स्वतंत्रता संग्राम से शौर्य और सामाजिक समरसता की कहानियों को स्कूली पाठ्य पुस्तकों में शामिल करें: उपराष्ट्रपति


नई दिल्ली/पीआईवी। उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु ने देश के गुमनाम नायकों को सम्मानित करने और उनके जीवन से जु़ड़ी कहानियों लिपिबद्ध करने की अपील की ताकि स्कूली बच्चे उनसे प्रेरणा ग्रहण कर सकें। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम से सामाजिक समरसता की कहानियों का वर्णन करने सुझाव दिया जो भारत की सभ्यता के महत्व को दर्शाती हैं। इतिहास पढ़ाने के महत्व की चर्चा करते हुए नायडु ने कहा, ’’हमें अपने बच्चों को ऐसे शूरवीर नायकों की कहानियां सिखानी चाहिए जिनका यह धरती साक्षी है। हमारे दिमाग में अगर कोई हीन भावना है तो हमारा गौरवशाली इतिहास उससे मुक्त होना चाहिए। दरअसल, इतिहास हमें शिक्षित, प्रबुद्ध और स्वाधीन बना सकता है।’’

नायडु ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि ’स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भी, हमारी शिक्षा प्रणाली में औपनिवेशिक झलक बनी रही।’ उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सफल क्रियान्वयन से इसे दूर हो जाना चाहिए। नायडु ने उपराष्ट्रपति निवास से एक पुस्तक ’ध्यास पंथे चलता’ का विमोचन किया, जो महाराष्ट्र एजुकेशन सोसाइटी (एमईएस) की 160 साल की विरासत का एक ऐतिहासिक लेखा पेश करती है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि 1860 में पुणे में स्थापित सोसायटी, महान ’आद्य क्रांतिकारी’ वासुदेव बलवंत फड़के जैसे दिग्गजों के युवाओं को वैज्ञानिक शिक्षा प्रदान करने और लोगों में राष्ट्रवादी मूल्यों को बढ़ावा देने के प्रयासों को लेकर देश में बनने वाले पहले निजी शैक्षणिक संस्थानों में से एक थी।

वासुदेव बलवंत फड़के का उल्लेख करते हुए नायडु ने बताया कि वह औपनिवेशिक शासन से भारत को आजाद कराने के लिए संग्राम करने वाले शुरुआती क्रांतिकारियों में शुमार थे। उन्होंने बताया कि स्वराज के मंत्र का प्रचार करके और स्थानीय समुदायों का समर्थन जुटाकर उन्होंने जिस बहादुरी से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, वह वास्तव में उल्लेखनीय है।

राज्य से इसी तरह के योगदान का उल्लेख करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि महाराष्ट्र नेताओं और संगठनों का निर्माण करने और स्वतंत्रता संग्राम की वैचारिक नींव रखने में सबसे आगे था। उन्होंने भारत में सार्थक सामाजिक सुधार लाने में दादोबा पांडुरंग, गणेश वासुदेव जोशी, महादेव गोविंद रानाडे और महात्मा ज्योतिबा फुले जैसे दिग्गजों के नेतृत्व में परमहंस मंडली, पूना सार्वजनिक सभा और सत्यशोधक समाज जैसे संगठनों के प्रयासों का जिक्र किया।

महाराष्ट्र एजुकेशन सोसाइटी, डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी और अन्य संस्थानों द्वारा ’शिक्षा को एक मिशन के रूप में लेने का जिक्र करते हुए नायडु ने शिक्षा के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए इसी तरह की भावना का आह्वान किया। शिक्षा क्षेत्र में ’21वीं सदी के तरीके की आवश्यकता पर बल देते हुए, उपराष्ट्रपति ने राज्यों और शैक्षणिक संस्थानों द्वारा अंतर्विधायिकता और बहु-विधायिकता पर जोर देने के साथ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उत्साहपूर्वक कार्यान्वयन का आग्रह किया।

उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि महामारी ने डिजिटल क्लासरूम, स्मार्ट डिवाइसेस और माइक्रो कोर्स के उपयोग को आवश्यक बना दिया है। उन्होंने यह माना कि शिक्षा की विधि अब यथास्थिति नहीं हो सकती है और निजी एवं सार्वजनिक शैक्षणिक संस्थानों से शिक्षा में इन नए हाइब्रिड स्टैंडर्ड यानी संकर मानकों को अपनाने की अपील की।

उन्होंने कहा,’’व्यावसायिक पाठ्यक्रमों और आधुनिक तकनीकों के माध्यम से दी जाने वाली दूरस्थ शिक्षा भौगोलिक बाधाओं को दूर कर सकती है और दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुंच सकती है। उनका पूरी तरह से अन्वेषण होना चाहिए और इसे आगे बढ़ाया जाना चाहिए।’’ राजीव सहस्रबुद्धे, शासी निकाय के अध्यक्ष, एमईएस, डॉ. भरत वांकटे, सचिव, एमईएस, सुधीर गाडे, सहायक सचिव, एमईएस, डॉ. केतकी मोदक, पुस्तक की लेखिका समेत अन्य लोगों ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया।


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