प्राचीन काल की बात है एक नगर में एक धनवान साहूकार रहता था। वह बहुत दुखी रहता था क्योंकि उसके कोई पुत्र नहीं थे। पुत्र प्राप्ति के लिए वह हर सोमवार को शिव जी का व्रत और पूजन किया करता था। साथ ही वह शाम को शिव मंदिर में जाकर दीपक भी जलया करता था। उसके इस भक्ति भाव को देखकर माता पार्वती भगवान शिवजी से कहती है कि साहूकार आपका आनंद भक्त है और पूजन बड़ी श्रद्धा से करता है इसलिए आपको इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए।
माता पार्वती की आग्रह सुनकर भगवान शिव मन ही मन मुस्कुराए और माता पार्वती से बोले, इसके कोई पुत्र नहीं है इसी चिन्ता में यह दुःखी रहता है। इसके भाग्य में पुत्र नहीं है पर फिर भी मैं इसे पुत्र की प्राप्ति का वर दे सकता हूं लेकिन यह केवल 12 साल जीवित रहेगा। यह सब बातें साहूकार सुन रहा था। इससे उसको न कुछ प्रसन्नता हुई और न ही दुख हुआ। वह पहले जैसा ही शिवजी का व्रत और पूजन करता रहा।
कुछ दिनों के बाद साहूकार की स्त्री गर्भवती हुई और 10वें महीने में उसने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। बालक जब 11 साल का हुआ तो उसकी माता ने उसके पिता से विवाह आदि के लिए कहा तो साहूकार कहने लगा कि अभी वो इसका विवाह नहीं करेंगे और उसे पढ़ने के लिए काशी भेजेंगे। इसके बाद साहूकार ने बालक के मामा को बुला करके उसको बहुत सा धन देकर कहा, तुम उस बालक को काशी जी पढ़ाने के लिये ले जाओ और रास्ते में जिस स्थान पर भी जाओ यज्ञ तथा ब्राह्मणों को भोजन कराते जाओ।
दोनों के काशी जाने के रास्ते में एक शहर पड़ा। उस शहर में राजा की कन्या का विवाह था। वहीं, दूसरे राजा का लड़का जो विवाह के लिये बारात लेकर आया था वह एक आंख से काना था। उसके पिता को इस बात की बड़ी चिंता थी कि कहीं उसे देख कन्या के माता-पिता विवाह में कोई अड़चन पैदा न कर दें। ऐसे में राजा ने जब साहूकार के सुंदर लड़के को देखा तो सोचा कि क्यों न दरवाजे के समय इस लड़के से वर का काम चलाया जाये।
राजा ने लड़के और मामा से बात की तो वे राजी हो गये फिर उस लड़के को वर के कपड़े पहनाकर दरवाजे पर ले जाया गया। इसके बाद राजा ने सोचा कि यदि विवाह कार्य भी इसी लड़के से करा लिया जाय तो क्या बुराई है? इस पर भी लड़का और उसके मामा राजी हो गए। हालांकि जिस समय लड़का जाने लगा तो उसने राजकुमारी की चुनरी पर लिख दिया कि तेरा विवाह मेरे साथ हुआ है परन्तु जिस राजकुमार के साथ तुमको भेजेंगे वह एक आंक से काना है और मैं काशी जी पढ़ने जा रहा हूं।
लड़के के जाने के पश्चात उस राजकुमारी ने जब अपनी चुनरी पर ऐसा लिखा हुआ पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया और कहा कि यह मेरा पति नहीं है। मेरा विवाह इसके साथ नहीं हुआ है। राजकुमारी के माता-पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं किया और बारात वापस चली गई।उधर सेठ का लड़का और उसका मामा काशी जी पहुंच गए और पढ़ने लगा। जब लड़के की आयु बारह साल की हो गई उस दिन उन्होंने यज्ञ रचा रखा था। तभी लड़के ने अपने मामा से कहा- आज उसकी तबियत कुछ ठीक नहीं है।
मामा ने अंदर जाकर सोने को कहा और थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गए। जब उसके मामा ने आकर देखा तो वह मुर्दा पड़ा है तो उसको बड़ा दुःख हुआ और उसने सोचा कि अगर मैं अभी रोने लगूंगा तो यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा। मामा ने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राह्मणों के जाने के बाद रोना-पीटना आरम्भ कर दिया। संयोगवश उसी समय शिव-पार्वती जी उधर से जा रहे थे। जब शिव- पार्वती ने पास जाकर देखा तो एक लड़का मुर्दा पड़ा था। पार्वती जी कहने लगीं- महाराज यह तो उसी सेठ का लड़का है जो आपके वरदान से हुआ था।
पार्वती जी के बार-बार आग्रह करने पर शिवजी ने उसको जीवन का वरदान दिया और लड़का जीवित हो गया। इसके बाद शिवजी और पार्वती कैलाश पर्वत चले गये। इसके बाद शिक्षा पूरी होने पर लड़का और मामा उसी प्रकार यज्ञ करते तथा ब्राह्मणों को भोजन कराते अपने घर की ओर चल पड़े। रास्ते में उसी शहर में आए जहां उसका विवाह हुआ था। वहां पहुंचने पर लड़के के ससुर ने उसको पहचान लिया और अपने महल में ले जाकर उसकी बड़ी खातिर की साथ लड़की और जमाई को विदा किया।
जब वह अपने शहर के निकट आए तो मामा ने सबसे पहले आगे जाकर मां-बाप को पूरी बात बताई। पिता को विश्वास नहीं हुआ। इस पर मामा ने कहा कि आपका पुत्र अपनी स्त्री के साथ बहुत सारा धन साथ लेकर आया है तो सेठ ने आनन्द के साथ उसका स्वागत किया और सभी बड़ी प्रसन्नता के साथ रहने लगे। कथा के अनुसार जो कोई भी सोमवार के व्रत इसी श्रद्धा से करता है, कथा को पढ़ता या सुनता है, उसके सभी कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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