जीवात्मा को मुक्ति-मोक्ष वक़्त के सतगुरु ही दे सकते हैं, परमात्मा और सतगुरु में कोई अंतर नहीं होता : बाबा उमाकान्त

  • अब जीवों को नर्कों से बचाने के लिये नियम-कानून में ढिलाई देनी पड़ी
  • यदि नामदान लेकर भजन करने लग गए और मनुष्य शरीर छूट गया तो अगले जन्म में मनुष्य शरीर फिर मिल जाएगा

देवास (मध्य प्रदेश)। इस अनमोल मानव जीवन के महत्व को, इसके असली उद्देश्य को, बार-बार बताने-समझाने वाले, सभी जीवों के असली पिता से मिलने का सच्चा रास्ता (नामदान) बताने वाले, लोक-परलोक दोनों बनाने वाले इस समय के पूरे महापुरुष उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 7 जनवरी 2022 को देवास (मध्य प्रदेश) में दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित संदेश में बताया कि गुरु महाराज इस दुनिया संसार से जाने से पहले मेरे लिए बोल कर के गए थे कि पुरानों की संभाल करना और नयों को नामदान देना। दोनों काम करता हूं। विदेशों में जब मैं गया तो थोड़े ही लोग मिले, सबको नामदान दिया। और कुछ देशों में अपने प्रेमी बहुत हो गए हैं। जैसे आप यहां भंडारा चलाते हो, पैकेट बांटते हो, बैठाकर खिलाते हो, कंबल टोपा बांटते हो आदि ऐसे ही अन्य देशों में भी बहुत लोग करने लग गए।

नामदान लेकर भजन करने लग गए तो ये शरीर छूटने पर फिर मनुष्य चोला मिल जाएगा

कुछ देश ऐसे हैं जहां प्रेमी कम हैं, ज्यादा आना-जाना नहीं हो पाता है, 20-20 घंटा हवाई जहाज में सफर करना पड़ता है, गर्मी-ठंडी के माहौल का असर होता है, परिस्थितियां अनुकूल नहीं होती हैं। तो वहां कम बार गया लेकिन 15-16 देशों में नाम दान तो दिया ही दिया। आप यह समझो कमरे में ही बैठ गए तो उनको ही नाम दान दे देता हूं। क्योंकि गुरु का आदेश का पालन करता हूं। गुरु महाराज ने जाने के बाद कहा कि नामदान इनको देना शुरू कर दो और यह भजन करने लग जाएंगे, शरीर भी छूट जाएगा भजन करते-करते, काम पूरा नहीं हुआ तो भी इनको मनुष्य शरीर मिल जाएगा। मनुष्य शरीर का मिलना ही बहुत मुश्किल है।

कोटि जन्म जब भटका खाया। तब यह नर तन दुर्लभ पाया।।

तो नाम दान सबको दे देता हूं, कोई भी कैसा भी हो। आज नहीं समझ पा रहा है, कल कोई समझा-बता देगा, करने लगेगा तो फायदा तो उठा लेगा। ये रुपया-पैसा, धन-दौलत से खरीदी जाने वाली चीज नहीं है।

जन्म लेने में और मरने में असहनीय पीड़ा होती है

इसको पहले के समय में दूसरे जन्म में देते थे। जन्मत मरत दुःसह दु:ख होई। जन्मते समय देखो कितनी तकलीफ होती है, चाहे कीड़ा-मकोड़ा ही पैदा होते हैं लेकिन उनको भी तकलीफ होती है। गाय का, घोड़ी का बच्चा मां के पेट से जब बाहर निकलता है, झिल्ली के अंदर रहता है तो हाथ-पैर हिलाता है, पटकता है। और मरते समय छटपटा के मरते हैं, तकलीफ होती है। आप चिल्लाते हो, आपकी आवाज को तो लोग समझ पाते हैं लेकिन जानवर चिल्लाते हैं, बकरा को काटते हैं। अगर लोग पहले से उनकी जीभ न काट दें तो गर्दन काटेंगे तो बड़ी देर तक ऐसे छटपटाता रहता है, चिल्लाता रहता है, आवाज निकलती रहती है तो बड़ी तकलीफ होती है।

पहले बगीचा लगाते फल देर में फलते, अब जल्दी फलने लगे, ऐसे जीवों को नर्कों से बचाने के लिये नियम-कानून में ढिलाई देनी पड़ी

दूसरा जन्म लेते थे तब नाम नाम मिलता था। हम तो यह चाहते हैं कि आप पेड़ भी लगाओ और फल भी खाओ। बगीचा बहुत देर में फलते थे, अब जल्दी फ़लने लग गए। वैराइटी ही चेंज हो गई, जिसको कहते हैं। ऐसे ही अब नियम-कानून में ढिलाई देनी पड़ी क्योंकि सब अगर नर्क ही चले जाएं तो आखिर यहां रहेगा कौन? इस धरती पर भी रहना जरूरी है, इनको भी बचाना जरूरी है। कुछ लोगों को वहां नहीं भेजा जाएगा तो रास्ता ही बंद हो जाएगा, वह भी जरूरी है। यह दोनों काम जरूरी है।

बाबा उमाकान्त जी महाराज के वचन:

  • खुद ठग जाओ, पर ठगी मत करो।
  • कोई तारीफ करें तो गहराई से सोचो कि यह अपने किस स्वार्थ में तारीफ कर रहा है।
  • जो लोग संकल्प बना लेते हैं उनका काम हो जाता है।
  • अच्छाई और बुराई दोनों बाँटने से बढ़ जाती है।
  • एहसान भूलना नहीं चाहिए, चुका देना चाहिए।

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