शरणार्थियों की जीवन शैली में गुजर-बशर करने को विवश है बलिया के बाढ़ पीड़ित - रजनीश पाण्डेय

दर्द भी होती रहे, होती रहे फरियाद भी। 
मर्ज भी कायम रहें, जिंदा रहे बीमार भी।।

जयराम अनुरागी

बलिया। प्रदेश की राजधानी लखनऊ मे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सुप्रसिद्ध पत्रकार एंव अपनी बेबाकी के लिए मशहुर जनपद के सुप्रसिद्ध सामाजिक चिंतक रजनीश पाण्डेय ने अपने फेसबुक के वाल पर बलिया के बाढ पीडि़तों को लेकर बहत ही गम्भीर पोस्ट डाली है, जिसकी सर्वत्र प्रशंसा की जा रही है। इन्होने बाढ पीडि़तों की कई तस्वीरो को डाल कर सत्ता पक्ष एंव विपक्ष सहित आम लोगो को भी निशाने पर लेते हुए पुरे सिस्टम पर चोट किया है, जो बहुत ही विचारणीय है।

श्री पाण्डेय ने अपनी पोस्ट मे कहा हे कि जो आप तस्वीरों में देख रहे है। वो किसी देश के शरणार्थी नही है और ना ही रोहंगियां - बंगलादेशी मुसलमान  तो यह आपके जेहन में सवाल जरूर बन रहा होगा कि शरणार्थीयो की जीवन शैली में गुजर-बसर कर रहे आखिर यह विस्थापितों की भीड़ कौन है?

यह आपके अपनो की भीड़ है। जिनसे कही ना कही आप भी जरूर जुड़े है। मतलब बाढ़ पीड़ित लोग। जिनको गिद्ध के रूप में नोचने के लिए तैयार बैठा है आपका अपना सिस्टम। सिस्टम में वे सारे लोग जिम्मेदार है, जिनकी अकर्मण्यता और नोचने-खोचने वाली मानशिकता के कारण ये लोग अपना जीवन रोड के किनारे जी रहे है। प्रशासनिक मशीनरी से कही ज्यादा जिम्मेदार यहाँ के वर्तमान के साथ-साथ पूर्व जन प्रतिनिधि भी जिम्मेदार है और पूर्व में वो लोग कुछ ज्यादा ही जिम्मेदार है जो लोग दिवंगत हो चुके है। खैर कोसने से ज्यादा आप कर भी क्या सकते है?

पहले भी सीएम का दौरा हो चुका है इस बार भी होगा। चैनलों में हुक्मरान का बाइट होगा और अखबारों में सुबह उनका बयान सुर्खियों में छपेगा लेकिन इस दौरे से बेचारे #खेदन को क्या मिलेगा? जिनका पूरा आशियाना ही इस बाढ़ में गंगा की गोद मे विलीन हो चुका है? कभी आप अपने जेहन में सवाल पूछने की हिम्मत कीजियेगा। जातिय सीमा तोड़ कर, आपके जाति के नेता ने विकाश के लिए क्या किया है? चलिए बुलेट ट्रेन -हवाई अड्डा-फोरलेन - ना सही जिस आपदा में आप हर साल बेघर होते है। उसके लिए वो क्या किये है?

क्योंकि आपदा जाति और ना ही धर्म खोजती है। उसके चपेट में जो भी आता है अपनी वो लीला दिखा जाती है। शायद आपके यहाँ भी मुख्यमन्त्री जायेंगे। विपक्ष के नेता अपनी राजनीतिक ड्रामा करेंगे। कोई काला झंडा दिखाने का ऐलान करेगा तो कोई दौरा के विरोध में पुलिस के साथ धक्का-मुक्की करेगा। क्योंकि आज के हेड लाइन्स में और कल के अखबार में सुर्खियां पाने की कोशिश करेगा। लेकिन इस ड्रामाबाजी से क्या #खेदन का दर्द कम हो जायेगा। एक बात तो तय है ना उनके दौरे से #खेदन का दर्द कम होगा और ना ही इनके काला झंडा दिखाने से, क्योंकि दोनों की मंशा साफ नही है..कि #खेदन का दर्द कम हो..। बशीर बद्र साहब का एक शायरी है..."दर्द भी होती रहे, होती रहे फरियाद भी-मर्ज भी कायम रहे, जिंदा रहे बीमार भी"।

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2 टिप्पणियाँ

  1. रजनीश जी भारतीय पत्रकारिता के भविष्य है उनकी कलम सत्य को बेबाकी से लिखती है।

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