- सातवें शब्दभेदी गुरु को ढूंढ कर अपनी आत्मा का कल्याण करा लो नहीं तो बार-बार चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ेगा
- जैसे दूध में घी है, दिखता नहीं है ऐसे ही मनुष्य शरीर में भगवान है। जब युक्ति बताने वाले गुरु मिल जाएंगे तो आपको उनका दर्शन हो सकता है
चित्रकूट, मध्य प्रदेश। विश्व विख्यात परम संत बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, वर्तमान के मौजूदा पूज्य संत बाबा उमाकांत जी महाराज ने 21 दिसंबर 2021 को चित्रकूट म. प्र. में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित संदेश में बताया कि आप रामचरितमानस पढ़ते हो लेकिन उसको अमल नहीं करते हो। जैसे उसमें राम ने काम किया बताया है वैसे काम जब करोगे तब तो उसका फल मिलेगा। भाई-भाई के लिए जंगल चला गया था और आज भाई, भाई के खून का प्यासा हो रहा है। राम पिता के आदेश पर राजगद्दी पर ठोकर मार कर जंगल चले गए थे। अब जो यह फटा पैंट पहनने वाले लड़के हैं यह तो पिता को घर से बाहर निकाल दे रहे हैं तो कहां से राम राज्य आएगा? राम के राज्य का कैसे सुख मिलेगा? इसलिए इसको पढ़ो और वैसा आचरण करो। और अर्थ न समझ में आए तो उतनी योग्यता वाले सन्त के पास चले जाओ जितनी गोस्वामी जी महाराज में थी। उन्होंने जो लिखा था वह आपको अर्थ समझा देंगे।
इस शरीर को जब शुद्ध रखोगे कोई गंदी चीज इसके अंदर नहीं डालोगे तो अच्छे-बुरे का ज्ञान हो जाएगा
जब इस शरीर को शुद्ध रखोगे, इसके अंदर कोई गंदी चीज नहीं डालोगे और अच्छे-बुरे का ज्ञान जब आपको हो जाएगा, अच्छा कर्म करोगे तब दिल-दिमाग, बुद्धि सही रहेगी। तब आप किसी भी देवी-देवता का पूजा-पाठ करोगे तो आपके लिए फायदेमंद होगा वरना आपका जीवन का समय बेकार चला जाएगा।
श्रद्धा भाव भक्ति के अनुसार ही विश्वास के हिसाब से फल मिल जाता है
फायदा तो कुछ न कुछ आदमी को मिलता है। कोई न कोई कहीं न कहीं से जुड़ा हुआ होता है। जहां जैसा माहौल, बताने वाले होते हैं वैसा उन्हीं पर आदमी को विश्वास हो जाता है। किसी ने बता दिया पेड़, पौधे, पत्थर, किताब, नदी, तालाब में भगवान है तो आदमी को वैसा विश्वास हो जाता है। और विश्वास फलदायकम। जितना विश्वास होता है उसी हिसाब से कुछ न कुछ फल मिलता है। लेकिन ये स्थाई फल नहीं होता है। इसीलिए झाकोले खाते रहते हैं। फायदा थोड़ा सा हुआ फिर वैसे हो गए, फिर कर्म खराब हो गए। तो कर्मों को कौन धोता है?
शरीर को तो बाहर से साफ कर लेते हो तो लेकिन अंतःकरण गंदा है, उसको धुलाने के लिए वक्त के समरथ गुरु के पास जाना ही पड़ेगा
अंदर अगर मैल रहेगी तो आप देवताओं का दर्शन न कर पाओगे और न अपने घर की जानकारी कर पाओगे। जब अंदर में मैल को धोने वाले समरथ गुरु मिल जाएंगे, मदद कर देंगे तो इसी मनुष्य शरीर में ही प्रभु का दर्शन आपको हो जाएगा। फिर तो कहीं जाने की जरूरत ही नहीं रह जाएगी। कबीर साहब ने कहा है-
ज्यो तिल माही तेल है, ज्यों चकमक में आग।
तेरा साईं तुझमें, जान सके तो जान।।
जैसे चकमक में आग, अलसी के तिल में बहुत तेल होता है लेकिन दिखता नहीं है लेकिन है, ऐसे ही प्रभु अंदर में है। लेकिन कैसे दिखेगा, मिलेगा? उसके लिए युक्ति करनी पड़ेगी। युक्ति से मुक्ति मिलती है।
जैसे दूध में घी है, दिखता नहीं है ऐसे ही मनुष्य शरीर में भगवान है। जब युक्ति बताने वाले गुरु मिल जाएंगे तो आपको उनका दर्शन हो सकता है।
दूध में घी युक्ति से ही निकलता है ऐसे ही युक्ति बताने वाले जब आपको गुरु मिल जाएंगे तो बता देंगे। देवी-देवताओं का दर्शन जिसको भी आज तक हुआ, इसी मानव शरीर में हुआ। वह अनहद वेदवाणी, आकाशवाणी जो हमेशा हो रही है-
बिना बजाय निस दिन बाजै, घंटा शंख नगाडी रे।
बहरा सुन-सुन मस्त होत है, तन की सुध बिसारी रे।
बिना भूमि एक महल बना है, ता में जोत अपारी रे।
अंधा देख-देख सुख पावे, बात बता वे सारी रे।।
जो कुछ भी दिखाई पड़ा, जिसको संतों ने लिख दिया, इतिहास बन गया। वह इसी मनुष्य शरीर में देखें। तो क्या वह उस प्रभु के सगे बेटे और आप सौतेले हो? सबके अंदर उसी मालिक की अंश जीवात्मा है।
सकल जीव मम उपजाया। सब पर मोर बराबर दाया।।
लेकिन उसको बताने वाले कौन होते हैं?
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काकै लागै पाय।
बलिहारी गुरु आपने, जिन गोविंद दियो बताय।
जो सिखाये उसको गुरु कहते हैं। दुनियावी ज्ञान या विद्या या कोई फायदे की चीज बता दे तो उसको भी गुरु मान लेता है। तो गुरु तो बहुत तरह के बताए गए।
सातवें शब्दभेदी गुरु को ढूंढ कर अपनी आत्मा का कल्याण करा लो नहीं तो बार-बार चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ेगा।
- पहला गुरु पित और माता जो है रक्तबीज के दाता।
- दूसर गुरु भई वह दाई, गर्भवास की मैल छुड़ाई। तीसर गुरु ने नाम ऊंचारा, गांव देश के लोग पुकारा।
- चौथा गुरु ने शिक्षा दीन्हा, तब संसारी वस्तु चीन्हा।
- पांचवा गुरु ने दीक्षा दीन्हा, रामकृष्ण का सुमरन कीन्हा।
- छठवां गुरु ने सब भ्रम तोड़ा, ओंकार से नाता जोड़ा।
- सातवां गुरु सत शब्द लखावा, जहां का जीव तहां पहुंचावा।
यह जीव सतलोक, सतदेश का है। जब वहां पहुंचेगा तब इसको सुख मिलेगा, मुक्ति मिलेगी। नहीं तो वहां से उतरने के बाद से तो दु:ख ही झेलता रहा है। तब इधर मृत्युलोक का आना-जाना बंद होगा नहीं तो लौट लौट चौरासी आया' यानी लौट-लौट कर के फिर इसी में आना पड़ेगा।
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