इस कलयुग में अवतरित अनामी महाप्रभु के अवतार, जीवों को मुक्ति-मोक्ष का रास्ता नामदान देकर जन्म-मरण के असहनीय पीड़ा से छुटकारा दिलाने वाले वर्तमान के पूरे संत सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने 18 अक्टूबर 2018 को उज्जैन आश्रम से दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित संदेश में बताया कि संतों का निशाना लोक-परलोक दोनों बनाने का होता है। नीयत सही रहे, बरकत मिले, खानपान सही हो कि जैसे रोग से मुक्ति रहे यह मानव मंदिर, जो भगवान के भजन, खुदा की इबादत के लिए मिला है, यह गंदा न होने पाए। यह हुजरा साफ रहे कि जिससे बैठकर के प्रार्थना किया जाए और वह मालिक दया कर दे। उस मालिक और देवी-देवताओं का दर्शन इसी घट में हो जाए, सतगुरु इस तरह से दया कर देते हैं।
सन्त जीवात्मा को याद दिलाते हैं कि तू इस मृत्यु लोक की नहीं है बल्कि सतलोक से आई है
अब समझो की सतगुरु बराबर संभाल किस तरह से करते हैं। जैसे गुरु महाराज बराबर लोगों को बुलाते रहते थे और जाते भी रहते थे, सत्संग सुना करके जीवों को निज घर कि याद कराते रहते थे। जैसे लड़की ससुराल में जाती है और उसी में मगन हो जाती है। अब क्योंकि बाप को बेटी से प्रेम है, बाप फिक्र करते हैं, भेजते हैं किसी न किसी को। जब वहां पर जाता है, याद दिलाता है कि पिता ने भेजा है कि हम वहां से आए हैं। ऐसे ही सुरत को याद दिलाते हैं कि यहां आ करके फंस गई। तू उस मालिक की बेटी है, तू उसकी अंश है। बताते-समझाते रहते हैं, मैं तुझको वहां पहुंचाऊंगा, तू मेरी बात का विश्वास तो कर। अरे तू यहां आ करके बहुत दु:खी हो गई। *सुरत तू दुखी रहे, हम जानी, हम तुझको घर ले चलेंगे तू विश्वास तो कर।
बाहरी पूजा पाठ में फंसे जीव को जल्दी विश्वाश नहीं होता
इस काल और माया के देश में जीवों को जल्दी विश्वास ही नहीं होता है। जीव तो ऊपर की याद ही नहीं करता। और यह काल भगवान के बनाए हुए देवी-देवता और आदमी के बनाए हुए देवी-देवता को और आदमी ने जिस पेड़-पत्थर को मानता दे दिया, उन्हीं पर वह विश्वास किए हुए होता है। तो कहते हैं यह सब क्या है? खेल-खिलौना है। असली पति तो तेरा कोई और है। यह तो निरंजन ने जाल फैला दिया है। जैसे छोटी बच्ची गुड़िया-गुड्डे की शादी का खेल खेलती है। फिर गुड़िया को बनाती, खिलाती, ससुराल भेजती है। लेकिन जब खुदकी शादी हो जाती है तो गुड़िया-गुड्डे के खेल को खेल समझती है असला पति जब मिल जाता है तब। ऐसे ही संत जीवों को समझाते हैं कि तुम्हारे असली पति ये नहीं है जिनको तुमने असला पति भगवान परमेश्वर मान लिया है। वह तुम्हारे अलग हैं। समझाते-बताते हैं और कहते हैं तुमको उनको दिखाएंगे, हम तुमको उनके पास पहुंचाएंगे केवल हमारा यही काम है कि.....
हम आए वही देश से जहां तुम्हारो धाम, तुमको घर पहुंचावना एक हमारो काम
एक लक्ष्य, एक उद्देश्य कि हम तुमको तुम्हारे घर पहुंचा देंगे। जब जीव को विश्वास हो जाता है तब उनको नाम दान दे देते हैं, नाम की डोर पकड़ा देते हैं। नाम की डोर पकड़ में आना बहुत जरूरी होता है। क्योंकि जीवात्मा के शरीर में आने-जाने दोनों का रास्ता वही है।
गोस्वामी महाराज जी ने कहा-
"कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर-सुमिर नर उतरही पारा"
उन्होंने कहा-
कलयुग योग न यज्ञ न ज्ञाना, एक आधार नाम गुण गाना।।
नाम को याद करके, नाम की डोरी को पकड़कर के उस नामी के पास पहुंचा जा सकता है। नाम कहां से उतरा, कहां से निकला? उस मालिक सतपुरुष ने उतारा और इसी को पकड़ कर के वहां पहुंचा जा सकता है। जब इसको पकड़ कर के वहां पहुंच जाओगे तो उसी में लीन हो जाओगे फिर दु:ख के संसार में आना नहीं पड़ेगा।
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