- विदेशों का भोजन भारत के लोगों के लिए उपयुक्त नहीं है
- गलत खान-पान से आदमी चलते-चलते गिर कर खत्म हो जाएगा, दवाई करने, हॉस्पिटल जाने तक का मौका नहीं मिलेगा
उज्जैन, मध्य प्रदेश। पाश्चात्य सभ्यता, तौर-तरीकों, खान-पान को आधुनिकता मान कर उसकी अंधी नकल करने के दुष्प्रभावों के बारे में चेताने वाले, इसे छोड़ भौतिक व आध्यात्मिक दृष्टि से स्वास्थ्यवर्धक प्रकृति के करीब भारतीय संस्कृति, व्यवहार, चाल-चलन को अपनाने की प्रेरणा, शिक्षा देने वाले इस समय के पूरे सन्त उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने नव वर्ष कार्यक्रम में आये भक्तों को 31 दिसम्बर 2022 को दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित सतसंग में बताया कि आगे का जो साल आ रहा है, 2022, इसमें बीमारियां ज्यादा बढ़ेगी। हार्ट अटैक जिसको कहते हैं, चलते-चलते आदमी गिरेंगे, खत्म हो जाएंगे। कोई समय नहीं दिया, न बताने का, न कुछ करने का, न अस्पताल पहुंचाने का। एकदम से नसें बंद हो जाती हैं। बुढ़ापे में जब शरीर कमजोर हो जाता है तब बंद होना चाहिए लेकिन जवान-जवान का, लड़कों का हार्ट फेल हो रहा है।
चिकनी चीजों के जरूरत से ज्यादा सेवन से, रोग बहुत बढ़ गए
उसका कारण यही है कि संयम-नियम का पालन नहीं करते हैं। यह जितनी चिकनी चीजें जबसे चली तबसे रोग बहुत बढ़ गया। जरूरत से ज्यादा चिकनाहट नहीं लेनी चाहिए। ज्यादा जब हो जाता है तो मन उसी का आदी हो जाता है। पहले के समय में लोग स्वागत सत्कार के लिए दूध, छाछ, भुना चना, चूड़ा-पोहा आदि खिलाते थे। और अब ड्राई फूट खिलाते हैं। अगर वही चीजें रख दो तो कहेंगे गरीब है और ड्राई फ्रूट रखो तो कहेंगे अमीर है। सूखा मेवा और गीले फल में भी अंतर होता है। गीले फल में तो कुछ तत्व, रस मिल जाता है लेकिन सूखे मेवे में तो जो सूख गया सूख गया। लेकिन वह जो चिकनाहट होती है, वह नुकसान कर जाती है।
जवान-जवान लड़कों का हार्ट फेल होने का क्या कारण है
जो बनी हुई चीजें बाजारों में आ रही हैं। जवान लड़कों का हार्ट फेल होने, लकवा होने का क्या मतलब है? अपंग हो जाता है, शरीर नहीं चलता है, स्मरण शक्ति खत्म हो जाती है, शुगर बढ़ जाता है जवान लड़कों का, 18-20 साल के लड़कों का। उसका क्या कारण है? कारण यही है जापान, इंग्लैंड, चाइना में खाने वाली चीजें उनको ये खाते हैं। नाम पर खाने लगते हैं। उसमें क्या पड़ा है, यह नहीं पता है। सतसंगियों के लड़के भजन कैसे कर पाएंगे जब उन चीजों को खाएंगे। क्योंकि वहां रोक-टोक तो है नहीं कि जानवर की चर्बी का तेल है या सरसों या सोयाबीन का है, कुछ नहीं। विदेशों में तो मांसाहार चरम सीमा पर है। 2-4 % (शाकाहारी) सतसंगी या मारवाड़ी या जैन समाज के बुजुर्ग मिल जाये लेकिन जैसे भारतीय संस्कृति में चौका लगा कर, पालथी मार कर, बैठ कर खाना है ऐसे ही खड़े-खड़े खाना, टट्टी-पेशाब, सारे काम करना ये सब उनके फैशन, रीति-रिवाज, कल्चर में आ गया है।
प्रकृति मनुष्य को खाने के लिए अलग-अलग समय पर खाने के लिए अलग-अलग चीजें देती है
जैसे गर्मी में आदमी को पानी की जरूरत पड़ती है तब तरबूज, खरबूजा, ककड़ी खूब होता है जिनमें पानी खूब रहता है। लेकिन बेमौसम अगर यह चीजें खाई जाएंगी जैसे अभी (ठंडी में) अगर तरबूजा- खरबूजा खाओगे तो ठंड करेगा, नुकसान करेगा। तो समय-परिस्थिति के अनुसार लेना चाहिए।
विदेशों का भोजन भारत के लोगों के लिए उपयुक्त नहीं है
कुछ चीजें जो वह भेज दे रहे हैं, पैसा कमाने के लिए और लड़कों की आदत खराब होती जा रही है। पैकेट को देखते ही बच्चों को तो छोड़ो, जवानों का भी लार टपकने लगता है। तो यह यहां के लिए उपयुक्त नहीं है। यह भोजन आपके शरीर के लिए सूटेबल नहीं है।
अगर लोगो ने खान-पान पर कंट्रोल नहीं किया तो हार्ट अटैक, लकवा, गठिया बयार आदि बहुत बढ़ जाएगा
अगर यही हाल रहा तो 2022 में आप देख लीजिए, नोट करते जाइएगा। अगर समाचार देखते या अखबार पढ़ते या आप सोशल आदमी हैं, सोशल स्टडी करते हैं तो आप देख लीजिएगा कि इनकी संख्या बहुत बढ़ जाएगी। हार्ट अटैक, लकवा, गठिया बयार आदि की संख्या बहुत बढ़ जाएगी। आपको आज सचेत कर रहा हूं। ताकि 2022 आपके लिए अच्छा रहे, खराब न हो। हालांकि हमको अच्छा दिखाई नहीं पड़ रहा है कि 2021 से अच्छा रहेगा। लेकिन आपके लिए तो अच्छा रहे। जो नहीं जानते, मानते, बताने पर सुनते नहीं हैं, उनके लिए ही खराब रहे; आपके लिए तो अच्छा रहे।
0 टिप्पणियाँ
Please don't enter any spam link in the comment Box.