भारतीय लोकतंत्र को विदेशी संस्थाओं से प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है - उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति


नई दिल्ली/पीआईवी। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने आज जोर देकर कहा कि देश में लोकतंत्र की कार्य पद्यति सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार और न्याय सुनिश्चित करने के संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप है और इसे किसी विदेशी संस्था से मान्यता की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय की कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष और संसदीय और संवैधानिक मुद्दों पर एक प्रमुख टिप्पणीकार और एक अनुभवी पत्रकार डॉ ए सूर्य प्रकाश द्वारा लिखित "लोकतंत्र, राजनीति और शासन" नामक पुस्तकों के अंग्रेजी और हिंदी संस्करणों का विमोचन करते हुए यह टिप्पणी की।

भारतीय लोकतंत्र का नायडू द्वारा भारतीय लोकतंत्र का यह बचाव कुछ पश्चिमी और अमेरिकी एजेंसियों द्वारा इसके कामकाज पर हाल की कुछ प्रतिकूल रिपोर्टों की पृष्ठभूमि में किया गया है। उन्होंने इस संबंध में प्रभावी साक्ष्य आधारित प्रतिवादों के साथ सामने आने के लिए सूर्य प्रकाश की सराहना की। उपराष्ट्रपति ने आगे जोर देकर कहा कि एक भारतीय नागरिक होने के लिए हम सभी को संविधान की उस भावना और दर्शन का पालन करना है, जिसका उद्देश्य सभी नागरिकों के बीच समान रूप से बंधुत्व को बढ़ावा देना हैI उन्होंने आगे कहा कि "प्रत्येक राष्ट्रीय को जाति, पंथ, रंग, क्षेत्र और धर्म'' के विभाजन से ऊपर उठने की आवश्यकता है। उन्होंने पिछले 30 वर्षों में अपने लेखन के माध्यम से इस विषय को बढ़ावा देने के लिए प्रकाश की सराहना की।

नायडू ने पत्रकारों द्वारा व्यापक शोध और समाचारों और विचारों को अलग रखने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि पत्रकारों और टिप्पणीकारों को 'जुनून, उद्देश्य, परिप्रेक्ष्य और दृढ़ता’ से ओतप्रोत किया जाना चाहिए। उन्होंने मीडिया में अपने 50 साल के कार्यकाल और एक टिप्पणीकार के रूप में इन मानदंडों को बनाए रखने के लिए श्री प्रकाश की सराहना की। केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर, तुगलक के संपादक एस.गुरुमूर्ति और विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के अध्यक्ष सूर्य प्रकाश एवं वरिष्ठ मीडियाकर्मी इस अवसर पर उपस्थित थे।

उपराष्ट्रपति के भाषण का पूरा पाठ निम्नवत  है :

"आज 'संविधान दिवस' है और आज सुबह हमने संसद के केन्द्रीय कक्ष में आयोजित एक कार्यक्रम में 1949 में 'भारत के संविधान' को अपनाने की 72 वीं वर्षगांठ मनाई। मुझे वास्तव में खुशी है कि डॉ. सूर्य प्रकाश द्वारा लिखित दो पुस्तकों - अंग्रेजी में ' डेमोक्रेसी,पॉलिटिक्स एंड गवर्नेंस 'और हिंदी में 'लोकतंत्र, राजनीति और धर्म' का विमोचन इस तरह के एक महत्वपूर्ण अवसर के साथ होने वाला है। विमोचन का  ऐसा ही समय उपयुक्त है क्योंकि उन्होंने हमारे उन संसदीय संस्थानों के कामकाज और संवैधानिक ढांचे का विश्लेषण करने में जीवन भर बिताया है जो हमारे सार्वजनिक जीवन और राजनीति का मार्गदर्शन करने के साथ ही व्यापक प्रसार और संवेदीकरण के लिए इससे मिलने वाले संदेशों को आगे बढ़ाता है।

सबसे पहले, मैं लेखक को उनके उस  'जुनून, उद्देश्य, परिप्रेक्ष्य और दृढ़ता'  (पैशन, परपज, पर्सपेक्टिव एंड पर्जर्वेंस) के लिए बधाई देता हूं जिसने पहले एक  पत्रकार के रूप में और फिर एक टिप्पणीकार के रूप में उनके 50 साल के लंबे करियर को चिह्नित किया। मेरे पास यह मानने के कारण हैं कि लिखित रूप में  उनके योगदान और उन्हें पढ़ने वाले लोगों सहित सभी संबंधित हितधारकों पर उनके प्रभाव के कारण यह उनके लिए एक सार्थक और संतोषजनक मिशन रहा है। एक पत्रकार के रूप में श्री प्रकाश पूरी तरह से निष्पक्ष रहे है और समाचारों और विचारों को अलग रखते थे और बाद में एक टिप्पणीकार के रूप में अपने दृष्टिकोण से भरे विचारों को पूरी लगन से आगे बढ़ाते थे। ये 4 'पी' जिनका मैंने उल्लेख किया है,को किसी भी पत्रकार और टिप्पणीकार का मार्गदर्शन करना चाहिए। 1971 में बेंगलुरू में इंडियन एक्सप्रेस के साथ पत्रकारिता में प्रवेश और 1981 में नई दिल्ली में अपने स्थानांतरण के बाद और पिछले तीन दशकों में एक टिप्पणीकार के रूप में, श्री प्रकाश ने व्यापक रूप से विभिन्न संस्थानों के कामकाज पर अपनी रिपोर्टिंग और लेखन के द्वारा बड़े सार्वजनिक उद्देश्यों को  पूरा करने के मिशन को आगे बढ़ाया है और जिसका एकमात्र उद्देश्य अन्य सभी को नए मानदंड गढने के लिए प्रेरित करना है।

मै यह मानता हूँ कि एक पत्रकार के रूप में अपने कार्यकाल के शुरूआती चार सालों के भीतर ही 'आपातकाल' लागू के बाद उन्हें व्यक्तिगत रूप से जिन  यन्त्रणाओं एवं कठिनाइयों का सामना करना पडा उसके अनुभवों में उन्हें यह दिशा मिली कि अब  उन्हें नागरिकों के अधिकारों और गरिमा पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही यह सुनिश्चित करने आगे बढना है कि राष्ट्र की प्रगति के संविधान में उल्लिखित दर्शन द्वारा निर्देशित हो। संवैधानिक सिद्धांतों के प्रति उनका सम्मान और प्रतिबद्धता उनके 50 साल लंबे मिशन के परिभाषित सिद्धांत के रूप में सामने आती है।  ऐसे बहुत कम लोग हैं जो श्री सूर्य प्रकाश के ऐसे एकाग्र चिन्तन की इतने दृढ़ संकल्प और विचार और उद्देश्य की स्पष्टता की  बराबरी करने में सक्षम हो सकें।

आज मैं जिन दो पुस्तकों का विमोचन कर रहा हूं, वे उन प्रवृत्तियों और प्रलोभनों का वर्णन करती हैं जिन्होंने पिछले 30 वर्षों में हमारे सार्वजनिक जीवन को प्रभावित किया है, और जो तथ्यों पर ध्यान देने की चिंताओं को सामने लाकर  आवश्यक सुधारात्मक हस्तक्षेपों की राह आसान करते हैं। हमारे संवैधानिक और संसदीय संस्थानों के कामकाज में कमियों और सत्ता और अधिकार में अदूरदर्शी व्यक्तियों द्वारा शुरू की गई गलत परिपाटियों  को समझने के लिए तैयार सन्दर्भ  के रूप में ये पुस्तकें बहुत मूल्यवान हैं। श्री प्रकाश की कृतियों में गहन शोध और के यही वे साक्ष्य हैं जिन्हें वे अपने तर्कों के समर्थन में दृढ़ता से प्रस्तुत करते हैं।

26 साल पहले प्रकाशित उनकी पुस्तक 'व्हाट एल्स इंडियन पार्लियामेंट' श्री प्रकाश के ऐसे ही दृष्टिकोण का एक स्पष्ट प्रमाण है,जिसने भरपूर आंकड़ों के साथ हमारी  सर्वोच्च विधायिका के कामकाज में कमियों को शायद पहली बार सबके सामने उजागर किया। सूर्य प्रकाश का एक और अनूठा योगदान उस  'भारतीय राष्ट्रवाद' की मजबूती से रक्षा करना है जिसे हमारा संविधान बढ़ावा देना चाहता है। राष्ट्रवाद और यहां तक ​​कि हमारे जीवंत लोकतंत्र के उद्देश्य को खत्म करने के बढ़ते घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के बीच, वह हमारे देश के प्रदर्शित मूल मूल्यों और हमारे संविधान के दर्शन पर अपने तर्कों के आधार पर प्रभावी प्रतिवाद के साथ सामने आ रहे हैं। एक पूर्ण एकीकृत राष्ट्र के रूप में एक मजबूत और एकजुट भारत ही हमारे देश को उस गौरव के शिखर पर ले जा सकता है जिसके हम हकदार हैं।

श्री प्रकाश का मूल तर्क यह है कि हमारे संविधान ने खेल के नियमों को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया हुआ है और सभी हितधारकों को उन नियमों का पालन पूरी प्रतिबद्धता के साथ करना चाहिए। वह स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि कुछ   कमियों के बावजूद भी हमारा लोकतन्त्र ऐसे सिद्धांतों के अनुरूप है और इस संबंध में किसी को भी हमें कोई प्रमाण पत्र देने की आवश्यकता नहीं है। इस प्रक्रिया में  वह हमारे देश में तथाकथित 'दक्षिणपंथी' विचारकों का मार्गदर्शन करने वाले उस लोकतांत्रिक उत्साह को सामने लाते हैं जिन पर उन तथाकथित 'वामपंथी  विचारकों' के लगातार हमले होते रहे हैं जो बहुत लंबे समय तक राष्ट्रीय मानस पर हावी होते रहे हैं। एक भारतीय होने के नाते हम सभी के लिए समानता और न्याय और बंधुत्व की भावना के संवैधानिक सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होने के अलावा और कुछ भी नहीं है और यही जाति, पंथ, रंग, क्षेत्र और धर्म के विभाजन से ऊपर उठने वाले प्रत्येक 'राष्ट्रवादी'  की पहचान है। श्री सूर्य प्रकाश इस अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं और मैं इसके लिए उन्हें बधाई देता हूं।

प्रत्येक भारतीय को अपने अतीत पर गर्व करने और स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों और हमारे संविधान निर्माताओं की कल्पना के नए भारत को साकार करने के लिए आत्मविश्वास और प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है ताकि युवा भारत की आकांक्षाओं को साकार किया जा सके। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि श्री सूर्य प्रकाश ने अपनी प्रकाशित कृतियों के माध्यम से इस संबंध में अपना पूर्ण योगदान दिया है। मुझे पता है कि श्री सूर्य प्रकाश ने 1993 में संसदीय कार्यवाही और समिति प्रणाली का सीधा प्रसारण शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बुंडेस्टाग, जर्मन संसद के उनके अध्ययन और उनकी रिपोर्ट ने इन दो महत्वपूर्ण निर्णयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसे तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष श्री शिवराज पाटिल द्वारा स्वीकार किया गया था। मैं इस कार्य में श्री प्रकाश की भूमिका के लिए उनकी सराहना करता हूं।

आज संविधान दिवस पर श्री सूर्य प्रकाश की दो पुस्तकों का विमोचन करते हुए मुझे वास्तव में प्रसन्नता हो रही है। 
मुझे यह जानकर भी खुशी हो रही है कि श्री प्रकाश की पिछले 50 वर्षों में की गई साधना  के लिए  आपकी स्वीकृति और समर्थन के रूप में आज बड़ी संख्या में श्री प्रकाश के इष्ट मित्र और प्रशंसक यहां मौजूद हैं। निस्संदेह यह आप सभी के लिए ख़ुशी साझा करने का एक महान क्षण है। इतने वर्षों तक उनके साथ खड़े रहने के लिए मैं आप सभी की सराहना करता हूं। मुझे विश्वास है कि श्री प्रकाश आने वाले कई वर्षों तक अपने अभियान  को जारी रखेंगे। आप सभी को धन्यवाद!"

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