रदोष तिथि का योग बनता है, तब यह व्रत रखा  जाता है। मंगल ग्रह का ही एक अन्य नाम भौम है। यह व्रत हर तरह के कर्ज से छुटकारा  दिलाता है।

हमें अपने दैनिक और व्यावहारिक जीवन में कई बार अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए  धन रुपयों-पैसों का कर्ज लेना आवश्यक हो जाता है। तब आदमी कर्ज तो ले लेता है,  लेकिन उसे चुकाने में उसे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऐसे समय में कर्ज संबंधी परेशानी दूर करने के लिए भौम प्रदोष व्रत लाभदायी सिद्ध होता है।

भौम प्रदोष व्रत कथा


प्राचीन समय की बात है एक नगर में एक वृद्ध महिला रहती थी। उसका एक पुत्र था। बुजुर्ग महिला की भगवान हनुमान पर गहरी आस्था थी। वो हर मंगलवार को व्रत रख भगवान हनुमान की आराधना करती थी। एक बार भगवान हनुमान ने उनकी श्रद्धा की परीक्षा लेने की सोची।

भगवान हनुमान साधु का वेश धारण कर बुजुर्ग महिला के घर गए और पुकारने लगे - है कोई हनुमान भक्त, जो मेरी इच्छा पूर्ण कर सकें? पुकार सुनकर बुजुर्ग महिला बाहर आई और बोली- आज्ञा दें महाराज।

भगवान हनुमान बोले- मुझे बहुत भूख लगी हैं, भोजन करना हैं, तू थोड़ी जमीन लीप दे। बुजुर्ग महिला दुविधा में पड़ गई।
हाथ जोड़कर बोली- हे साधु महाराज, लीपने और मिट्टी खोदने के अलावा आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं अवश्य करूंगी।

साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा करवाई और कहा - अम्मा, तू अपने बेटे को बुला। मैं तेरे बेटे की पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा।

यह सुन बुजुर्ग महिला घबरा गई, परंतु वो अब प्रतिज्ञा ले चुकी थी। उसने अपने पुत्र को घर के बाहर बुलाकर साधु को दे दिया।

साधु ने बुजुर्ग महिला के हाथों से ही उनके पुत्र को पेट के बल लिटवाया। पुत्र के पीठ पर आग जलवाई। आग जलाकर उदास मन से बुजुर्ग महिला अपने घर में चली गई।

भोजन बनाने के बाद साधु ने बुजुर्ग महिला को बुलाकर कहा- तुम अपने पुत्र को पुकारो ताकि वह भी आकर भोजन करें।

बुजुर्ग महिला उत्तर में बोली- मेरे पुत्र का नाम लेकर, मुझे और कष्ट न दो। लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो बुजुर्ग महिला ने अपने पुत्र को आवाज लगा ही दी। 

अपने पुत्र को जीवित देख बुजुर्ग महिला को बहुत आश्चर्य हुआ और वह साधु महाराज के चरणों में गिर पड़ी। बुजुर्ग महिला की भक्ति देख भगवान हनुमान अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और बुजुर्ग महिला को भक्ति का आशीर्वाद दिया।

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