कार्यक्रम चाहें लोकतंत्र बचाओं-संविधान बचाओं रैली हो या समाजवादी शिक्षक सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफेसर बी. पाण्डेय का आगमन का हो। सब कार्यक्रमों में देखा जाये तो डा० संतोष कुमार गर्ग ही अपनी टीम के साथ सक्रियता के साथ देखे जा रहे है। बाकी लोगों की उदासीनता के कारण पार्टी कार्यकर्ताओं को समझ में नही आ रहा है। ऐसा भी नहीं है कि अन्य लोग क्षेत्र में भ्रमण नही कर रहे है। क्षेत्र में जहां- तहां सक्रियता सबकी है, लेकिन पार्टी द्वाराआयोजित कार्यक्रमों को सफल बनाने में उदासीनता पार्टी कार्यकर्ताओं को समझ में नहीं आ रही है।
कुछ कार्यकर्त्ताओं का कहना है कि चुनाव मे अभी कुछ समय है, अभी से खर्च कर कुछ अनुभवी लोग अपनी तिजोरी को खाली करना नही चाहते है। उनका मानना है कि यही पूजी बची रहेगी तो चुनाव के समय काम आयेगी। जो नये लोग है, वे लोग अपनी पहचान और पकड बनाने मे दिल खोल कर खर्च कर रहे है। इसी नये लोगों में डा० संतोष कुमार को जोडकर भी कुछ लोग देख रहे है।
लेकिन राजनैतिक समीक्षको की राय ठीक इसके उल्टा है। उनका कहना है कि डा० संतोष कुमार गर्ग इस समय सपा के दावेदारों मे सबसे आगे चल रहे है। यही कारण है कि अधिकांश दावेदार कार्यक्रमों के नाम पर फूक-फूक कर कदम उठा रहे है। कही ऐसा न हो कि पैसा भी खर्च किया जाये और अंतिम घडी मे निराशा ही हाथ लगे।
चुनाव में अभी कुछ माह का समय है। सभी दावेदार अपनी-अपनी क्षमता के हिसाब से टिकट हथियाने में अपने-अपने गाॅडफादर के सहारे लगे हुए है। अंत में क्या होगा, कुछ कहा नही जा सकता है। वैसे जनपद में सपा के जो कर्णधार है, उनकी माने तो अखिलेश यादव इस बार वैसे कंडीडेट को टिकट देंगें जो जिताऊ होगा। वह कंडीडेट कितना नया है और कितना पुराना है, यह उनके लिए कोई मायने नहीं रखता। क्योकि 2022 का चुनाव उनके लिए करो-मरो का है और मुख्यमन्त्री बनने का चुनाव है। ऐसे में वह कोई भी रिस्क लेना नहीं चाहते है।
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