- अभी तक सिर्फ समस्याओं के लिए ही जाने जाते थे निगम के अफसर, फिरहाल ऐसे मामलों से सीख लेने की जरूरत
गौरव श्रीवास्तव
लखनऊ। जब समस्याएं आती है तो ऊपर वाला उन समस्याओं के समाधान भी उसी समय तय कर देता है। कुछ ऐसा ही देखने को मिला जब चारबाग डिपो में संविदा चालक के पद पर तैनात अजीत कुमार के पुत्र दीपांशु को ब्लड की आवश्यकता पड़ी। बताते चलें कि चालक अजीत कुमार के पुत्र दीपांशु को (उम्र 11 वर्ष) स्कूल से लौटते वक्त अचानक असहनीय पेट दर्द और उल्टियां होने लगी थी जिसे लेकर जब परिजन हॉस्पिटल पहुंचे तो डॉक्टरों ने बच्चे के अपेंडिक्स फट जाने की बात कही साथ ही साथ जितनी जल्दी हो सके ब्लड अरेंज करने की भी बात कही।
अजीत ने हर तरफ अपने हाथ-पैर मारे लेकिन वह कामयाब ना हो सका। थक हार कर जब अजीत कुमार ने अपने डिपो के बीसी गुरमीत सिंह से अपनी समस्या को बताया तो गुरमीत ने तुरंत मदद का आश्वासन देते हुए सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक चारबाग डिपो से बात की। मामले को तत्काल संज्ञान में लेते हुए सहायक क्षेत्रीय प्रबंधक चारबाग डिपो अमरनाथ सहाय जी ने बगैर समय गवाएं, स्वयं ही ब्लड डोनेट करने का फैसला लिया। और लगभग 10:30 बजे रात में ही खून देने पहुंच गए। साथ ही साथ पुत्र के इलाज में खर्च हो रहे पैसों को भी लेकर कुछ आर्थिक योगदान भी किया। जाहिर सी बात है जहां एक और अधिकारी वर्ग सिर्फ शोषण भ्रष्टाचार व कुप्रबंधन के लिए जाना जाता है।
वहीं, दूसरी तरफ अमरनाथ सहाय जी जैसे सहायक क्षेत्रीय प्रबंधकों के द्वारा किए जा रहे कार्य लोगों में चर्चा का विषय बन रहा है। अन्य अधिकारियों को भी इस तरह के मामलों से सीखने की आवश्यकता होनी चाहिए। यदि अधिकारी वर्ग अपने कर्मचारियों को इस तरह से मनोबल देता है, तो जाहिर सी बात है मानवीय सभ्यता से ओतप्रोत लोगों के द्वारा मर्यादा की सीमा तारतार कभी नहीं की जाएगी।
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