दुर्गाष्टमी व्रत के महत्व एवं पूजन विधि के बारे में आइए जानें


आज यानी 17 जुलाई को दुर्गाष्टमी व्रत रखा जाएगा। हिन्दू धर्म में शक्ति की देवी माने जाने वाली माँ दुर्गा के नौ रूपों की इस दौरान पूजा की जाती हैं। वर्ष के 12 महीनों की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को ही यह व्रत रखा जाता हैं इसलिए इसे दुर्गा अष्टमी कहा जाता हैं। दुर्गा अष्टमी का व्रत स्त्री पुरुष दोनों के करने का विधान हैं। इस दिन के व्रत में माँ के भक्त बेहद सादगीपूर्ण जीवन बिताते हैं, दूध या फलाहार के अतिरिक्त कुछ न सेवन करना, मांस से बने किसी व्यजंन को न खाना और न ही इस दिन घर में लाना चाहिए। ऐसा करने से देवी रुष्ट हो सकती हैं।


 दुर्गा अष्टमी व्रत कथा


मार्कण्डेय पुराण के मुताबिक बहुत समय पूर्व की बात हैं, जब देवताओं तथा दानवों के मध्य युद्ध चल रहा था। दुर्गम नामक दैत्य बड़ा ही क्रूर एवं शक्तिशाली था। जिसने अपनी चतुराई एवं पराक्रम के बल पर देवताओं को पृथ्वी और पाताल लोक दोनों स्थानों पर बुरी तरह पराजित कर दिया। देवताओं के पास भागने के सिवाय कोई विकल्प नही था। क्रूर दैत्य से भयभीत देवगण त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु महेश) से मिलने के लिए कैलाश पर्वत पर पहुचे। देवताओं ने आपबीती उन्हें सुनाई।दुर्गम का वध करने के लिए देवों ने एक तरकीब सोची तथा सभी की संयुक्त शक्ति से आश्विन शुक्ल अष्टमी (दुर्गा अष्टमी के दिन) पृथ्वी लोक पर एक देवी का अवतरण किया, जिन्हें माँ दुर्गा के रूप में जाना जाता हैं। देवों की स्तुति पर महा दुर्गा ने दुर्गम राक्षस का वध कर देवों को अपना राज्य वापिस दिलाया तथा मनुष्यों के कष्टों के हरण किया। दुर्गम राक्षस के वध के कारण ही इन्हें दुर्गा कहा जाने लगा।


दुर्गा अष्टमी का महत्व 


दुर्गा, काली, भवानी, जगदम्बा, जगतजननी, नव दुर्गा इन सभी नामों से भक्त माँ दुर्गा को बुलाते हैं। मासिक दुर्गा अष्टमी तिथि के एक दिन पूर्व व्रत का संकल्प कर व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर माँ की पूजा की जाती हैं। विधि पूर्वक दुर्गा का व्रत करने से माँ सभी संकटों को हरती हैं तथा भक्तों के जीवन को मंगलमय बनाती हैं। इस दिन माँ अपने भक्तों से विशेष रूप से प्रसन्न रहती हैं। पूजा पाठ, भजन संध्या, आरती तथा दिन में दो वक्त की पूजा से हमारे जीवन में दिव्य प्रकाश, सुख समृधि, कारोबार में लाभ, विकास, सफलता और शांति की प्राप्ति होती है। तथा काया के समस्त कष्ट व बीमारियों का नाश हो जाता हैं। माँ को खुश करने के लिए उनके स्वरूप 6 से 12 वर्ष की कन्याओं को इस दिन अच्छे वस्त्र पहनाकर पूजा कर अच्छे पकवान खिलाकर दान आदि देकर विदा करने से मासिक दुर्गा अष्टमी की पूजा सम्पूर्ण मानी जाती हैं।


(राजेश शास्त्री संवाददाता सिद्धार्थनगर)



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