परमात्मा जिसको नाम दान देने की पॉवर देता है, उसको देखना और उसके रूप को याद करना चाहिए : सन्त बाबा उमाकान्त

  • गुरु का दर्शन जल्दी-जल्दी न हो तो जो गुरु का दर्शन करके आया है, उसी के दर्शन से गुरु के दर्शन का लाभ मिल जाता है
  • जड़ मूर्तियां, फोटो ताकत नहीं दे सकती, वक़्त के गुरु को देखने, याद करने से ही वह ताकत, शक्ति मिलेगी

 उज्जैन (मध्य प्रदेश) । शरीर छोड़ते समय सभी नामदानीयों की डोरी बाबा जयगुरुदेव जिनको पकड़ा कर गए, अपने गुरु के आदेश से और सन्त मत के विधान के अनुसार वक़्त के पूरे सन्त सतगुरु होने के नाते सभी पुराने जीवों की संभाल करने वाले और नए जीवों को नाम देने वाले उज्जैन के सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने उज्जैन आश्रम पर दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर 17 जनवरी 2022 को लाइव प्रसारित पौष पूर्णिमा सतसंग में बताया कि गुरु महाराज ने आदेश दिया कि नाम दान देना शुरू कर दो तब बताने लग गया। ऐसी परिस्थितियां बनी थी कि नाम दान देने की इच्छा नहीं हो रही थी लेकिन लोगों ने कहा एक समय पर एक ही को नाम दान देने का अधिकार होता है। आप नाम दान नहीं दोगे तो फिर कौन देगा? इसमें कर्मों का लेना-देना होता है लेकिन गुरु महाराज का फिर आदेश मिल गया कि अब नाम दान देना शुरू कर दो तो मैंने नाम दान देना शुरू कर दिया।

गुरु का ध्यान कर प्यारे, बिना इसके नहीं छुटना

ऑनलाइन नामदान नहीं दिया जाता, एक बार तो कम से कम सामने आना ही पड़ता है। यह है संतमत। इसमें गुरु को ही सब कुछ माना गया है। उनके अंदर वह प्रभु पावर देता है- नाम दान देने की, बताने-समझाने की, जीवो को संभालने, मदद करने की। तो जिसको पावर देता है उसको देखना चाहिए, उसके रूप को याद करना चाहिए। कहा न- गुरु का ध्यान कर प्यारे, बिना इसके नहीं छुटना। सबसे पहले गुरु को ही याद किया जाता है। जब देखेगा नहीं तो वह ताकत नहीं मिल पाएगी।

सूरज का कागज पर प्रतिबिंब बना कर किरणें चाहे कितनी तेज कर दो लेकिन रोशनी,गर्मी नहीं देगी, ऐसे ही जड़ मूर्तियां, फोटो ताकत नहीं दे सकती

रोशनी, गर्मी देने वाले सूरज की किरणें इतनी तेज है कि देख नहीं सकते हो, आंखों में लगेंगी। लेकिन इसवका खूब तेज किरणों वाला प्रतिबिंब कागज पर बना दो तो वह रोशनी, गर्मी नहीं दे सकता क्योंकि वह जड़ है। फोटो, मूर्तियां ताकत नहीं देती, वह तो एक यादगार के लिए होता है। जड़ चेतन की मदद नहीं कर सकता है। 

चेतन किसको कहते हैं?

चेतन मनुष्य है, जिसके अंदर चेतना हो। जो सुनता, बोलता, चलता, खाता, टट्टी, पेशाब करता हो वह है चेतन। जड़, चेतन की मदद नहीं कर सकता। चेतन के लिए चेतन की जरूरत होती है।

गुरु का दर्शन जल्दी-जल्दी न हो तो जो गुरु का दर्शन करके आया है, उसी के दर्शन से गुरु के दर्शन का लाभ मिल जाता है

संतमत में इसलिए कहा गया कि हो सके तो गुरु का दर्शन रोज करो। न कर पाओ तो दूसरे, तीसरे दिन करो, 15 दिन में, महीने, 3 महीने में एक बार करो, नहीं तो साल में एक बार करना जरूरी होता है। कहा न-

बरस दिना में दरस न कीन्हा, ताकौ लागै दोष।
कह कबीर वाकौ, कभी न होय मोक्ष।।

लेकिन इस समय पर देखो जैसे विदेश बहुत दूर है। हवाई जहाज से उड़ कर वहां पहुंचने में 20-22 घंटा लगता है। हर कोई तो वहां से आ नहीं सकता भारत में। और भारत में जो यह काम करने वाले हैं, वह रोज वहां जा नहीं सकते। तो सालों बीत जाता है। परिस्थितियां ऐसी बन जाती हैं कि चाहते हुए भी लोग एक से दूसरी जगह नहीं आ जा पाते हैं। ऐसे ही पहले के समय में जब साधन की कमी थी,  ट्रेन बस नहीं थे तो गुरु का दर्शन करने के लिए लोग महीना-दो महीना पैदल चलकर के जाते थे। तो उस समय पर छूट दे दिया था कि साल में अगर एक बार दर्शन न कर पाओ, गुरु का दर्शन जल्दी-जल्दी न हो तो जो गुरु का दर्शन करके आया है, उसी का दर्शन कर लो, गुरु के दर्शन का लाभ मिल जाता है।

गुरु कोई हाड़-मांस के शरीर का नाम नहीं, गुरु एक पावर शक्ति होती है जो कण-कण में व्याप्त है

गुरु एक पॉवर होती है। गुरु कोई हाड़-मांस के शरीर का नाम नहीं होता है। गुरु एक शक्ति होती है। वह शक्ति जिससे झलकती, निकलती है, आंखों से, मुंह से, रोम-रोम से शक्ति निकलती है, जो वह शक्ति को लेना चाहता है, कहीं न कहीं वह शक्ति को सामने पड़ने पर ले लेता है, मिल जाता है। जब एक तरह से बाप-बेटे का संबंध हो जाता है, बेटा न भी ले पावे, दूध न भी पीने के लिए पहुंच पावे तो बाप बुलाकर के दूध पिलाते है, रोटी खिलाते हैं कि नहीं तो कमजोरी आ जाएगी। वह खुद ताकत शक्ति को दे दिया करते हैं। कहा गया प्रेमियों सामने होना चाहिए, सामने से नाम दान लेना चाहिए, सामने बैठकर के सुनना चाहिए, एक बार सामने जरूर पडना चाहिए।

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