कुंडली में कब बनते हैं जेल योग?



राजेश शास्त्री, संवाददाता 

कुंडली के आठवें मतांतर से बारहवें भाव से कारावास तथा सजा का विचार किया जाता है। कुंडली के इस घर में राहु अगर अष्टमेश के साथ हो तो उसके अशुभ प्रभाव के कारण व्यक्ति को किसी बड़े अपराध के कारण जेल जाना पड़ता है। शनि, मंगल और राहू मुख्य रूप से यह तीन ग्रह एवम् इनका आपसी सम्बन्ध जेल के कारक है। शनि व 12 भाव सजा का कारक है। छठा भाव व मंगल राहू अपराध के कारक है। अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में मंगल और राहु एक साथ किसी भाव में बैठकर युति करते हैं तो जेल योग बनता है केतु रस्सी बेड़ी हथकड़ी का कारक ग्रह है। अशुभ मंगल व राहु के बीच दृष्टि संबंध बनता हो तो अंगारक योग की वजह से ऐसा इंसान हिंसक स्वभाव वाला हो जाता है और अपराध करता है जिससे जेल जाना पड़ जाता है। 

शनि, मंगल व राहु मुख्य रूप से जेल यात्रा कराने का भी योग बनाते हैं और इनकी युति या आपस में दृष्टि इस तरह की स्थितियां बना देती है कि आखिर इंसान को जेल जाना ही पड़ जाता है। जन्मकुंडली में सूर्यादि ग्रह समान संख्या में लग्न एवं द्वादश तृतीय एवं एकादश, चतुर्थ, दशम, षष्ठ एवं अष्टम भाव में स्थित हो तो यह बंधन योग बनाता है यह स्थिति यदि कहीं जन्मपत्रिका में ग्रहों के गोचर के कारण बन रही हो तो उस समय में भी बंधन योग अल्प काल के लिए घटित हो सकता है पर जन्म कुंडली में द्वितीय भाव में शनि एवं द्वादश भाव में मंगल स्थित हो तो यह योग निर्मित होगा लेकिन यदि जेल योग बनाने वाले पाप ग्रहों पर अन्य पाप ग्रहों या द्वादेश की दृष्टि पड़ रही हो तो जेल यात्रा कष्टकारी व लम्बे समय के लिए हो सकती है यह स्थिति यदि जन्मपत्रिका में ग्रहों के गोचर के कारण बन रही हो तो उस समय में भी बंधन योग अल्प काल के लिए घटित हो सकता है।

लेकिन यदि द्वतीय में शनि और द्वादश में मंगल के साथ किसी भी पाप या शुभ ग्रह की युति हो तो यह योग भंग हो जाता है। सभी लग्नों के द्वादेश, षष्ठेश एवम अष्टमेश के अशुभ योग हों या अगर कुंडली में मंगल और शनि एक दूसरे को देख रहें हो तो लड़ाई झगड़े के कारण व्यक्ति को जेल यात्रा हो सकती है। महादशा  अंतर्दशा प्रत्यंतर दशा भी अशुभ ग्रहों की हो तो भी कारावास जाने की स्थिति बन जाती है। सूर्य शनि मंगल और राहु केतु जैसे पाप ग्रह के अलावा कमजोर चन्द्रमा और अशुभ बुध भी बता देते हैं कि आपकी कुंडली में जेल जाने के योग है या नहीं अगर किसी की कुंडली के छठें आठवें या बारहवें भाव में पाप ग्रह होते हैं तो ऐसे लोगों को जीवन में कभी न कभी एक न एक बार छोटी या बड़ी जेल यात्रा करनी पड़ती है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि कुंडली के छठे आठवें और बारहवें भाव से जेल जाने के योग बनते हैं।
  • कुंडली में अशुभ राहु भी जेल जाने का योग बनाता है और इसकी महादशा अंतर्दशा में ऐसी स्थितियां बन जाती हैं।
  • कुंडली के बारहवें भाव से भी जेल जाने के अशुभ योग को पहचाना जा सकता है। 
  • अगर किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के बारहवें घर में वृश्चिक या कुंडली के बारहवें घर में अष्टमेश के साथ अगर राहु और शनि होते है तो कोर्ट कचहरी के मामलों में हारने के बाद जेल जाना पड़ता है। गुरू राहू या गुरू शनि योेेग बंधन योग देगा। 
  • मंगल के चतुर्थेश के साथ कुंडली के छठे घर में होने से जेल यात्रा के योग बनता है।
  • लग्नेश अस्त व सूर्य नीच का है। 12 वां भाव या द्वादेश राहू गत राशि स्वामी सेे युत हो व 12 वां भाव मे नीच ग्रह हो या पाप ग्रह की दृष्टि हो।
  • अगर कुंडली में मंगल और शनि एक दूसरे को देख रहें हो तो लड़ाई झगड़े के कारण व्यक्ति को जेल जाना पड़ेगा।
जातकालकांर के अनुसार, यदि सम्पूर्ण अशुभ ग्रह 2 5 7 9 और 12 वें भावों में स्थित हों तो जातक गिरफ्तार होकर जेल जाता है और यदि जन्म लग्न में मेष वृष अथवा धनु राशि हो तो उसे सपरिश्रम कारावास का दण्ड मिलता है। जेल योग यदि स्थिर राशि मे हो तो जातक अति कठिनाई से छूटे यदि चर राशि मे हो तो आत्मकारक की शांति करें।

जातकतत्व के अनुसार, यदि वृश्चिक लग्न हो और द्वितीय, द्वादश, पंचम एवम नवम् भाव में अशुभ ग्रह हों तो जातक हवालात में बन्द रहता है। यदि मेष मिथुन कन्या अथवा तुला लग्न हो तथा द्वितीय द्वाद्वश पंचम् और नवम् भाव में अशुभ गृह हों तो जातक हथकडी पहनता है। परन्तु यदि कर्क मकर अथवा मीन लग्न हो और लग्न से द्धितीय एवम् द्वादश भावों में अशुभ ग्रह हों तो जातक को राजकीय भवन में नजर बन्द रहना पड़ता है और यदि पंचम् एवम् नवम् स्थान से कोई शुभ ग्रह लग्न को देखता हो तो उसे बेड़ियाँ नहीं डाली जाती। यदि लग्नेश और षष्ठेश शनि के साथ युक्त होकर केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हों तो जातक को कैद की सजा होती है।

उत्तरकालामृत के अनुसार, द्वादश भाव से जेल का बोध होता है। संकेत निधि के अनुसार यदि शुक्र द्वितीय भाव में चन्द्रमा लग्न में सूर्य एवं बुध द्वादश भाव में और राहु पचंम भाव में हों तो जातक को जेल की सजा होती है। इसी ग्रन्थ में जेल यात्रा के लिए षष्ठम् एवम् द्वादश भाव का विवेचन भी आवश्यक माना गया है। 

द्वादश भाव के साथ-साथ पंचम् नवम् एवम् अष्टम् भावों की भी विवेचना करें यात्रा के लिए आवश्यक निर्दिष्ट किया कई बार निर्दोष लोगों को जेल जाना पड़ जाता है। जिससे मान सम्मान व समय नष्ट हो जाता है और जेल योग यदि शुभ ग्रहों से निर्मित हो रहा हो तो इस बात के संकेत देता है की जातक ने कोई अपराध नहीं किया है अथवा बिना अपराध के सजा भोगनी पड़ रही है पर यदि यह योग पाप ग्रहों से से निर्मित हो रहा हो तो इसका अर्थ है कि व्यक्ति ने अपराध किया होगा यदि बंधन योग मे शुभग्रह भी शामिल या उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो जो जातक जेल से छूट जाय।

कुछ अंय योग

  • यदि द्वितीय व 12 वें भाप मे पाप ग्रह हो या इन पर पाप दृष्टि हो या इन के भावेश पर पाप प्रभाव हो तो हवालात, जुर्माना व अर्थदंड हो।
  • यदि लग्न मिथुन कन्या तुला या कुंभ हो तो हथकडी रस्सी बेड़ी डाली जाये यदि लग्न कर्क मकर या मीन हो तो जेल या किले मे बंद हो वृृश्चिक हो तो जुर्माना या नजरबंद हो सिंह राशि पर बंधन लागू नही होता। 
  • चैथे भाव मे सूर्य या मंगल तथा 10 वें भाव मे शनि हो तो बंधन हा।
  • लग्नेश यदि षष्ठेश से युत होकर केन्द्र या त्रिकोण में हो तथा राहू केतु से भी युत या दृष्ट हो तो राहू केतु की दशा मेंबंधन होगा। 
  • लग्नेश यदि षष्ठेश से युत होकर नवम भाव में हो।
  • नवम भाव में सूर्य शुक्र या व शनि हो।
  • द्वादश भाव में पाप राशि में पाप ग्रह हो या 12वें भाव को देखें या द्वादेश का नवांश राशि स्वामी पाप ग्रह हो तथा सूर्य नीच, नवांश में नीच, पाप प्रभाव में या गहयोग में होकर निर्बल हो।
  • द्वितीय व पंचम भाव मे पाप ग्रह हो धन, कर्ज जुर्माने ना चुकाने, चोरी या गबन के कारण। 
  • नवम व द्वादशभाव में पाप ग्रह हों तो जेल हो।
  • यदि लग्न में सर्प, निगड़, आयुध देष्काण में जंम हो तो बंधन हो कर्क के 2 या 3 वृिश्चक के 1 व 2 तथा मीन क 3 देष्क्षा सर्प देष्काष होता है। मकर, वृश्चिक का 2 देष्काण निगड़ देष्काण सिंह का तथा मकर का 1 देष्काण आयुध देष्काण होता हैं। 
  • यदि द्वितीय व 12 वें भाप मे नीचस्थ या क्रूर पाप ग्रह हो तथा लग्न या लग्नेश पर पाप दृष्टि ना हो तो जेल हो।
  • यदि सभी पापी ग्रह 2, 5,9,  12 भाव मे हो।
  • यदि द्वितीयेश और द्वादेश दोनों 3, 6, भावों में स्थिर राशियों में जायें तो लंबी जेल हो।
  • यदि मेष, मिथुन कन्या या तुला में तथा 2, 5,9, 12 भाव में पापी ग्रह हो तो हथकड़ी लगे।
  • यदि लग्न मे चन्द्रमा द्वितीय में शुक्र पंचम में राहू, बुध व सूर्य हो तो राजदंड मिले।
  • यदि मंगल अष्ठमेश होकर 2 या 12 भाव में हो तो।
  • सूर्य दशम में मंगल राहू से युत तथा शनि से दृष्ट हो तो राजदंड मिले।
  • मिथुन लग्न, कन्या मे शनि व मीन में शुक्र बुध हो तो विशेष जेल यात्रा हो। मेष का गुरू गुरू दशा में जेल दे।
  • द्वितीय भाव या द्वितीयेश पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो जेल हो।
  • यदि लग्न, 5,  7, 9, भाव में पाप ग्रह हो तथा उनके भावेश भी पाप हों।
  • शनि मंगल हत्या से 12 वें  मंगल संघर्ष से भूमि से केतु या शनि चोरी से सूर्य शनि डकैती से बुध व राहू रेप से गुरू शुक्र धर्म कार्यो से चन्द्र बुध धोखा, ठगी से जेलयात्रा देगा। 
  • द्वितीयेश द्वादश मे कुसंगति के कारण जेल हो। 
  • कर्क लग्न में द्वादेश बुध चतुर्थ भाव मे राहू युत हो तो जेल हो।
  • लग्न या 12 वें भाव का राहू अपराध से जेल दे। 
  • शनि या मंगल या राहू 12 वें भाव में नीच राशि के होकर परस्पर युत हो या देखें तो जेल हो। 
  • शनि राहू या केतु 12 वे भाव में हों या द्वादेश से युत हो तथा द्वादश भाव पर गुरू दृष्टि हो तो जेल होगी। 
  • द्वितीय भाव में कोई शुभ ग्रह उच्च का या मित्र राशि का हो तथा 12 वें भाव मे पापग्रह हों तो मुकदमा चल कर शांत हो जाता है। 
  • छठाभाव जेल, बंधन, मुकदमा से मुक्ति का है। 

अपवाद

इस योग में बंधन योगकारक ग्रहों पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो इस योग बहुत ही अल्प मात्रा में फल प्राप्त होते है, और जेल यात्रा में अधिक कष्ट भी नही होता है, लेकिन यदि यह योग बनाने वाले पाप ग्रहों पर अन्य पाप ग्रहों या द्वादेश जेल जेल योग में बंधन योग कारक ग्रहों पर शुभ ग्रहों की दृष्टि ना हो  जेल यात्रा में अधिक कष्ट भी नही होता है यदि द्वितीय में शनि और द्वादश में मंगल के साथ किसी भी शुभ ग्रह की युति या प्रभाव हो तो यह योग भंग हो जाता है सूर्य निर्बल हो शनि वक्री हो दशमेश वक्री या निर्बल हो। जातक छूटे।

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